मॉर्गन स्टैनली इंडिया में प्रबंध निदेशक एवं इंडिया इक्विटी स्ट्रैटजिस्ट के प्रमुख रिधम देसाई का कहना है कि घरेलू निवेश में तेजी आने से बहुत पहले से ही घरेलू बाजार उभरते बाजारों (ईएम) की तुलना में प्रीमियम पर कारोबार करते रहे हैं। उन्होंने मुंबई में मॉर्गन स्टैनली के सालाना इंडिया इन्वेस्टमेंट फोरम से पहले समी मोडक और सुंदर सेतुरामन से कहा कि लगातार एफपीआई प्रवाह इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत एक मजबूत और ऊंचे रिटर्न वाले बाजार के रूप में अपना आकर्षण बनाए रख पाता है या नहीं। मुख्य अंश:
अप्रैल के निचले स्तरों से भारतीय शेयर बाजार को तेजी से सुधरने में कैसे मदद मिली?
बाजार में सुधार के लिए तीन मुख्य कारकों को जिम्मेदार माना जा सकता है। पहला, आरबीआई ने फरवरी 2025 में अपनी मौद्रिक नीति में बदलाव किया, जिससे सरकार के सख्त वित्तीय समेकन की भरपाई हो गई। सख्त वित्तीय समेकन ने अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया था। दूसरा, विशेष रूप से बड़े शेयर आकर्षक कीमतों पर आ गए, जिससे फरवरी और मार्च में महत्त्वपूर्ण घरेलू खरीदारी शुरू हो गई, भले ही विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की। तीसरा, डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ जैसे अमेरिकी नीतिगत बदलावों से हिल चुकी दुनिया में भारत की मजबूती ने उसे दूसरों से अलग बनाए रखा।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) निवेश प्रवाह नरम क्यों बना हुआ है?
भारत का बाजार अब घरेलू निवेशकों द्वारा संचालित है। यह ऐसा रुझान है जो वर्ष 2015 में शुरू हुआ और दशकों तक चल सकता है। संस्थाओं और रिटेल सहित घरेलू निवेशक, नियमित खरीदार रहे हैं। इससे विदेशी निवेशकों के लिए खरीदारी की बहुत कम गुंजाइश बचती है, जब तक कि वे कुछ ऊपरी कीमतों पर दांव न लगाएं। जहां अन्य उभरते बाजार सस्ते मूल्यांकन की पेशकश कर सकते हैं, वहीं भारत का प्रीमियम पूंजी पर बेहतर रिटर्न, कम अस्थिर आय वृद्धि के लिहाज से उचित है। लगातार एफपीआई प्रवाह कॉरपोरेट निर्गमों में तेजी और भारत के एक मजबूत और ऊंचे रिटर्न वाले बाजार के रूप में आकर्षण बरकरार रखने की क्षमता पर निर्भर करेगा।
कुछ का मानना है कि भारत का ऊंचा मूल्यांकन घरेलू निवेश की वजह से है। आपकी इस पर क्या राय है?
सिर्फ घरेलू निवेश से भारत का मूल्यांकन महंगा हो सकता है, यह सही नहीं है। भारत ने 2002-2003 से उभरते बाजारों के मुकाबले प्रीमियम पर कारोबार किया है। यह 2015 में शुरू हुई घरेलू प्रवाह में तेजी से बहुत पहले की बात है। यह प्रीमियम भारतीय कंपनियों द्वारा बैलेंस शीट की मजबूती पर ध्यान केंद्रित करने और चीन जैसे समकक्षों की तुलना में पूंजी पर लगातार ऊंचे रिटर्न के कारण है।
अमेरिकी व्यापार अनिश्चितता निफ्टी कंपनियों की ईपीएस को कैसे प्रभावित करती है?
अमेरिका-भारत व्यापार भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 2 प्रतिशत है। अमेरिका के साथ एक त्वरित व्यापार समझौता होने की संभावना है, जिससे प्रत्यक्ष जोखिम सीमित होगा। हालांकि, अमेरिकी व्यापार नीतियों के कारण वैश्विक विकास धीमा होने से भारत अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगा, क्योंकि इसके जीडीपी का 20 प्रतिशत वैश्विक जुड़ाव पर निर्भर करता है। हालांकि हम अमेरिकी मंदी की आशंका नहीं जता रहे हैं, लेकिन वैश्विक वृद्धि में गिरावट आने की आशंका है, जिससे हमें भारत की आय के अनुमानों को पहले के अधिक आशावादी अनुमानों की तुलना में घटाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।
किन क्षेत्रों को आय में बड़ी कटौती का सामना करना पड़ेगा और कौन से मजबूत बने रहेंगे?
फाइनैंशियल, कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी और औद्योगिक वस्तुओं जैसे घरेलू-केंद्रित क्षेत्रों के अधिक मजबूत बने रहने की उम्मीद है। इसके विपरीत, सॉफ्टवेयर सेवाओं, ऊर्जा और सामग्री (सीमेंट को छोड़कर, जो एक घरेलू क्षेत्र है) जैसे क्षेत्रों को आय में कटौती का सामना करना पड़ सकता है। अगले 12 महीनों में हमें 14-15 फीसदी की आय वृद्धि की उम्मीद है। पोर्टफोलियो को लेकर हमारा नजरिया फाइनैंशियल, कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी और इंडस्ट्रियल में ओवरवेट, एनर्जी और मैटेरियल पर ‘अंडरवेट’ और सॉफ्वेयर सेवाओं पर ‘तटस्थ’ है।