भारतीय शेयर बाजार में इस सप्ताह कई आर्थिक आंकड़ों, वैश्विक रुझानों और विदेशी निवेशकों की गतिविधियों पर निवेशकों की नजर रहेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले सप्ताह बाजार में सुस्ती देखी गई, जिसमें वैश्विक अनिश्चितताओं ने अहम भूमिका निभाई। BSE सेंसेक्स बीते सप्ताह 609.51 अंक यानी 0.74 फीसदी गिरा था, जबकि NSE निफ्टी में 166.65 अंक यानी 0.66 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस सप्ताह भारत के औद्योगिक और विनिर्माण उत्पादन के अप्रैल महीने के आंकड़े, जो 28 मई को जारी होंगे, और पहली तिमाही के GDP के आंकड़े आर्थिक सुधार की दिशा को स्पष्ट करेंगे। इसके अलावा, मॉनसून की प्रगति पर भी बाजार की नजर रहेगी, क्योंकि यह कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
वैश्विक स्तर पर अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी और अमेरिका के बढ़ते कर्ज के बोझ ने उभरते बाजारों, खासकर भारत, पर दबाव डाला है। रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड के रिसर्च प्रमुख अजित मिश्रा ने कहा कि अमेरिकी बॉन्ड बाजार, फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) के मिनट्स और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के घटनाक्रम बाजार की दिशा तय करेंगे। इसके साथ ही मई डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट की मासिक समाप्ति और बजाज ऑटो, औरोबिंदो फार्मा और IRCTC जैसी कंपनियों के चौथी तिमाही के नतीजे भी निवेशकों का ध्यान आकर्षित करेंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2025 के लिए सरकार को रिकॉर्ड 2.69 लाख करोड़ रुपये के डिविडेंड की घोषणा की, जो पिछले साल की तुलना में 27.4 फीसदी अधिक है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे सरकार को अमेरिकी टैरिफ और पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण रक्षा खर्च में बढ़ोतरी जैसी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। मिश्रा ने कहा कि इस डिविडेंड से सरकार की वित्तीय नीतियों पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख सिद्धार्थ खेमका ने कहा कि मजबूत आर्थिक आंकड़ों और कॉरपोरेट आय के समर्थन से बाजार में स्थिरता बनी रह सकती है। हालांकि, लेमॉन मार्केट्स डेस्क के विश्लेषक गौरव गर्ग ने चेतावनी दी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बाजार में कुछ समय तक उतार-चढ़ाव रह सकता है।
जियोजित इनवेस्टमेंट्स लिमिटेड के रिसर्च प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि RBI के रिकॉर्ड डिविडेंड से वित्तीय समेकन की उम्मीदें बढ़ी हैं, जिसका असर भारतीय बॉन्ड यील्ड में कमी के रूप में दिख रहा है। निवेशक अब भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता और मजबूत घरेलू आर्थिक संकेतकों पर भी ध्यान दे रहे हैं।
(PTI के इनपुट के साथ)