बाजार पिछले कुछ महीनों से एक दायरे में कारोबार कर रहे हैं। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के कार्यकारी निदेशक और मुख्य निवेश अधिकारी शंकरन नरेन ने पुनीत वाधवा को फोन पर बातचीत में बताया कि बाजारों के लिए सबसे बड़ा जोखिम ऊंचे मूल्यांकन और विभिन्न प्रकार के निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में धन उगाहना है जो कम-से-कम सस्ता नहीं है। उनसे बातचीत के अंश:
क्या आप मानते हैं कि जीएसटी 2.0 सरकार की तरफ से एक तरह से मिनी-बजट था? क्या उसने अपने सारे दांव इस्तेमाल कर लिए हैं?
यह वास्तव में मिनी-बजट था जो बहुत सकारात्मक, समय पर और अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी था। खपत संबंधित प्रोत्साहन की जरूरत थी, खासकर जब से उपभोक्ता से जुड़े क्षेत्रों में मंदी आई थी। कहा जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का परिदृश्य 7.8 प्रतिशत पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद), 4.4 प्रतिशत पर राजकोषीय घाटा, चालू खाता घाटा जीडीपी के 0.6 प्रतिशत पर (20 वर्षों में सबसे कम) और 2011 के बाद से सबसे कम महंगाई दर के साथ अच्छी स्थिति में है, जिससे नीति निर्माताओं को वृद्धि को बढ़ावा देने के उपायों के लिए गुंजाइश दिखी है। जीएसटी 2.0 जैसा कदम मांग को जरूरी बढ़ावा देने के लिए आवश्यक और फायदेमंद भी था।
क्या निवेशकों की मानसिकता पर बाजार और आर्थिक आधारभूत तत्वों के आधार पर निवेश करने के बजाय लालच हावी हो गया है?
जब आपके पास बहुत मजबूत आर्थिक परिवेश हो और लगातार 12 साल तक अच्छे रिटर्न का रिकॉर्ड हो तो निवेशक अक्सर विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में जोखिमों को कम आंकते हैं। इससे लंबी अवधि के अनुशासन पर जोर देना मुश्किल हो जाता है।
क्या लार्ज, मिड या स्मॉलकैप का मूल्यांकन आकर्षक लग रहा है?
इस समय हमें भारतीय इक्विटी बाजार में बुलबुले जैसी स्थिति नहीं दिखाई दे रही है। मगर बाजार ज्यादा सस्ते भी नहीं हैं। लार्जकैप के मुकाबले मिडकैप और स्मॉलकैप में जोखिम हैं। कुल मिलाकर, मूल्यांकन पिछले 18 महीनों से भी ज्यादा समय से चुनौती बने हुए हैं और आज भी यही स्थिति है।
इस समय भारतीय शेयर बाजारों के लिए तीन सबसे बड़े जोखिम क्या हैं?
सबसे बड़ा जोखिम है ऊंचे भाव और विभिन्न प्रकार के निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में ऐसा धन जुटाना है जो कम से कम सस्ता नहीं है। इन जोखिमों का क्या असर होगा, यह कहना अनिश्चित है क्योंकि रुझान लंबे समय तक बने रह सकते हैं। ऐसे परिदृश्य में सबसे अच्छा तरीका है ऐसेट एलोकेशन का अभ्यास करना।
क्या अब पूंजीगत व्यय के बजाय खपत, निर्यात के बजाय घरेलू अर्थव्यवस्था, या मूल्य के बजाय वृद्धि पर दांव लगाने का समय है?
केवल पूंजीगत व्यय के बजाय खपत या मूल्य के बजाय वृद्धि को चुनने से समस्या का समाधान नहीं होता। सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है परिसंपत्ति आवंटन यानी विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में पर्याप्त रूप से विविधता। मौजूदा बाजार परिवेश में जोखिमों से निपटने का यही एकमात्र तरीका है।
आपने कई बाजार चक्र देखे हैं। क्या मौजूदा बाजार चक्र पुराने दौर जैसा है?
मौजूदा बाजार चक्र पहले के दौर जैसा नहीं है। आज, व्यापक आर्थिक स्थिति बेहद मजबूत है, जो पहले नहीं थी। अब केवल मूल्यांकन और धन जुटाने में निवेशकों की लगातार रुचि ही मुद्दे हैं। कोई वृहद आर्थिक चिंताएं नहीं हैं, सिर्फ ऊंचा मूल्यांकन और सभी प्रकार के धन उगाहने में निवेशकों की लगातार रुचि है।