जीक्वांट इन्वेस्टेक के संस्थापक शंकर शर्मा ने कहा है कि भारतीय इक्विटी बाजारों में चार साल की तेजी पुरानी पड़ गई है। नई दिल्ली में बिज़नेस स्टैंडर्ड के मंथन कार्यक्रम में शर्मा ने कहा कि बाजारों की अभी समस्या यह है कि वे पिछले चार साल में-23 मार्च 2020 से कोविड के बाद से ही- पहले ही तेजी देख चुके हैं।
उन्होंने कहा कि आंकड़े साफ बताते हैं कि तेजी का कोई भी बाजार पांच साल से ज्यादा नहीं टिकता। हम पांचवें साल में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में तेजी के बाजार मोटे तौर पर मुश्किल भरे हो जाते हैं जिनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। तेजी का यह दौर अगर अपनी युवावस्था (पहले या दूसरे साल में) में होता तो मिडकैप व स्मॉलकैप से जुड़े नियामकीय मसलों को बाजार ने झटक दिया होता। लंबी तेजी वाले बाजार के लिए ये समस्याएं झटका तो देती ही हैं।
शर्मा के मुताबिक आदर्श रूप में बाजारों की तेजी के लिए संकेतक के तौर पर घोड़े का इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि यह तेज गति से लंबी दूरी तक दौड़ सकता है जबकि एक सांड ज्यादा से ज्यादा थोड़ी दूरी तक दौड़ सकता है जिसमें भी उसे विराम लेना पड़ता है।
मिडकैप व स्मॉलकैप शेयरों ने पिछले कुछ हफ्तों में गिरावट दर्ज की है और दोनों ही सूचकांकों में तब भारी नरमी देखने को मिली जब बाजार नियामक सेबी ने इन दोनों सेगमेंट में जरूरत से ज्यादा महंगे भावों को लेकर चेतावनी दी। मिडकैप व स्मॉलकैप सूचकांकों में शामिल वैयक्तिक शेयरों में गिरावट काफी ज्यादा रही है।
शर्मा का मानना है कि बाजार नियामक सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक ने काफी अच्छा काम किया। उनका यह भी मानना है कि सेबी ने मिड व स्मॉलकैप शेयरों में बुलबुले को लेकर सही समय पर अपनी चिंता जताई।
उन्होंने कहा कि सेबी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि उन्होंने मिड व स्मॉलकैप की तेजी की हवा निकाल दी। सेबी काफी सक्रिय है और बुच ने अत्यधिक मूल्यांकन की बात कहकर काफी अच्छा काम किया।
शर्मा ने कहा कि बाजारों में अप्रैल-मई 2024 में होने वाले आगामी लोक सभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के जीतने की संभावना का असर पहले ही दिख चुका है। इसलिए भाजपा के चुनाव जीतने से बाजारों में बड़ी तेजी नहीं आ सकती है। आपको चुनाव परिणामों को लेकर बहुत ज्यादा आशावादी नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘यदि 2004 के हालात (जब राजग को इंडिया शाइनिंग के बावजूद शिकस्त खानी पड़ी थी) फिर से दोहराए जाते हैं तो मैं निवेश के लिए नकदी के साथ तैयार रहूंगा क्योंकि यह खरीदारी का मौका होगा। जैसा कि कहा जाता है, बाजार वफादार साथी नहीं हैं। वे इसकी परवाह नहीं करते कि कौन देश चला रहा है। 2004 में बाजार उस वक्त 10 प्रतिशत गिर गए थे जब यूपीए के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई थी। बाद में 2009 के चुनाव परिणाम के बाद बाजारों में बड़ी तेजी आई थी।’
शर्मा बढ़ोतरी के अवसरों को देखते हुए स्मॉलकैप शेयरों पर उत्साहित हैं। उनका मानना है कि क्षेत्रीय कंपनियां पूरे भारत में अपनी मौजूदगी बनाए बगैर बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं, क्योंकि उनमें अपने परिचालन से जुड़े राज्यों में तेजी से आगे बढ़ने की पर्याप्त संभावनाएं हैं। उनका कहना है कि स्मॉलकैप शेयर माफिया की तरह हैं जिनसे जुड़ना तो आसान है लेकिन बाहर निकलना कठिन है। इसके विपरीत शर्मा को लार्जकैप शेयरों में सीमित प्रतिफल के अवसर दिख रहे हैं, क्योंकि भारतीय कंपनियों में पिछले दशक के समान ज्यादा तेजी से बढ़ने की संभावना नहीं है।
उन्होंने कहा कि अक्सर एक भारतीय का प्रमुख निवेश माध्यम रियल एस्टेट होता है। इसके बाद उसकी पसंद सोना और बैंक सावधि जमाएं होती हैं। उन्होंने कहा, ‘भले ही उद्योग द्वारा निवेश के 60:40 सिद्धांत को प्रचारित किया जाता है लेकिन मैं इसका बड़ा प्रशंसक नहीं हूं। लोग भले ही इस पर भरोसा करते हों, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। आखिरकार, यह जोखिम समायोजित प्रतिफल से जुड़ा है।’