दलाल पथ पर पिछले पांच महीनों से चल रही बिकवाली के कारण लंबे अंतराल के बाद भारत के शेयर बाजार का मूल्यांकन प्रीमियम अमेरिकी शेयर बाजार से कम हो गया है। बेंचमार्क सेंसेक्स का प्राइस टु अर्निंग (पीई) मल्टीपल 2009 के बाद पहली बार डाऊ जोंस इंडस्ट्रीयल एवरेज के अर्निंग मल्टीपल से नीचे आया है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार सेंसेक्स वर्तमान में पिछले 12 महीनों के प्रति शेयर आय के 21.8 गुना पर कारोबार कर रहा है जबकि पिछले साल मार्च के अंत में इसका पीई मल्टीपल 23.8 गुना था। इसकी तुलना में डाऊ जोंस इंडस्ट्रीयल एवरेज 22.4 गुना पीई पर कारोबार कर रहा है तो पिछले साल मार्च के 22.8 गुना से मामूली कम है।
पिछले 20 वर्षों से सेंसेक्स डाऊ जोंस के औसत मूल्यांकन से करीब 25 फीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा था। मार्च 2005 से सेंसेक्स का पीई 21 गुना था जबकि डाऊ जोंस का औसत पीई मल्टीपल 16 गुना था। पिछले तीन वर्षों में इन बेंचमार्क सूचकांकों के मूल्यांकन में विपरीत बदलाव आया है। कोविड महामारी के बाद मार्च 2022 में सेंसेक्स का पीई 26 गुना के उच्चतम स्तर पर था, जो धीरे-धीरे कम हो गया और डाऊ जोंस सितंबर 2022 के 15.6 गुना के निचले स्तर तेजी से बढ़ा है। इससे डाऊ जोंस वर्तमान में पिछले 20 साल के अपने औसत से करीब 40 फीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है जबकि सेंसेक्स अपने ऐतिहासिक औसत के केवल 4 फीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि इसका कारण हाल की तिमाही में भारत की तुलना में अमेरिकी कंपनियों की आय में अपेक्षाकृत तेज वृद्धि है और निवेशकों को उम्मीद है कि निकट भविष्य में भी आय में वृद्धि बनी रहेगी। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में शोध एवं इक्विटी स्ट्रैटजी के सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘दिसंबर 2024 में अमेरिका की कंपनियों की कमाई सालाना आधार पर 16 फीसदी बढ़ी थी जबकि भारत में महज 6 फीसदी का इजाफा हुआ। 2025 में भी अमेरिका में वृद्धि की यह रफ्तार बनी रहने की उम्मीद है जबकि भारत में अधिकतम 11 फीसदी वृद्धि का अनुमान है।’
उनके अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपी आई) ने आय में नरमी के कारण भारतीय बाजार के लिए अपने पूंजी आवंटन में कटौती करते हुए अमेरिका, चीन एवं पश्चिमी यूरोप जैसे आकर्षक बाजारों की ओर रुख किया। धनंजय ने कहा, ‘भारत में कमजोर आय वृद्धि के कारण भारतीय बाजार के लिए प्राइस टु अर्निंग ग्रोथ (पीईजी) अनुपात अमेरिकी बाजार के मुकाबले अधिक हो गया जिससे एफपीआई द्वारा बिकवाली को बढ़ावा मिला।’
एफपीआई ने पिछले साल सितंबर के बाद भारतीय शेयर बाजार से करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की। इस दौरान सेंसेक्स में 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि डाऊ जोंस लगभग स्थिर रहा। डाऊ जोंस में शामिल अमेरिका की शीर्ष 30 कंपनियों की एकीकृत आय में पिछले 12 महीनों के दौरान 8.9 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि सेंसेक्स कंपनियों की एकीकृत आय में 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। मगर रुपये में आई नरमी को समायोजित करने के बाद डॉलर में सेंसेक्स कंपनियों की आय वृद्धि महज 5.6 फीसदी रही। इलारा कैपिटल बिनो पाथिपरम्पिल ने वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही की अपनी समीक्षा में लिखा है, ‘हमने अपने कवरेज में शामिल कंपनियों के लिए वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 के आय अनुमानों में 6 फीसदी की कटौती की है। यह कटौती उपभोग में जारी नरमी और सरकारी पूंजीगत व्यय में कमी को दर्शाती है। अगर अगले छह महीनों के दौरान इनमें उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई तो वित्त वर्ष 2026 के लिए हमारे अनुमान पर जोखिम हो सकता है।’
एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री (अमेरिका एवं कनाडा) सत्यम पांडे ने हाल में बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा था, ‘अमेरिका के प्रमुख व्यापार साझेदारों पर लगाए गए शुल्क से अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ने के साथ-साथ उपभोक्ता मांग में गिरावट आ सकती है जो कंपनियों की वृद्धि एवं आय के लिए है।’