बाजार नियामक सेबी के चेयरमैन सी.बी. भावे ने ज्यादा से ज्यादा पूंजी आवक को आकर्षित करने के लिहाज से छूट को वैध करार दिया है।
इसके अलावा उन्होंने म्युचुअल फंड से संबंधित मसलों को हल करने के लिए एक अलग कमिटी बनाने की भी बात कही है। मालूम हो कि जनवरी 2008 से छूट को बतौर एंट्री लोड लेना शुरू किया गया था जब सेबी ने इस बात की घोषणा की थी कि सीधे निवेश करने वालों के लिए किसी प्रकार के एंट्री लोड(2.25 फीसदी) नही लिए जाएंगे।
लेकिन इस संबंध में एक वितरक का कहना है कि इस कदम के जरिए सेबी निवेशकों को कुछ राहत देना चाहता था लेकिन वितरकों ने इसे बतौर औजार की तरह अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाने में करना शुरू कर दिया। लेकिन इस कदम के बावजूद भी निवेश या फिर निवेशकों की संख्या में महज पांच फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है।
बल्कि आलम यह है कि बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ गठजोड़ न होने के कारण ऑनलाइन मैकेनिज्म भी मनमाफिक नजीजे देने में नाकाम साबित हुआ है। जबकि विदेशी और प्राइवेट खिलाड़ियों के बना गठजोड़ इसलिए नतीजे नही दे पाया है क्योंकि पेमेंट गेटवे की समस्या बरकरार है। लिहाजा,छूट अगर वैध करार हो जाते तो इसका मतलब यह होता कि निवेशक स्थानीय स्तर पर भी उपलब्ध वितरकों का इस्तेमाल जारी रख सकते थे और कम एंट्री लोड का लाभ उठा पाते।
एक्रॉन वेल्थ के निदेशक गोविंद पाठक का कहना है कि छूट को वैध करार देना निवेशकों के लिए शुभ संकेत है और इसके जरिए निवेशक वितरकों द्वारा एडवाइजरी और सेवा के रूप में जोड़े जाने वाले वैल्यू पर बतौर कीमत डाला जा सकता है। हालांकि, कुछ वितरक छूट देने के बजाए प्रक्रि या में और पारदर्शिता चाहते हैं।