कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फै्रं कलिन टेम्पलटन (एफटी) म्युचुअल फंड मामले में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को फटकार लगाई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि बाजार नियामक इस पूरे प्रकरण से प्रभावी ढंग से निपटने में असफ ल रहा है।
न्यायालय ने शनिवार को अपने आदेश में कहा कि एफटी ट्रस्टीज के निदेशकमंडल द्वारा 23 अप्रैल को पारित प्रस्ताव की प्रति सेबी पेश करने में नाकाम रहा। इस प्रस्ताव में कंपनी की म्युुचुअल फंड योजना बंद किए जाने का जिक्र किया गया था। न्यायालय ने कहा कि सेबी ने इस कंपनी द्वारा 14 अप्रैल को भेजे गए ई-मेल का भी कोई जवाब नहीं दिया। न्यायालय के अनुसार सेबी उसे 20 अप्रैल को एफटी न्यासी से मिले उस पत्र का भी जवाब नहीं दे पाया, जिसमें योजनाएं समेटने के लिए नियामक की अनुमति और दिशानिर्देशों की मांग की गई थी।
एफटी म्युचुअल फंड ने 23 अप्रैल को योजनाओं से तेजी से रकम निकासी और डेट बाजार में नकदी के अभाव का हवाला देते हुए अपनी छह योजनाएं बंद कर दी थी। उच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि सेबी को इस बात की सूचना नहीं थी कि न्यासियों ने नियम 39 के कुछ खास प्रावधानों (उपखंड ए और खंड बी) का अनुपालन भी किया था या नहीं। इन प्रावधानों में न्यासी उन परिस्थितियों का जिक्र निदेशकमंडल के सामने करते हैं और दो दैनिक सामाचार पत्रों और एक क्षेत्रीय अखबार में इसकी सूचना देते हैं, जिनकी वजह से योजनाएं बंद हो रही हैं। न्यायालय ने 336 पृष्ठों के अपने निर्णय में कहा, ‘सेबी के लिए भी इस तरह योजनाएं बंद होना एक असाधारण स्थिति थी। सेबी ने यह भी देखना जरूरी नहीं समझा कि न्यासियों ने नियम 39 के खंड (3) का अनुपालन किया था या नहीं।’
न्यायालय ने फॉरेंसिक ऑडिटर नियुक्त करने के आदेश की प्रति दाखिल नहीं करने के लिए भी सेबी को फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सुनवाई 12 अगस्त को ही शुरू हो गई थी, लेकिन सेबी ने 2 सितंबर को उसके समक्ष आदेश की प्रति पेश की। न्यायालय ने कहा, ‘एक नियामक के रूप में सेबी को एफटी से जवाब-तलब कर ना चाहिए था और म्युचुअल फंड दिशानिर्देशों के प्रावधानों के अनुपालन के संबंध में इसके न्यासी एवं प्रायोजक से भी सवाल-जवाब करना चाहिए था। अगर इन योजनाओं के निवेशक कह रहे हैं कि इस पूरे मामले में सेबी मूकदर्शक बना रहा तो उनकी बात पूरी तरह सही है।’
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब सेबी म्युचुअल फंड योजनाएं बंद करने से संबंधित नियमों की समीक्षा कर सकता है। मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार यूनिटधारकों की सहमति हासिल करने के बाद सेबी से बिना किसी मंजूरी लिए न्यासी म्युचुअल फंड योजनाएं बंद कर सकते हैं।
थिंकिंग लीगल की संस्थापक वनीसा अग्रवाल ने कहा, ‘म्युचुअल फंड की स्थापना एक न्यास के रूप में की जाती है और इस समय निर्णय लेने का अधिकार न्यासी और अंशधारकों पर छोड़ दिया गया है। चूंकि, सेबी खुदरा निवेशकों को प्रतिभूति बाजार में म्युचुअल फंडों के जरिये निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, इसलिए अब नियम-कायदे कड़े हो सकते हैं।’ कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सेबी चाहे तो वह उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर सकता है।
