विश्लेषकों का मानना है कि वित्त विधेयक में प्रस्तावित बदलाव म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग के लिए नकारात्मक है और इससे निवेशक इक्विटी योजनाओं की ओर रुख कर सकते हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि प्रस्तावित संशोधन से गोल्ड फंड और अंतरराष्ट्रीय फंड भी प्रभावित होंगे। उनका मानना है कि बैंक एफडी ज्यादा आकर्षक बन जाएगी, क्योंकि डेट फंड और बैंक एफडी, अब दोनों की परिपक्वता राशि समान कराधान के दायरे में आएगी। प्रस्तावित बदलाव 1 अप्रैल से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष (2023-23) से लागू होने की संभावना है।
रोबो एडवायजरी फर्म फिनटू के संसथापक मनीष पी हिंगर के अनुसार, यदि इस प्रस्ताव पर अमल हुआ तो खासकर रिटेल श्रेणी में सभी डेट फंडों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि ज्यादा पूंजी वाले लोग बैंक एफडी जैसे सुरक्षित निवेश विकल्पों को चुन सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘हम दीर्घावधि डेट फंडों से पूंजी प्रवाह इक्विटी फंडों में जाते देख सकते हैं, और सॉवरिन गोल्ड बॉन्डों, बैंक एफडी, और डेट श्रेणी में गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर की भी लोकप्रियता बढ़ सकती है। यह बैंकों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि वे ऊंची ब्याज दरों की मदद से ग्राहक आकर्षक कर सकते हैं और अपनी उधारी तथा बचत बहीखाता आकार बढ़ा सकते हैं।’
सीएलएसए के विश्लेषकों का कहना है कि 6.6 लाख करोड़ रुपये की लिक्विड म्युचुअल फंड श्रेणी ज्यादा प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि ये मुख्य तौर पर अल्पावधि योजनाएं होती हैं और कर के संबंध में इन पर ज्यादा बदलाव नहीं दिखता। उनका कहना है कि यह घटनाक्रम बैंक ऋण/जमाओं के लिए कुछ हद तक सकारात्मक है। उनका अनुमान है कि एमएफ उद्योग में करीब 8 लाख करोड़ रुपये की गैर-लिक्विड डेट एयूएम (कुल एयूएम का 19 प्रतिशत) हैं।
सीएलएसए के आदर्श पारसरम्पुरिया ने मोहित सुराणा, पिरान इंजीनियर और श्रेया शिवानी के साथ मिलकर तैयार की गई रिपोर्ट में लिखा है, ‘हमारे कवरेज वाली एएमसी के लिए, नॉन-लिक्विड डेट श्रेणी की योजनाओं से राजस्व भागीदारी 11-14 प्रतिशत है। हमारा मानना है कि इस बदलाव का कम प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि एएमसी के लिए ज्यादातर राजस्व इक्विटी एयूएम से हासिल होता है और नॉन-लिक्विड डेट एयूएम न तो बहुत ज्यादा वृद्धि और न ही ज्यादा लाभ वाला सेगमेंट नहीं है।’
मौजूदा समय में तीन वर्षों के दौरान डेट फंड निवेश से मिलने वाले सभी लाभ पर इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20 प्रतिशत और बगैर इंडेक्सेशन के 10 प्रतिशत की दर से दीर्घावधि पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) कर लगता है। दूसरी तरफ, पिछले तीन साल के निवेश पर प्रतिफल अल्पावधि पूंजीगत लाभ कर (एसटीसीजी) के हिसाब से लगता है, जिसमें निवेशक को अपनी स्लैब दर के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है।
एक म्युचुअल फंड हाउस के वरिष्ठ फंड प्रबंधक ने कहा, ‘यह घटनाक्रम नकारात्मक है और इससे डेट फंडों से निकासी बढ़ सकती है। यह ढांचागत बदलाव है। हालांकि इसके बारे में अभी स्पष्ट तरीके से कुछ कहना जल्दबाजी होगी। यदि ये प्रस्ताव क्रियान्वित हुए तो डेट म्युचुअल फंडों में पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है।’