भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्युचुअल फंड (एमएफ) और बीमा को एकीकृत करने वाली प्रस्तावित कॉम्बिनेशन योजना पर चर्चा शुरू कर दी है। इस मामले पर नियामक की म्युचुअल फंड समिति की अगली बैठक में विचार-विमर्श किया जाएगा। सेबी अध्यक्ष माधवी पुरी बुच ने कहा कि एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) ने नियामक को सुझाव सौंप दिए हैं। फंडों पर सेबी की परामर्श समिति एक बार पहले ही इन सुझावों की समीक्षा कर चुकी है।
बुच ने कहा, ‘हम विचार-विमर्श के जरिए काम करते हैं। हमारी म्युचुअल फंड सलाहकार समिति ने फीडबैक दिया है और अतिरिक्त डेटा का अनुरोध किया है। अगली बैठक में इस मामले पर फिर से विचार किया जाएगा।’
उद्योग सूत्रों ने संकेत दिया कि समिति की अगली बैठक अगले सप्ताह होनी है। आगामी चर्चाओं के बाद सेबी प्रस्तावित योजना पर परामर्श पत्र जारी कर सकता है। जब उनसे पूछा गया कि नई योजना बीमा उद्योग की मौजूदा यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लांस (यूलिप) से कितनी अलग होगी तो बुच ने कहा, ‘आपको इसका पता पेशकश के बाद ही चलेगा।’
बुच ने ये बातें एसबीआई फंड की सूक्ष्म एसआईपी स्कीम ‘जननिवेश’ शुरू करने के दौरान कहीं। जननिवेश में निवेशक 250 रुपये जैसे कम निवेश के साथ एसआईपी कर सकेंगे। नए निवेशकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से शुरू की गई यह योजना एसबीआई म्युचुअल फंड के बैलेंस्ड एडवांटेज फंड का हिस्सा है।
इस अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अध्यक्ष सीएस शेट्टी ने घोषणा की कि बैंक ने इस योजना के लिए ट्रांजेक्शन शुल्क माफ कर दिया है। शेट्टी ने कहा, ‘सबको वित्तीय सेवा के प्रति अपनी वचनबद्धता के तौर पर हम यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि इस योजना में कोई शुल्क या कमीशन न वसूला जाए। हमारे ग्राहकों के लिए यह नि:शुल्क सेवा होगी जिससे मजबूत वित्तीय भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।’
जनवरी में सेबी ने एक परामर्श पत्र जारी किया था। इसमें म्युचुअल फंडों के लिए छोटे एसआईपी को अधिक किफायती बनाने के उपायों का प्रस्ताव किया गया था। इन उपायों में निवेशक शिक्षा और जागरूकता कोष का उपयोग करना भी शामिल है जिससे कि परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) को इस तरह की एसआईपी से घाटे जैसी स्थिति न आए और उन्हें भरपाई में मदद मिले। साथ ही म्युचुअल फंड निवेश शुल्क पर उद्योग की कंपनियों की ओर से रियायती दरें शामिल थीं। हालांकि, इन मसौदा मानकों को अभी भी सेबी बोर्ड की मंजूरी का इंतजार है।
बुच ने इस बात पर जोर दिया कि इन्वेस्टर एजूकेशन ऐंड अवेयरनेस फंड से खर्च कुल फंड का एक छोटा ही हिस्सा होगा। उन्होंने कहा, ‘पूरा तंत्र (म्युचुअल फंड, आरटीए यानी रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट, डिपॉजिटरी) साझेदारी की भावना के साथ आगे आया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नई योजना दो से तीन साल के भीतर ब्रेक-ईवन यानी घाटे की स्थिति से निकल आए। इससे म्युचुअल फंड इस पेशकश को लागत बोझ के बजाय वास्तविक वृद्धि के अवसर के रूप में देख सकेंगे।’
प्रस्तावित ढांचे के तहत सेबी ने 250 रुपये की एसआईपी पहल के लिए तीन योजना की सीमा का सुझाव दिया है।