साल 2025 में म्युचुअल फंडों का शुद्ध इक्विटी निवेश 4 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। इस साल घरेलू फंड मैनेजरों ने देसी शेयरों में अब तक 4.02 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। पिछले कैलेंडर वर्ष में उन्होंने रिकॉर्ड 4.3 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था। अगर निवेश की यही रफ्तार बरकरार रही तो म्युचुअल फंड न केवल पिछले साल के खरीद आंकड़े को पार कर जाएंगे, बल्कि 5 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े तक भी पहुंच सकते हैं। कैलेंडर वर्ष 2025 म्युचुअल फंडों का इक्विटी खरीद का लगातार 5वां साल होगा। हाल के वर्षों में निरंतर निवेश को महामारी के बाद के मजबूत बाजार प्रतिफल से भी समर्थन मिला है।
लेकिन इस साल की मजबूती उल्लेखनीय है। सुस्त बाजार परिदृश्य और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की लगातार बिकवाली के बावजूद यह देखने को मिल रही है। एफपीआई ने घरेलू बाजार से 1.6 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं। नतीजतन, बेंचमार्क निफ्टी 50 इंडेक्स में इस साल अब तक केवल 5 फीसदी की ही बढ़त आ पाई है।
म्युचुअल फंडों की खरीदारी ने एफपीआई की भारी बिकवाली की भरपाई की है जिससे घरेलू शेयर बाजार में गिरावट सीमित रही है। लेकिन बाजार पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी है कि घरेलू निवेश जारी रहना इस बात पर निर्भर करेगा कि बाजार में कमजोरी के बावजूद निवेशक धारणा बरकरार रहती है या नहीं।
एक फंड हाउस के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, मजबूत घरेलू सहभागिता देखना उत्साहवर्धक है। फिर भी बाजार का निरंतर प्रदर्शन अहम बना हुआ है। उन्होंने कहा, पिछली गिरावट के दौरान भी खुदरा निवेशकों ने उल्लेखनीय विश्वास दिखाया है, लेकिन लंबे समय तक मंदी का असर धारणा पर पड़ सकता है। सकारात्मक पक्ष यह है कि मूल्यांकन अब दीर्घकालिक औसत से नीचे हैं, जो मध्यम अवधि के रिटर्न के लिए अच्छा संकेत है।
म्युचुअल फंडों के निवेश में हालिया तेजी विभिन्न इक्विटी श्रेणियों में लगातार निवेश आते रहने से आई है, जबकि इस दौरान उतार-चढ़ाव और अल्पावधि में गिरावट के दौर भी रहे हैं। अकेले सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) ने जनवरी से अगस्त 2025 के बीच 2.2 लाख करोड़ रुपये के सकल निवेश का योगदान दिया है। इसमें से करीब 90 फीसदी इक्विटी योजनाओं में लगाया गया है।
इस दौरान ऐक्टिव इक्विटी फंडों में कुल शुद्ध निवेश (एसआईपी और एकमुश्त निवेश सहित) करीब 2.4 लाख करोड़ रुपये रहा। एसआईपी निवेश की स्थिरता घरेलू इक्विटी को अहम सहारा देती रही है जिससे एफपीआई निवेश पर बाजार की निर्भरता कम करने में मदद मिली है।
ताजा निवेश के अलावा फंड प्रबंधकों की इक्विटी खरीद हाइब्रिड योजनाओं के भीतर पोर्टफोलियो समायोजन और नकदी होल्डिंग में बदलाव में भी दिखती है।
पिछले दो वर्षों में जहां म्युचुअल फंड निवेश की मात्रा बड़ी दिखती है, वहीं उद्योग विश्लेषक इसे भारत के घरेलू बचत पैटर्न में दीर्घकालिक संरचनात्मक रुझान के हिस्से के रूप में देखते हैं।
एचएसबीसी के शोध प्रमुख (भारत) योगेश अग्रवाल ने 25 अगस्त के एक नोट में लिखा था, हाल के वर्षों में भारतीय इक्विटी के घरेलू स्वामित्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन इसकी पहुंच अभी भी कम है। उन्होंने कहा, घरेलू वित्तीय परिसंपत्तियों का 8 फीसदी से भी कम हिस्सा इक्विटी में है जबकि अमेरिका में अपने चरम पर यह 35 फीसदी तक था। चीन में भी उच्च घरेलू भागीदारी के कारण ए-शेयरों का मूल्यांकन एच-शेयरों की तुलना में अधिक होता है।