खुदरा निवेशकों के बीच सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ी है। जीरोधा फंड हाउस के एक हालिया अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। उद्योग की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) में एसआईपी की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी हो गई है। एसआईपी खातों की कुल संख्या भी मार्च 2022 के 5.28 करोड़ से बढ़कर इस साल जुलाई तक 9.34 करोड़ हो गई है। इसी अवधि के दौरान एसआईपी में लगने वाली रकम भी 12,300 करोड़ रुपये से बढ़कर 23,300 करोड़ रुपये हो गई।
एसआईपी, निवेशकों (खासकर वेतनभोगी वर्ग) को उनकी आय और निवेश में तालमेल बिठाने की सुविधा प्रदान करती है। यह निवेश के समय से संबंधित उहापोह से बचाते हुए रुपी कॉस्ट एवरेजिंग का भी फायदा दिलाती है। इसका मतलब यह है कि दाम बढ़ने पर अगर कम यूनिट मिलते हैं तो दाम घटने पर ज्यादा यूनिट मिलते हैं यानी आपकी लागत औसत हो जाती है।
निवेशक स्टेप-अप रणनीति के जरिये अपनी एसआईपी को और भी अधिक प्रभावी बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें समय-समय पर एसआईपी में निवेश की जाने वाली राशि को बढ़ानी होती है। जीरोधा के अध्ययन में ऐसे ही एक मामले की चर्चा की गई है, जिसमें कोई निवेशक अप्रैल 2005 से मार्च 2024 तक निफ्टी लार्ज मिडकैप 250 टोटल रिटर्न इंडेक्स (टीआरआई) में हर महीने 1,000 रुपये का निवेश करती है।
सामान्य एसआईपी के साथ निवेशक के खाते में कुल 12.6 लाख रुपये होते हैं। वहीं, अगर वह 5 फीसदी सालाना स्टेप-अप के साथ निवेश करती तो उसके पास कुल 17 लाख रुपये होते। हर साल 15 फीसदी स्टेप-अप के साथ अंत में उसके बाद 35 लाख रुपये होते, जबकि अगर स्टेप-अप के तौर पर हर साल 25 फीसदी का इजाफा किया जाता तो उसके पास भारी भरकम 84.5 लाख रुपये का कोष होता।
एसआईपी में निवेश राशि बढ़ाने यानी स्टेप-अप के लिए कोई सही अथवा गलत समय नहीं होता है। फिनोवेट की सह-संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी नेहल मोटा ने कहा, ‘यह आय बढ़ने के अनुरूप करना चाहिए। स्टेप-अप विकल्प अपनाकर आप अपने लक्ष्यों को जल्दी हासिल कर सकते हैं।’
बाजार के उतार-चढ़ाव को देखकर फैसले नहीं करने चाहिए क्योंकि एसआईपी दीर्घावधि निवेश के लिहाज से और अधिकतम लाभ हासिल करने के लिए होता है।
सेबी के पंजीकृत निवेश सलाहकार (आरआईए) और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार कहते हैं, ‘आप कभी भी स्टेप-अप कर सकते हैं बशर्ते आप ऐसा अपनी जोखिम उठाने की क्षमता के साथ परिसंपत्ति आंवटन को ध्यान में रखकर ऐसा करें।’
जानकार समय-समय पर पोर्टफोलियो की समीक्षा करने की भी सलाह देते हैं। कोटक म्युचुअल फंड के सेल्स ऐंड मार्केटिंग प्रमुख मनीष मेहता का कहना है, ‘वेतन बढ़ने से ठीक पहले हर साल अप्रैल और मई में अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें।’
अभिषेक कुमार चेताते हैं कि निवेशकों को जरूरत से ज्यादा निवेश बढ़ाने से बचना चाहिए क्योंकि एसआईपी के लिए जरूरत से ज्यादा प्रतिबद्धता आपके बजट को बिगाड़ सकती है।
कभी-कभार नौकरी चली जाए अथवा किसी गंभीर बीमारी का इलाज कराना पड़े या फिर किसी आपातकालीन स्थिति में हर महीने होने वाले खर्च प्रभावित हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में एसआईपी को रोका जा सकता है। जब मूल्यांकन चेतावनी देने लगे तो उस स्थिति में भी रुका जा सकता है।
मोटा का कहना है, ‘अगर आपको लगता है कि बाजार का मूल्यांकन बहुत ज्यादा हो गया है तो आप इक्विटी एसआईपी में निवेश रोक सकते हैं और मूल्यांकन सही होने पर दोबारा शुरू कर सकते हैं।’
निवेशक अगर कोई परिसंपत्ति खरीदना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में भी एसआईपी रोक सकते हैं। कुमार कहते हैं, ‘आप इक्विटी में जितनी चाहते थे अगर उतनी रकम जुटा ली है तो आप अपने इक्विटी एसआईपी को रोक सकते हैं और रकम को ऋण साधनों में लगा सकते हैं।’
हालांकि, बाजार में सिर्फ गिरावट आने की स्थिति में एसआईपी नहीं रोकनी चाहिए क्योंकि आप कम कीमत पर फंड यूनिट खरीदने का मौका चूक जाएंगे। कुमार का कहना है, ‘यह वित्तीय अनुशासन को प्रभावित कर सकता है और मौका चूकने का भी खतरा रहता है।’
वित्तीय लक्ष्य पूरा हो जाने पर एसआईपी बंद की जा सकती है और यूनिट्स को भुनाया जा सकता है। कभी-कभार फंड में किसी घटनाक्रम की वजह से आपको एसआईपी बंद करने की जरूरत पड़ सकती है।
नेहल मोटा कहती हैं, ‘कभी फंड मैनेजर बदल सकता है और नया मैनेजर शायद आपके मानदंडों को पूरा नहीं कर पा रहा हो। कभी ऐसा भी हो सकता है कि फंड का प्रदर्शन अच्छा न हो। यह भी हो सकता है कि फंड का लक्ष्य बदल गया हो और यह आपकी जोखिम उठाने की क्षमता और अवधि के अनुरूप नहीं हो।’