भारतीय शेयर बाजार में मंगलवार, 4 जून को हाल के इतिहास में सबसे खराब बिकवाली में से एक देखी गई, क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, बैंकों, बुनियादी ढांचा से जुड़ी कंपनियों और अंबानी, अदाणी समूह के शेयरों में बिकवाली देखी गई।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स इंडेक्स दिन के दौरान 76,300.46 के उच्च स्तर को छूने के बाद 6,100 से अधिक अंक गिरकर 70,234.43 के निचले स्तर पर आ गया।
इसी गिरावट के दौरान लगभग 848 कंपनियों के शेयरों में 12:43 बजे लोअर सर्किट लग गया, यानी इन कंपनियों के शेयरों को खरीदने वाला कोई नहीं था। सरकारी कंपनियों भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स (भेल), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (BEL), अदाणी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, REC और पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (PFC) के शेयरों में तो पूरे दिन के कारोबार में ही 25 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। ध्यान दें कि फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) से जुड़े शेयरों के लिए एक दिन में गिरावट की कोई सीमा तय नहीं होती है।
BSE पर कुल मिलाकर नौ कंपनियों के शेयरों में 20% की गिरावट दर्ज की गई है, जिनमें इंडियन बैंक, केयनेस टेक्नोलॉजी इंडिया, कैपेसाइट इंफ्राप्रोजेक्ट्स, डीबी रियल्टी और वैभव ग्लोबल शामिल हैं।
वहीं दूसरी 78 कंपनियों के शेयरों में 10% की गिरावट दर्ज की गई है, जिनमें हिंदुस्तान जिंक, भारत बिजली, भारत डायनेमिक्स, कोचीन शिपयार्ड, Ddev प्लास्टिक्स इंडस्ट्रीज, इनोक्स विंड, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स, प्रवेग, इलेकॉन इंजीनियरिंग कंपनी, एसएमएल ISUZU, NBCC (India), कीस्टोन रियलटर्स, IFCI और गोदरेज प्रॉपर्टीज शामिल हैं।
सर्किट ब्रेकर या फ़िल्टर क्या होता है?
शेयर बाजार में शेयरों की कीमतों में अचानक बहुत तेजी से गिरावट या बहुत तेजी से बढ़ोतरी को रोकने के लिए सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल किया जाता है। ये पूरे बाजार के सूचकांक (जैसे निफ्टी या सेंसेक्स) पर भी लागू होता है।
साल 1987 में एक दिन अमेरिका के शेयर बाजार में बहुत बड़ी गिरावट आई थी, जिसे “ब्लैक मंडे” के नाम से जाना जाता है। उस दिन एक ही दिन में शेयर बाजार का सूचकांक 22.6% तक गिर गया था। इस घटना के बाद ही शेयर बाजारों में सर्किट ब्रेकर का इस्तेमाल शुरू हुआ।
भारत में जुलाई 2, 2001 से पूरे बाजार के लिए सर्किट ब्रेकर लागू किए गए। इनमें कुछ बदलाव सितंबर 2013 में किए गए।
यह सिस्टम किसी भी शेयर या बाजार के सूचकांक में एक दिन के कारोबार के दौरान तीन अलग-अलग स्तरों पर लागू होता है। ये स्तर 10%, 15% और 20% की गिरावट या बढ़त के होते हैं। जब कोई सर्किट ब्रेकर लग जाता है, तो उस समय सभी शेयरों और उनके डेरिवेटिव (derivative) की खरीद-बिक्री थोड़ी देर के लिए रोक दी जाती है।
पूरे बाजार के लिए सर्किट ब्रेकर को लगाने का फैसला सेंसेक्स या निफ्टी में से जिसमे भी पहले गिरावट या चढ़ाव की सीमा पार हो जाती है, उसके आधार पर लिया जाता है। एक्सचेंज हर रोज पिछले दिन के बंद भाव के आधार पर यह तय करते हैं कि किस स्तर पर सर्किट ब्रेकर लगेगा।
कम कारोबार वाले शेयरों (illiquid securities) के लिए या फिर कीमतों को बहुत तेजी से ऊपर जाने या नीचे आने से रोकने के लिए, बीएसई के अनुसार, जरूरत के हिसाब से सर्किट ब्रेकर की सीमा को घटाकर 10%, 5% या 2% तक भी किया जा सकता है। यह फैसला एक्सचेंज के निगरानी विभाग द्वारा किया जाता है।
हालांकि, जिन शेयरों पर डेरिवेटिव (F&O) कारोबार होता है, उनके लिए सर्किट ब्रेकर की सीमाएं लागू नहीं होती हैं। लेकिन फिर भी, बीएसई किसी भी गलती से बचने के लिए इन शेयरों पर 10% की सीमा वाला एक अलग सर्किट ब्रेकर लगाता है।