अक्टूबर 2024 से भारतीय बाजारों के लिए यह एकतरफा चाल रही है। हॉन्गकॉन्ग में गैवेकल रिसर्च के सह-संस्थापक लुई-विंसेंट गेव ने नई दिल्ली में पुनीत वाधवा को बताया कि निवेशकों को धारणा और मूल्यांकन के ज्यादा संतुलित होने से पहले अगले 6 से 8 महीने तक इंतजार करना पड़ सकता है। उनसे बातचीत के अंश:
डॉनल्ड ट्रंप के बयान को आप कैसे देखते हैं?
ट्रंप का भाषण कच्चा और विरोधाभासों से भरा था। मेरा मानना है कि उनका मुख्य लक्ष्य बॉन्ड यील्ड को कम करना है। अमेरिका को अगले कुछ वर्षों में बड़ी भारी मात्रा में कॉरपोरेट ऋणों के रोलओवर का सामना करना है। चूंकि कई कंपनियों ने कम ब्याज दरों पर डेट लिया है। इसलिए यील्ड बढ़ने से उन पर पुनर्वित्त लागत का ज्यादा बोझ पड़ेगा। अर्थव्यवस्था में मंदी रोकने के लिए ट्रंप का लक्ष्य यील्ड को कम करना है जिससे कॉरपोरेट ऋणों पर दबाव कम होगा। कुल मिलाकर, भाषण में बॉन्ड यील्ड कम करके, तेल की कीमतों को नियंत्रित करके और मजबूत अमेरिकी डॉलर के साथ अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया।
भारतीय बाजारों पर आप क्या सोचते हैं?
भारतीय बाजारों में हाल में आई गिरावट काफी भीषण है। लेकिन इसे परिप्रेक्ष्य में देखना जरूरी है। यह गिरावट बहुत निर्मम रही है लेकिन इससे कोई आफत नहीं टूटी है। पिछले छह-सात वर्षों के दौरान बाजार में तेजी मुख्य रूप से दो प्रमुख खरीदारों के बल पर आई थी-भारतीय रिटेल निवेशक, जिन्होंने लगातार स्थानीय निवेश जारी रखा और विदेशी निवेशक, खासतौर पर उभरते बाजारों (ईएम) के फंड, जिन्होंने भारत को ही एकमात्र निवेश योग्य विकल्प के रूप में देखा जबकि रूस, चीन और लैटिन अमेरिका (लैटम) जैसे अन्य ईएम को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
क्या विदेशी निवेशक चीन में निवेश के लिए भारत में बिकवाली जारी रखेंगे?
यह बिकवाली अगले दो-तीन महीने जारी रह सकती है। बड़ी तस्वीर यह इशारा करती है कि जैसे-जैसे चीन, लैटिन अमेरिका और अन्य उभरते बाजार बेहतर प्रदर्शन करना शुरू करेंगे, उभरते बाजारों में कुल आवंटन (कई वर्षों की सिकुड़न के दबाव) फिर से बढ़ना शुरू हो जाएगा। उस आवंटन में भारत का हिस्सा स्थिर रह सकता है, लेकिन जैसे-जैसे कुल हिस्सेदारी बढ़ेगी, विदेशी निवेश भारत वापस आना चाहिए, संभवतः 2025 की चौथी तिमाही में ऐसा हो सकता है। अल्पावधि में, भारत को कुछ हद तक लगातार दबाव झेलना पड़ सकता है, लेकिन उभरते बाजारों में मजबूती बनी रह सकती है।
भारत के बारे में विदेशी निवेशकों की धारणा कैसी है?
हमारे पास अब ग्राहकों का विविध आधार है। उभरते बाजारों के फंडों का प्रबंधन करने वाले हमारे ईएम-केंद्रित निवेशकों की भारत में ज्यादा रुचि है। हालांकि, वैश्विक फंड मैनेजर, खासकर न्यूयॉर्क, भारत को ज्यादा अहमियत नहीं देते हैं क्योंकि ईएम उनके लिए बड़ी चिंता का मसला नहीं रहा है।
क्या आपको लगता है सरकार कोई नीतिगत कदम उठाएगी, जैसे विदेशी निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ कर में कटौती?
कर में कटौती (खास तौर पर विदेशी निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ पर) से एक मजबूत निवेश-समर्थक संकेत जाएगा और संभवतः इससे बड़ा निवेश आकर्षित होगा। अतीत गवाह रहा है कि जब किसी देश का नेतृत्व विकास और निवेश को बढ़ावा देने लिए स्पष्ट कदम उठाता है, तो विदेशी उस पर पूंजी सकारात्मक प्रतिक्रिया करती है। आप अर्जेंटीना के हाल के अनुभव को देख सकते हैं। अगर मोदी सरकार विदेशियों के लिए पूंजीगत लाभ कर में कटौती या उसे समाप्त करने का संदेश देते हैं तो इससे विश्वास बढ़ेगा तथा विदेशी भागीदारी को और प्रोत्साहन मिलेगा।
क्या यह खरीदारी शुरू करने का समय है?
मुझे नहीं लगता कि भारतीय शेयरों में खरीदारी शुरू करने का समय आ गया है। मैं इस साल की चौथी तिमाही में ऐसा करना शुरू करूंगा। इस समय उभरते बाजारों में मैं ब्राजील और चीन तथा उन सभी परिसंपत्तियों पर ध्यान दूंगा, जो काफी गिर चुकी हैं। मेरा मानना है कि हम अभी भी उस दौर में हैं जिसमें पूंजी भारत से बाहर निकलकर उन अन्य बाजारों में जा रही है जहां बेहतर रफ्तार और उचित मूल्यांकन है।