Outlook on Equity & Debt Market in 2025: भारतीय शेयर बाजार के लिए 2024 का साल काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। साल के दौरान जहां बेंचमार्क इंडेक्स, सेंसेक्स (Sensex) और निफ्टी (Nifty) ने कई बार रिकॉर्ड बनाया, वहीं दूसरी ओर उसे बीच-बीच में कई बड़े नुकसान का भी सामना करना पड़ा। हालांकि, इसके बावजूद निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिला है। वहीं, दूसरी तरफ डेट मार्केट में देसी कंपनियों ने इस साल कॉर्पोरेट बॉन्ड के माध्यम से रिकॉर्ड फंड जुटाया। कम यील्ड और लॉर्ग टर्म बॉन्ड की बढ़ती मांग के कारण यह संभव हुआ। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2025 में भी इक्विटी और डेट मार्केट में तेजी बनी रहेगी।
श्रीराम एएमसी के सीनियर फंड मैनेजर दीपक रामराजु के मुताबिक, भारतीय इक्विटी बाजार एक चुनौतीपूर्ण और विभिन्न घटनाओं से भरे वर्ष के बावजूद मजबूत बने रहे। इस दौरान बाजार में कई वैश्विक घटनाओं, भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती, नकदी की कमी और सरकारी खर्च में देरी के कारण उतार-चढ़ाव देखा गया। हालांकि, CRR में हालिया कटौती से नकदी में सुधार की उम्मीद है। इसके साथ ही, सरकारी खर्च में इजाफा होगा। इन दो कारकों से खपत (consumption) और औद्योगिक उत्पादन (industrial output) में सुधार हो सकता है।
रामराजु का मानना है कि 2025 में शेयर बाजार मजबूत आर्थिक विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल इनोवेशन को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों पर सवार होने के लिए तैयार है। कैपिटल गुड्स, टेक्नोलॉजी, फाइनैंशियल सर्विसेज, FMCG, हेल्थकेयर जैसे सेक्टर आने वाले साल में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं। साथ ही, सेमीकंडक्टर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग, रिन्यूएबल एनर्जी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी जैसे उभरते सेक्टर्स पर निवेशकों का फोकस बढ़ेंगा।
अक्टूबर 2024 तक सरकार का पूंजीगत खर्च 4,66,545 करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2025 के बजट में निर्धारित 11,11,111 करोड़ रुपये का केवल 42% है। इसकी तुलना में पिछले वर्ष की समान अवधि में यह खर्च लगभग 55% था। हालांकि, दूसरी छमाही में सरकार द्वारा निवेश बढ़ाने से इंफ्रास्ट्रक्चर, डिफेंस और रेलवे जैसे सेक्टर्स में सुधार देखने को मिल सकता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज में रिसर्च और वेल्थ मैनेजमेंट की वाइस प्रेसिडेंट स्नेहा पोद्दार कहती हैं कि 2025 की पहली छमाही में कुछ बड़ी घटनाओं जैसे, ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपित के तौर पर कार्यभार संभालना, बजट, रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की बैठक और ब्याज दरों में कटौती की संभावना आदि के कारण देसी शेयर बाजार में कुछ हद की गिरावट देखी जा सकती है। हालांकि 2025 की दूसरी छमाही में बाजार में तेजी आने की संभावना है।
रामराजु कहते हैं कि शहरी खपत में गिरावट से बुरी तरह प्रभावित FMCG सेक्टर में सुधार की संभावना है क्योंकि इसका मूल्यांकन आकर्षक दिख रहा है। इसके अलावा, सरकारी खर्च में बढ़ोतरी और 2025 के पहले छमाही में संभावित ब्याज दर कटौती से शहरी खपत में सुधार की उम्मीद है।
आईटी सेक्टर, जो ब्याज दरों में कटौती के बाद अपने निचले स्तर से पहले ही उबर चुका है। यह 2025 में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है, बशर्ते ट्रंप कोई अप्रत्याशित शुल्क न लगाएं। ब्याज दरों में कटौती के बाद बैंकिंग सेक्टर में भी सुधार देखने को मिल सकता है, जिससे ऋण वृद्धि में तेजी आ सकती है। इसके अलावा, हाल ही में CRR में 50 बेसिस प्वाइंट (दो चरणों में) की कटौती से बैंकिंग सेक्टर में नकदी और ऋण वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
स्नेहा पोद्दार के सुर में सुर मिलाते हुए, रामराजु भी कहतें हैं कि बेशक, वैश्विक घटनाएं और मौद्रिक नीतियों में बदलाव बीच में कुछ बाधाएं पैदा कर सकते हैं। यही कारण है कि निवेश में संतुलन बनाए रखना समझदारी भरा विकल्प होगा। इसलिए, लार्ज कैप शेयरों में निवेश के साथ-साथ मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनियों में बढ़त का फायदा उठाना समझदारी होगी। इस तरह का संतुलित निवेश बाजार के उतार-चढ़ाव को संभालने और इक्विटी के लिए एक अच्छा साल बनाने में मदद करेगा।
भारतीय डेट मार्केट की चाल आने वाले साल यानी 2025 में इस बात पर निर्भर करेगी कि RBI कितने प्रभावी तरीके से महंगाई को स्थायी रूप से 4% के स्तर तक ला पाता है। रिजर्व बैंक के अग्रिम अनुमानों के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही तक महंगाई का स्तर 4% के करीब पहुंचने की संभावना है। हालांकि कोर इंफ्लेशन RBI के नियंत्रण में है, लेकिन अत्यधिक अस्थिर फूड इंफ्लेशन और इसका हेडलाइन इंफ्लेशन पर लगातार प्रभाव अगले वर्ष की महंगाई की दिशा तय करेगा।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की संरचना पूरी तरह से बदल चुकी है। रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में संजय मल्होत्रा न केवल समिति के नए चेयरमैन हैं बल्कि अक्टूबर में तीन नए बाहरी सदस्य भी इसमें शामिल किए गए। इसके अलावा, आगामी वित्तीय वर्ष में ब्याज दर तय करने वाली समिति में भी बदलाव आएगा। और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नीति निर्माण में निरंतरता बनी रहती है या नहीं।
डेट मार्केट वह जगह है जहां निवेशक कंपनियों और सरकारों द्वारा जारी किए गए डेट इंस्ट्रूमेंट्स की खरीद-बिक्री करते हैं। ये इंस्ट्रूमेंट्स पूंजी जुटाने के लिए जारी किए जाते हैं, जिसका उपयोग व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य परियोजनाओं के लिए किया जाता है।
डेट मार्केट उधारकर्ताओं (borrowers) और ऋणदाताओं (lenders) को जोड़ता है, जिससे पूंजी का फ्लो आसान होता है और निवेश को बढ़ावा मिलता है। इस बाजार में ट्रेजरी बिल, सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड का व्यापार होता है, जिन पर निवेशकों को नियमित ब्याज (कूपन भुगतान) मिलता है।
ये निवेश विकल्प सुरक्षित माने जाते हैं क्योंकि वे नियमित आय प्रदान करते हैं। भले ही निवेशक को डेट इंस्ट्रूमेंट्स जारी करने वाले संस्थान में स्वामित्व या इक्विटी न मिले, वे सरकार और कंपनियों को फंड देकर आर्थिक विकास और स्थिरता में योगदान करते हैं।
रामराजू का मानना है कि वित्तीय बाजारों में लॉन्ग टर्म बॉन्डों के लिए मांग और सप्लाई की स्थिति अनुकूल लग रही है, क्योंकि बीमा कंपनियों, EPFO और पेंशन फंड जैसे उच्च मूल्य वाले खरीदारों से मांग जारी रहने की संभावना है। इसके अलावा, सरकारी बांडों को वर्ल्ड बॉन्ड इंडोक्सों में शामिल किए जाने के कारण FII से आने वाले पैसिल फ्लो और अधिक सहायता करेंगे। सरकार वित्त वर्ष 2026 के लिए जीडीपी के 4.5% से कम के राजकोषीय घाटे की घोषणा करके राजकोषीय अनुशासन की दिशा में आगे बढ़ने की संभावना है।
उनका मानना है कि हल्की ब्याज दर कटौती, धीमी वृद्धि की संभावनाएं और सरकारी प्रतिभूतियों में अनुकूल मांग-आपूर्ति के कारण लॉन्ग टर्म यील्ड में गिरावट आ सकती है। यदि राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहता है और स्थिर सरकार के नेतृत्व में सुधार प्रक्रिया जारी रहती है, तो सॉवरेन रेटिंग अपग्रेड की संभावना भी सामने आ सकती है।
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डेट मार्केट के इस आउटलुक पर उन प्रमुख घटनाओं का असर पड़ सकता है, जो अर्थव्यवस्था, भू-राजनीति और वित्तीय बाजार को बदल सकती हैं। अमेरिका में, जनवरी में राष्ट्रपति ट्रंप के पद संभालने के बाद नीतियों को लेकर अधिक स्पष्टता मिलेगी। वहीं, चीन में सरकार विकास को बढ़ावा देने के लिए नए कदम उठा सकती है।
ट्रम्प के एजेंडे को आगे बढ़ाने से महंगाई का जोखिम बढ़ सकता है, जिससे फेडरल रिजर्व के पास दरों में कटौती जारी रखने की गुंजाइश सीमित हो सकती है। उपरोक्त कारकों का देसी बॉन्ड के यील्ड की दिशा और रुपया के उतार-चढ़ाव पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकता है।