Stock Market Strategy: भारतीय शेयर बाजार वर्तमान में करेक्शन (गिरावट) के फेस से गुजर रहा है। बाजार को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रम्प की जीत के बाद डॉलर इंडेक्स में वृद्धि के साथ विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और मीडिल ईस्ट संकट जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
लगातार सात ट्रेडिंग सेशन में गिरावट के बाद भारतीय बाजार मंगलवार (18 नवंबर) को हरे निशान में बंद होने में कामयाब रहे। हालांकि, ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल का मानना है कि करेक्शन का दौर अभी जारी रहेगा।
ऐसे में जिन निवेशकों का पैसा बाजार में पहले ही लगा हुआ हैं, उन्हें निवेशित ही रहना चाहिए। जबकि जिन्होंने अभी पैसा नहीं लगाया या कम लगाया है वो धीरे-धीरे निवेश बढ़ा सकते हैं।
करेक्शन के दौर में क्या स्ट्रेटेजी अपनाएं
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाजार में आसान रिटर्न का दौर अब खत्म हो गया है। इसलिए निवेशकों को अपनी पसंद की बजाय उन स्टॉक्स पर ध्यान देना चाहिए जिनका फंडामेंटल मजबूत हो। साथ ही निवेशकों को मार्केट ट्रेंड्स का पीछा करने के बजाय मजबूत कारोबार वाली कंपनियों पर फोकस करना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ताजा करेक्शन के बाद लार्ज कैप शेयरों का वैल्यूएशन लॉन्ग टर्म लिहाज से औसत के उचित दायरे में आ गया है। हालांकि, मिड और स्मॉल कैप अभी भी महंगे बने हुए हैं।
ब्रोकरेज फर्म ने सलाह दी है कि लार्ज कैप और मल्टीकैप में अगले 3 से 6 महीनों के दौरान निवेश को धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं। वहीं, चुनिंदा मिड और स्मॉल कैप शेयरों के मामले में निवेशकों को 6-12 महीनो में धीरे-धीरे निवेश की स्ट्रेटजी अपनानी चाहिए।
लॉन्ग टर्म में स्टॉक मार्केट आउटलुक का पॉजिटिव
लॉन्ग टर्म में कॉर्पोरेट डिलीवरेजिंग और अगले दो वर्षों में अच्छी कमाई की उम्मीद के कारण बाजार का आउटलुक पॉजिटिव बना हुआ है। हालांकि, भू-राजनीतिक संकट, केंद्रीय बैंक की नीतियों और वैल्यूएशन जैसी वैश्विक कारक बाजार में शार्ट टर्म के दौरान अस्थिरता ला सकते हैं। ऐसी स्थिति में ब्रोकरेज फर्म ने निवेशकों को सलाह है कि वे बैलेंस्ड स्ट्रेटिजी के साथ सावधानी से आगे बढ़ें।
ज्यादातर उभरते हुए बाजारों में FIIs की बिकवाली
मोतिलास ओसवाल की रिपोर्ट की माने तो चीन के राहत पैकेज की घोषणा और अमेरिकी यील्ड में वृद्धि के बीच अक्टूबर के दौरान ज्यादातर उभरते हुए बाजारों में विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की है। साथ ही अमेरिकी चुनाव को लेकर अनिश्चितता और मीडिल ईस्ट में भू-राजनीतिक तनाव से भी विदेशी निवेशकों की धारणा पर असर पड़ा है।
हालांकि, भारतीय बाजार में यह बिकवाली कंपनियों के दूसरी तिमाही के सुस्त नतीजे और बाजार के महंगा होने की वजह से देखने को मिल रही है। वहीं, उन सेक्टर्स में करेक्शन ज्यादा बड़ा देखा जा रहा है, जिनमें पिछले एक साल में बम्पर तेज तेजी आई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी निवेशकों ने बहुत ही कम समय में भारतीय बाजारों से 12 अरब डॉलर निकाले हैं। इसके बावजूद रुपये ने पिछली ऐसी घटनाओं की तुलना में लचीलापन दिखाई है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में से 22 वर्षों में बाजार में 10% या उससे अधिक की इंट्रा-ईयर गिरावट देखी गई है। ऐसे में निवेशकों को सलाह दी गई है कि उतार-चढ़ाव के ऐसे दौर के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।