स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी एंटीक की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की बड़ी IT कंपनी Accenture के अप्रैल से जून 2025 की तिमाही के नतीजों से यह समझा जा सकता है कि इस समय कंपनियां अपने खर्च को लेकर क्या सोच रही हैं। खासकर ऐसे खर्च जो जरूरी नहीं होते, लेकिन कंपनी भविष्य की तैयारी या नई तकनीक अपनाने के लिए करती है। ऐसे खर्चों को ‘डिस्क्रेशनरी खर्च’ कहा जाता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि Accenture की इस तिमाही में कमाई करीब 5.5% बढ़ सकती है। यह उसी दायरे में है जो कंपनी ने पहले से बताया था यानी 3% से 7% के बीच। पिछली तिमाही के मुकाबले भी कंपनी की आमदनी में लगभग 3% की बढ़त हो सकती है।
इस बार Accenture को जिन क्षेत्रों से ज्यादा कमाई होने की उम्मीद है, उनमें बैंकिंग, बीमा और फाइनेंस (BFSI) सबसे आगे है। इसके अलावा प्रोडक्ट्स, स्वास्थ्य सेवाएं, सरकारी परियोजनाएं, ऊर्जा और संचार जैसे सेक्टरों से भी आमदनी में मदद मिल सकती है। ये वो सेक्टर हैं जो अक्सर डिजिटल सेवाओं में निवेश करते हैं, जिससे IT कंपनियों को फायदा होता है। हालांकि रिपोर्ट ये भी बताती है कि नए प्रोजेक्ट्स और सौदों के आने की रफ्तार धीमी हो गई है। Accenture को मिलने वाले कुल नए सौदों (bookings) में इस बार 4.9% की गिरावट देखी जा सकती है। खासकर सलाह से जुड़ी सेवाएं, जिन्हें कंसल्टिंग कहा जाता है, उसमें 10.5% की कमी आ सकती है। इसके उलट, मैनेज्ड सर्विसेस यानी टेक्नोलॉजी को चलाने और मेंटेन करने से जुड़े सौदों में 2.4% की मामूली बढ़त हो सकती है।
Accenture ने पिछली तिमाही में कहा था कि दुनिया भर में अभी भी आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता बनी हुई है। इसका असर अब भी दिख रहा है और रिपोर्ट मानती है कि यह असर अगले कुछ महीनों तक रहेगा। जब तक कंपनियों को अपने भविष्य को लेकर भरोसा नहीं होगा, तब तक वो वैकल्पिक खर्च नहीं करेंगी। इसी वजह से कंपनी की ओर से FY25 यानी मौजूदा वित्त वर्ष के लिए दी गई 5% से 7% की आमदनी वृद्धि की उम्मीद बनी रहने की बात कही जा रही है, लेकिन बहुत ज्यादा उत्साह इसमें नहीं दिखता। अगर हम इसमें से अधिग्रहणों से जुड़ी कमाई को अलग कर दें, तो ‘ऑर्गेनिक’ यानी अपने दम पर की गई कमाई की बढ़ोतरी केवल 2% से 4% के बीच रह सकती है।
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Accenture की ग्रोथ में एक बड़ी भूमिका दूसरी कंपनियों को खरीदने की रही है। बीते कुछ समय में कंपनी ने कई अधिग्रहण किए हैं जिससे उसकी आमदनी बढ़ी है। कंपनी ने साफ किया है कि वह आगे भी ऐसी रणनीति अपनाएगी ताकि अपने ग्रोथ की गति बनाए रखे। इसके उलट, भारत की बड़ी IT कंपनियों ने हाल ही में अपने मुनाफे का बड़ा हिस्सा डिविडेंड देने और बायबैक में खर्च किया है। इससे उनके पास अधिग्रहण करने के लिए उतना पैसा नहीं बचा है। इस कारण भारतीय कंपनियों की ग्रोथ रणनीति काफी हद तक सीमित हो गई है।
Accenture की कमाई और सौदों का असर सीधे-सीधे भारत की IT कंपनियों पर भी पड़ता है क्योंकि वे भी विदेशों की कंपनियों से ही प्रोजेक्ट्स लेती हैं। अगर विदेशी कंपनियों के खर्च कम होते हैं तो भारतीय कंपनियों की कमाई भी प्रभावित होती है। यही वजह है कि इस बार भारत की बड़ी IT कंपनियों ने FY26 यानी अगले वित्त वर्ष की शुरुआत को लेकर कोई बहुत उत्साह नहीं दिखाया है। रिपोर्ट कहती है कि इस साल की पहली छमाही में आईटी कंपनियों के लिए हालत आसान नहीं होंगी। शायद दूसरी छमाही में, जब वैश्विक स्थिति थोड़ी स्थिर होगी, तब मांग में दोबारा तेजी आ सकती है।
इस साल अब तक IT कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन बाजार के मुकाबले कमजोर रहा है। Nifty IT इंडेक्स अब तक Nifty के मुकाबले 15% तक पीछे रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कंपनियों को नए सौदों और खर्च की उम्मीद कम है। जब तक क्लाइंट्स की ओर से भरोसे से भरी मांग नहीं आती, तब तक आईटी कंपनियों के शेयरों में कोई बड़ी तेजी की संभावना नहीं है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ कंपनियों की स्थिति बाकी से बेहतर है। एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग ने HCL टेक्नोलॉजी, कोफॉर्ज और एमफैसिस को अपनी पसंदीदा कंपनियों में गिना है, क्योंकि ये कंपनियां अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में हैं और आगे चलकर अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं।
डिस्क्लेमर: यह खबर ब्रोकरेज की रिपोर्ट के आधार पर है, निवेश संबंधित फैसले लेने से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।