सितंबर 2008 की तिमाही में लगातार पांचवी बार सिप्ला के राजस्व में इजाफा हुआ और उसे रुपये के अवमूल्यन का फायदा से लाभ मिला।
इस तिमाही में कंपनी का राजस्व 23 फीसदी की बढ़त के साथ 1,355 करोड़ रु पये हो गया। हालांकि कंपनी ने जून की तिमाही में राजस्व में इससे ज्यादा यानी 34 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
कंपनी का निर्यात साल दर साल के आधार पर 33 फीसदी बढ़ा जबकि कंपनी की एकीकृत वृध्दि 48.4 फीसदी रही। इसके बाद भी कंपनी का एपीआई निर्यात कारोबार 12 फीसदी गिरकर 124 करोड़ रुपये हो गया। इस गिरावट का कारण किसी भी ड्रग्स का एक्सक्लूसिव पीरियड न होना है जिसका असर कंपनी की बिक्री पर पड़ा है।
विश्लेषकों का मानना है कि सिप्ला को अपने इनहेलर जैसे ऊंची गुणवत्ता वाले उत्पादों में तेजी से बढ़ोतरी करनी होगी ताकि वह भविष्य में अपने एकीकृत निर्यात की 20-25 फीसदी विकास दर बरकरार रख सके। इस समय सिप्ला इनहेलर बनाने वाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है और उसका इनहेलर उत्पादन में दबदबा इस क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को दर्शाता है।
सिप्ला का घरेलू बाजार का राजस्व भी 16 फीसदी की ठीकठाक रफ्तार से बढ़ा और यह 591 करोड़ रुपये हो गया है। सितंबर की तिमाही में कंपनी का परिचालन लाभ 104 करोड़ रुपये रहा, जबकि इसका विदेशी मुद्रा नुकसान साल दर साल के आधार पर 41 फीसदी से बढ़कर 315 करोड़ रुपये हो गया।
इसके साथ कंपनी का परिचालन मुनाफा मार्जिन भी 2.9 फीसदी बढ़कर 23.3 फीसदी हो गया। मार्जिन में यह बढ़ोतरी रुपये में कमजोरी के कारण हुई। इस तिमाही में रुपया डॉलर के मुकाबले 8 फीसदी कमजोर हुआ है।
सिप्ला का शुध्द मुनाफा 21 फीसदी कम होकर 151 करोड़ रुपये हो गया। इस गिरावट की प्रमुख वजह है रुपये में अवमूल्यन के कारण कंपनी की विदेशी मुद्रा प्राप्तियों और कर्ज पर नुकसान होना। अगर इस नुकसान को एडजस्ट करें तो इसका शुध्द मुनाफा साल दर साल के आधार पर 35 फीसदी बढ़ना चाहिए था।
विनिमय बाजार में सिप्ला का प्रदर्शन बेहतर रहा क्योंकि फार्मा एक रक्षात्मक सेक्टर माना जाता है। जनवरी से लेकर अब तक के कारोबार में सिप्ला के शेयर ने सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन किया है। इस दौरान इसके शेयर 24 फीसदी ही गिरे जबकि बाजार 58 फीसदी गिर चुका है।
एसीसी: मांग कम, लागत ज्यादा
सीमेंट निर्माण के क्षेत्र में 7,067 करोड़ रुपये की कंपनी एसीसी के प्रबंधन का मानना है कि आने वाले महीने में आवासीय और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में मांग में कमी आने के कारण पूरा आर्थिक परिदृश्य सीमेंट क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिकूल है।
मांग पहले ही नीचे गिर चुकी है। इसके चलते कंपनी की पहले से निर्धारित 9 से 10 फीसदी विकास की दर गिरकर सात फीसदी तक आ चुकी है। उद्योग पर निगाह रख रहे सूत्रों ने बताया कि बाजार में जरूरत से एक करोड़ टन अधिक सीमेंट मौजूद है।
अगले साल मार्च तक बाजार में 1.6 करोड़ टन अतिरिक्त सीमेंट हो जाएगा। इससे सीमेंट क्षेत्र की कीमतों में कमी आएगी और कारोबारी बढ़त भी कम होगी। एसीसी को कोयले की कम हुई कीमतों से थोड़ी राहत मिली है जो 200 डॉलर के स्तर से गिरकर 120 डॉलर हो गई है।
लेकिन कंपनियों द्वारा की गई लंबी अवधि की खरीद के कारण इसका लाभ उन्हें मार्च 2009 की तिमाही के बाद ही देखने को मिलेगा। सितंबर की तिमाही में एसीसी का एकल परिचालन मुनाफा मार्जिन साल दर साल के आधार पर 2.4 फीसदी गिरकर 24.3 फीसदी रह गया। इसकी वजह रही, इस दौरान बिजली और ईधन व कोयले की कीमतों में वृध्दि।
एसीसी का परिचालन मुनाफा भी दो फीसदी गिरकर 438 करोड़ रुपये रह गया। सरकार द्वारा कोयले की आपूर्ति को कम किए जाने के बाद से सीमेंट कंपनियों को अपनी कोयला जरूरतों के लिए खुले बाजार में खरीद और आयात पर निर्भर रहना पड़ रहा है जो उनके लिए महंगा सौदा है।
एसीसी की कुल बिक्री के लिहाज से उसकी बिजली और ईधन की लागत में 3.8 फीसदी का इजाफा हुआ है जबकिशुध्द मुनाफा 283.4 करोड़ रुपये रहा। एसीसी के राजस्व में आलोच्य अवधि के दौरान इजाफा महज 7.5 फीसदी रहा क्योंकि सीमेंट की मांग में केवल 3.5 फीसद की बढ़ोतरी हुई और इस वजह से कारोबार भी केवल 3.8 फीसदी ही बढ़ा।
कंसोलिडेट आधार पर कंपनी की बिक्री 13.5 फीसदी बढ़ी जबकि इसका परिचालन मुनाफा 4.7 फीसदी गिरकर 22.1 फीसदी हो गया। इस समय एसीसी के सीमेंट की उत्तर और मध्य भारत के दो प्रमुख बाजारों में मांग घटी है। इन दोनों बाजारों का कंपनी के कारोबार में 45 फीसदी हिस्सा है। इस समय भले ही कीमतें अधिक हों या फिर कम, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि मांग कम होने के कारण कीमतें गिरना शुरू हो जाएंगी।