यूरोप की सबसे बड़ी परिसंपत्ति प्रबंधक कंपनी अमुंडी को उम्मीद है कि विदेशी निवेशक फिर से भारतीय शेयरों की ओर लौटेंगे क्योंकि 2025 में उनकी भारी बिकवाली कम होने लगी है। उनकी बिकवाली के कारण दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था ने अन्य उभरते बाजारों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया है।
विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष अब तक 16.4 अरब डॉलर के भारतीय शेयरों की बिकवाली की है। यह उनकी अब तक की दूसरी सबसे बड़ी निकासी है जबकि घरेलू संस्थागत खरीदारों ने 77 अरब डॉलर की खरीदारी की है।
नॉमिनल वृद्धि में नरमी, मद्धम आय, अमेरिका के ऊंचे टैरिफ और महंगे मूल्यांकन के कारण उनकी निकासी हुई जिससे भारतीय शेयर बाजार पांच वर्षों में पहली बार व्यापक उभरते बाजारों के बेंचमार्क से पिछड़ गए।
भारत का बेंचमार्क सूचकांक निफ्टी 2025 में अब तक 10.8 फीसदी बढ़ चुका है और यह पिछले साल के रिकॉर्ड उच्चस्तर से 0.5 फीसदी पीछे है। लेकिन यह एमएससीआई के एशिया-प्रशांत (एक्स-जापान) सूचकांक में 24 फीसदी की बढ़ोतरी और चीन के शांघाई कम्पोजिट में 16 फीसदी की वृद्धि से पीछे रहा है।
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अमुंडी इन्वेस्टमेंट इंस्टिट्यूट में उभरती आर्थिक रणनीति में प्रमुख एलेसिया बेरार्डी ने कहा कि मूल्यांकन तटस्थ दायरे के करीब पहुंचने और घरेलू मांग मजबूत होने से विदेशी निवेश में वापसी के हालात बन रहे हैं। पेरिस की यह कंपनी 2.67 लाख करोड़ डॉलर की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करती है।
उन्होंने कहा, भारत मध्य अवधि में भी बेहतर प्रदर्शन करता रहेगा। हम भारतीय इक्विटी में ज्यादा निवेश के लिए संरचनात्मक आवंटन बढ़ाने की सलाह देते हैं। उन्होंने भारत को अमुंडी के शीर्ष उभरते बाजारों में से एक बताया। अमुंडी 2026 की पहली छमाही के लिए भारतीय और व्यापक उभरते बाजारों की इक्विटी पर थोड़ी सकारात्मक बनी हुइ है जबकि चीन, जापान और अमेरिकी इक्विटी पर उसका रुख तटस्थ है।
बेरार्डी ने कहा कि अस्थिर वैश्विक परिदृश्य में भारतीय शेयर बाजार उपयोगी कवच मुहैया कराते हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था निर्यात के बजाय घरेलू मांग पर ज्यादा निर्भर है।
उन्होंने कहा कि ऊंचे अमेरिकी टैरिफ वास्तव में चिंता का विषय नहीं हैं। वैश्विक व्यापार तनाव और अमेरिकी टैरिफ के प्रति भारत का सीमित जोखिम निवेशकों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है और इस पर सब सहमत हैं कि वर्ष के अंत में टैरिफ में संभावित कटौती हो सकती है।
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खपत को बढ़ावा देने के लिए हाल में उठाए गए नीतिगत कदम (जिनमें भारत में केंद्र सरकार के अगले वेतन आयोग को लेकर उम्मीदें शामिल हैं) इस संभावना को और मजबूत करते हैं।