अरुणाचल प्रदेश के 25 वर्षीय डब्ल्यू एल राजकुमार ने हाल ही में मैकेनिकल ड्राफ्ट्समैनशिप के एक कोर्स के लिए नई दिल्ली के ओखला में मौजूद डॉन बॉस्को तकनीकी संस्थान (डीबीटीआई) में दाखिला लिया है।
राजकुमार ने अरुणाचल के एकमात्र जिले पापुम पारे में दो सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) होने के बावजूद एक निजी तकनीकी संस्थान में नामांकन लेने के लिए दूसरी जगह जाने का फैसला किया।
नैशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग (एनसीवीटी) के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पापुम पारे के यूपिया में मौजूद आईटीआई में 268 सीटों के मुकाबले केवल 90 छात्रों ने दाखिला लिया है। वहीं इसी जिले के सागली में एक अन्य आईटीआई की 240 सीटों पर एक भी छात्र को प्रवेश नहीं मिला है।
राजकुमार का कहना है कि उनके पड़ोस के इलाके के अधिकांश छात्र जो तकनीकी और औद्योगिक प्रशिक्षण में व्यावसायिक डिग्री प्राप्त करना चाहते हैं, वे या तो महानगरों में निजी तकनीकी संस्थानों में चले गए हैं या ऑनलाइन पाठ्यक्रम में दाखिला ले चुके हैं।
एनसीवीटी पोर्टल के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश में विभिन्न आईटीआई में उपलब्ध कुल 1,808 सीटों में से 1,200 से अधिक खाली रह गई हैं। पश्चिम बंगाल के बांकुरा आईटीआई के एक संकाय सदस्य ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पिछले कुछ समय से हमारे संस्थान की नामांकन संख्या घट रही है।’
बांकुरा जैसे आईटीआई अक्सर टीयर-1 और टीयर-2 शहरों में मौजूद रोजगार देने वाली कंपनियों के प्लेसमेंट सर्किट से वाकिफ नहीं होते हैं और टीयर-3 और टीयर-4 शहरों में छात्रों के लिए अच्छी भुगतान वाली स्थिर नौकरी के अवसर भी नहीं दे पाते हैं। वहीं, एक गूगल सर्टिफिकेट कोर्स ने मेरे कई पूर्व छात्रों को कोलकाता, दुर्गापुर, भुवनेश्वर और जमशेदपुर में नौकरी दिलाने में मदद की है।’
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सूचीबद्ध आईटीआई का दौरा बिज़नेस स्टैंडर्ड के संवाददाता ने किया जिसमें यह पाया गया कि इनमें से कई प्रशिक्षण संस्थान छोटी दुकानों से बड़े नहीं हैं, जहां एक ही संकाय सदस्य/मालिक इनका संचालन कर रहे हैं।
इससे पहले 2017 में, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने देश भर में आईटीआई के माध्यम से दिए जा रहे कौशल प्रशिक्षण की प्रासंगिकता और दक्षता में सुधार के उद्देश्य से पांच वर्ष वाली विश्व बैंक की सहयोग वाली परियोजना स्ट्राइव (औद्योगिक मूल्य वृद्धि के लिए कौशल सुदृढ़ीकरण) लागू कर दी।
इस परियोजना में 2,200 करोड़ रुपये की कुल लागत से 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 29 निजी आईटीआई सहित 426 आईटीआई का संचालन हो रहा है। सरकार की तरफ जोर दिए जाने के बावजूद, आईटीआई में छात्रों की दिलचस्पी कम होती जा रही है और पिछले छह वर्षों के दौरान रिक्तियों की संख्या एक-तिहाई से बढ़कर आधे से अधिक हो गई है।
आज, अधिकांश राज्य अपनी कुल आईटीआई सीटों के आधे से भी कम या मुश्किल से भरने में कामयाब होते हैं। भारत में सरकारी और निजी आईटीआई में उपलब्ध लगभग 26 लाख सीटों में से, लगभग 14 लाख खाली रह गई हैं जबकि 2015 में 15 लाख सीटों पर लगभग 450,000 छात्रों के लिए रिक्तियां थीं।
डीबीटीआई की एक छात्रा दिव्या राजगोपालन (बदला हुआ नाम) कहती हैं, ‘मेरे गृहनगर मदायी (केरल) के आईटीआई नए दौर के उपकरणों और बेहतर सुविधा केंद्र के बावजूद यहां के शिक्षक कौशल और क्षेत्र के अनुभव के मामले में मौजूदा बाजार की मांगों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं है। उन्हें सैद्धांतिक ज्ञान की भी जानकारी नहीं है जिसके बारे में भर्ती करने वाले प्लेसमेंट के दौरान हमसे सवाल करते हैं।’
हालांकि, राजकुमार और राजगोपालन जैसे छात्रों का कहना है कि सिर्फ आईटीआई को ही अपने पाठ्यक्रम को अद्यतन करने की आवश्यकता नहीं है। समग्र कौशल विकास तंत्र के लिए भी तेजी से बदल रही उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करना बाकी है।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का ही उदाहरण लें, जो फिलहाल अपने तीसरे चरण में है। इसमें लगभग 950 करोड़ रुपये का बजट आवंटित है और इसमें दो महत्त्वपूर्ण चीजें शामिल हैं। मसलन उद्यमिता, सॉफ्ट स्किल और वित्तीय और डिजिटल साक्षरता जैसे क्षेत्रों में अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और पूर्व शिक्षा की मान्यता (आरपीएल)।
अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) के तहत आते हैं और इसके तहत आमतौर पर 150 से 300 घंटे का प्रशिक्षण दिया जाता है। आरपीएल के तहत, औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा पाने वाले किसी भी व्यक्ति के मौजूदा कौशल, ज्ञान और अनुभव का मूल्यांकन करने के साथ ही उसे प्रमाणित भी किया जाता है।
दिल्ली आईटीआई के एक संकाय सदस्य बताते हैं कि अधिकांश उद्योग नियोक्ता या तो आरपीएल और अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रमाणपत्रों को पूरी तरह से मान्यता देने से इनकार करते हैं या केवल उच्च शिक्षा तकनीकी संस्थानों की पारंपरिक डिग्री के साथ ही उन्हें अतिरिक्त प्रमाण पत्र के रूप में महत्त्व देते हैं।
श्रम, वस्त्र और कौशल विकास पर संसद की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र द्वारा प्रायोजित किए जाने वाले और राज्य द्वारा प्रबंधित पीएमकेवीवाई ‘उपयुक्त पात्रता मानदंड वाले प्रशिक्षकों’ की कमी से प्रभावित हो रहा है। रिपोर्ट में उद्योग की यह शिकायत भी स्वीकार की गई है कि प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के साथ ही पीएमकेवीवाई के तहत दिया जा रहा व्यावहारिक कौशल, उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं।
सीआईआई नैशनल एजुकेशन काउंसिल के चेयरमैन और हैदराबाद मुख्यालय वाली सॉफ्टवेयर कंपनी साइएंट के संस्थापक-अध्यक्ष बीवीआर मोहन रेड्डी का मानना है कि पारंपरिक और व्यावसायिक डिग्री के बीच बुनियादी अंतर के कारण छात्र आईटीआई से दूर हो रहे हैं।
वह कहते हैं, ‘केवल परिसरों का नवीनीकरण करना या संकायों की संख्या बढ़ाने पर खर्च करना कोई समाधान नहीं है। इसके बजाय, मौजूदा संकाय को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ ही गहरी जानकारी से खुद को लैस करने की जरूरत है क्योंकि भर्ती करने वाली कंपनियां भी अब इसकी मांग कर रही हैं।’
रेड्डी आईटीआई तंत्र को उद्योग की आवश्यकताओं के प्रति जिम्मेदार बनाने और इन पाठ्यक्रमों में छात्रों की दिलचस्पी फिर से बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक पारंपरिक डिग्री कार्यक्रमों के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण को जोड़ने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं।