चुनावी मौसम में एक बार फिर से चित्रपट पर भी राजनीति ने सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी और भारतीय सिनेमा में राजनीतिक कहानियों की बाढ़ सी आ गई। खासकर तेलुगू सिनेमा में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री येदुगूरी संदिंटि जगन मोहन रेड्डी के जीवन पर आधारित कई फिल्में आ चुकी हैं। सिर्फ पिछले तीन-चार महीनों में उनके जीवन पर आधारित लगातार दो फिल्में यात्रा 2 और व्यूहम फिल्मी पर्दे पर दस्तक दे चुकी हैं और चुनावी मौसम के दौरान तीसरी फिल्म शपथम भी ओटीटी पर प्रदर्शित की गई है। राम गोपाल वर्मा ने अपने निर्देशन में बनाई व्यूहम और उसकी सीक्वल सपथम में रेड्डी की यात्रा को दिखाया है।
इस बीच हाल ही में रिलीज हुई एक और तेलुगू फिल्म राजधानी फाइल्स में आंध्र प्रदेश की तीन राजधानी प्रस्तावों के विवादास्पद मुद्दे को दिखाया गया है, जिसने तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) जैसी विपक्षी दलों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
बॉलीवुड का परिदृश्य भी राजनीतिक रंग में रंगा दिख रहा है। स्वातंत्र्य वीर सावरकर, आर्टिकल 370, बस्तरः द नक्सल स्टोरी, मैं अटल हूं, ऐक्सिडेंट ऑर कांस्पीरेसी: गोधरा, जेएनयूः जहांगीर नैशनल यूनिवर्सिटी (पहले यह 5 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी, जिसे रोक दिया गया), द साबरमती रिपोर्ट (अगस्त में रिलीज होने वाली है) और रजाकार ऐसी ही कई फिल्में हैं, जो रिलीज हो चुकी हैं अथवा अगले कुछ दिनों में बड़े पर्दे पर आने वाली हैं।
विभिन्न विषयों से जुड़े होने के बावजूद इन फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर मिश्रित प्रतिक्रिया मिली हैं। इनमें से अधिकतर फिल्में बड़े पर्दे पर बुरी तरह पिटीं अथवा औसत प्रदर्शन ही कर सकीं। आर्टिकल 370 अपवाद साबित हुई।
अब तक रिलीज हुई इन फिल्मों ने सामूहिक रूप से 150 से 200 करोड़ रुपये की कमाई की है, जिनमें आर्टिकल 370 ने 109 करोड़ रुपये और सावरकर ने 23 करोड़ रुपये की कमाई की। इसी साल बड़े पर्दे पर ऋतिक रोशन अभिनीत एक काल्पनिक कहानी पर आधारित फिल्म फाइटर भी आई है। इसे पुलवामा हमले और बालाकोट स्ट्राइक पर आधारित बताया गया।
वर्मा कहते हैं, ‘ऐसी फिल्मों का एक लक्षित दर्शक वर्ग होता है, जो खबरों का विश्लेषण करता है। अधिकतर लोग मनोरंजन पसंद करते हैं। राजनीतिक मुद्दों से जुड़ी फिल्मों का एक खास दर्शक वर्ग होता है।’ उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी फिल्में नियमित फिल्में नहीं मानी जा सकती हैं।
वर्मा ने कहा कि वह हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जगन मोहन रेड्डी के पिता की मृत्यु के वक्त से ही उन पर नजर रख रहे थे। उन्होंने कहा, ‘रेड्डी ने बहुत कम उम्र में ही पार्टी आलाकमान के विरुद्ध जाकर अपनी पार्टी बनाई और बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया। पूरी कहानी उनकी नाटकीय उपलब्धि पर आधारित है और इसमें ही मेरी दिलचस्पी है।’
बस्तरः द नक्सल स्टोरी के निर्देशक सुदीप्त सेन ने अपनी फिल्मों के सिर्फ राजनीतिक मकसद खंडन किया। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य महज राजनीतिक विचारधाराओं का समर्थन करने के बजाय सामाजिक मुद्दों पर जोर देना है। विवादों से घिरने के बावजूद सेन की पिछली फिल्म द केरल स्टोरी ने व्यावसायिक सफलता हासिल की थी।
सेन ने कहा, ‘कंटेंट ही किंग है।’ केरल स्टोरी वास्तविकता पर आधारित कहानी है। सेन ने कहा कि बस्तर ऐसा इलाका है जहां रोजाना हिंसा होती है और लोगों की जानें जाती हैं। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद के कारण देश भर में 50 हजार से अधिक लोगों और 15 हजार से अधिक जवानों की मौत हुई है।
सेन का कहना है, ‘इस क्षेत्र के लोगों की गहरी पीड़ा दिखाना राजनीति से परे है।’ मगर जरूरी विषय से जुड़ी के बावजूद बस्तर सेन की एक अन्य फिल्म द केरल स्टोरी के जितनी कमाई नहीं कर सकी। केरल स्टोरी को तो तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में प्रदर्शित करने से रोक दिया गया था।
सेन ने कहा, ‘अक्सर विवादों से फिल्में सफल हो जाती हैं, जो लोगों की जिज्ञासा बढ़ाती है और वे उन कहानियों को देखना चाहते हैं जिसका विरोध किया जा रहा है। भले ही विवादों ने द केरल स्टोरी की लोकप्रियता बढ़ाई हो मगर वह लोगों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी थी। इसे महज राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित नहीं कहा जा सकता है।’
कथित तौर पर साल 2023 में द केरल स्टोरी ने करीब 289 करोड़ रुपये की कमाई की। पीवीआर आइनॉक्स ने कार्यकारी निदेशक संजीव कुमार बिजली का कहना है कि सावरकर और बस्तर जैसी किसी भी फिल्म का बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन इसी बात पर निर्भर करता है कि वह दर्शकों को कितनी पसंद आ रही हैं।
वह कहते हैं, ‘चुनाव और किसी खास फिल्म में दर्शकों की पसंद स्वतंत्र कारक हो सकते हैं। कुछ फिल्में हालिया घटनाओं के अनुरूप हो सकती हैं। दर्शकों की पसंद खास तौर पर फिल्म की शैली, कलाकार और कहानी पर निर्भर करती है।’
सावरकर के निर्माता आनंद पंडित के लिए राजनीति सामाजिक प्रतिबिंब और संवाद के लिए एक माध्यम जैसा है। पंडित कहते हैं, ‘वे इन मुद्दों पर चर्चा करने और समझने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं और वे दर्शकों के लिए आलोचनात्मक सोच और जागरूकता भी पैदा करते हैं। राजनीतिक कहानियां अक्सर समाज के लिए एक आईने के रूप में काम करते हैं, जिससे लोग बड़े पर्दे पर अपने अनुभव और चिंताओं को देखते हैं।’
भारत में पहली राजनीतिक फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ को माना जाता है। यह इंदिरा गांधी की सरकार पर व्यंग्य था। फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया था और इसके प्रिंट तक जब्त कर लिए गए थे। साल 2019 में यानी पिछले आम चुनावों से पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल को दर्शाने वाली द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और हाल ही में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित पीएम नरेंद्र मोदी जैसी फिल्में भी बड़े पर्दे पर रिलीज की गईं।
तेलुगू सिनेमा में भी साल 2019 में यात्रा जैसी फिल्में आईं, जो आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिवंगत नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी के जीवन पर आधारित थी। एनटी रामाराव की जीवनी पर एनटीआरः महानायकुडू भी बड़े पर्दे पर रिलीज हो चुकी है।