सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क का सूचीपत्र विभिन्न उत्पादों पर लगाए गए शुल्क का सांकेतिक प्रतीक होता है।
लेकिन इसमें भी कई उत्पादों पर कर शून्य लिखा होता है या फिर कर की जगह खाली छोड़ी गई होती है। इसके बारे में मुझे यह कहना है कि यह न तो कोई तर्कसंगत है और न ही इस प्रक्रिया का कोई कानूनी आधार है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क सूची में घोड़े, गाय, गेंहू, चावल, जैसे निर्मित न किए जाने वाले उत्पाद और बिजली जैसे निर्मित उत्पाद के लिए भी शुल्क की जगह रिक्त छोड़ दी गई है। मछली, ताजा मांस, दूध, मक्खन, शहद, पान के पत्ते, बांस जैसे अनिर्मित उत्पाद और कुछ और निर्मित उत्पादों पर शुल्क दर शून्य कर रखी हैं।
जबकि सीमा शुल्क में किसी भी उत्पाद के लिए शून्य कर दर नहीं है और न ही किसी उत्पाद के शुल्क के लिए रिक्त जगह छोड़ी गई है। लेकिन राई, बाजरा, अखबार और पत्रिका का आगमन निशुल्क होता है। सीमा शुल्क में यह बात मायने नहीं रखती कि कोई उत्पाद निर्मित है या अनिर्मित। लेकिन केंद्रीय उत्पाद शुल्क इसी बात पर निर्भर करता है।
यूनियन लिस्ट के सातवें शेडयूल के अनुसार अनिर्मित उत्पाद, उत्पाद शुल्क के दायरे में नहीं आते हैं। यानी अगर घोड़ा, बिल्ली जैसे सामानों के आगे शून्य कर लिखा रहे तो इसका मतलब है कि यें सभी वस्तुएं उत्पाद शुल्क के दायरे में आती हैं लेकिन इन पर कर की दर शून्य है। यह बात मौलिक तौर पर गलत तो है ही तथा साथ में भ्रम भी पैदा करती है।
साफ बात तो यह है कि यें सभी उत्पाद केंद्रीय शुल्क के दायरे में नहीं आते हैं और इन पर कोई भी कर नहीं लग सकता है। उच्चतम न्यायालय ने भी साफ तौर पर कहा है कि अनिर्मित उत्पादों पर कोई कर नहीं लगेगा भले ही केंद्रीय उत्पाद शुल्क सूची में उस उत्पाद पर शुल्क लगाया गया हो।
उत्पाद के आगे रिक्त जगह का मतलब है कि इस उत्पाद पर कर तो लगा है लेकिन कर दर शून्य है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क सूची में अतिरिक्त नोट्स की सहायता से इस बात को ज्यादा बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। सीमा शुल्क सूची में किसी भी उत्पाद के कर के लिए कोई भी स्न रिक्त नहीं रखा गया है।
मतलब किसी के लिए भी शून्य, निल और फ्री शुल्क दर में अंतर कर पाना बहुत कठिन काम है। इस तरह इस अतिरिक्त प्रविष्टि ने कानूनी मतभेद पैदा कर दिए हैं। अतिरिक्त होने के कारण इसका समाधान ढूंढकर इस समस्या का समाधान करना चाहिए।
अगर इतिहास के बारे में बात करे तो 1986 से पहले की पुरानी शुल्क दर सामानों की उपयोगिता पर आधारित थी न कि ब्रूसल्स ट्रेड नोमनक्लेचर(बीटीएन)या कस्टम को-ऑपरेशन काउंसिल नोमनक्लेचर (सीसीसीएन) के आधार पर। यह सूची मौलिक और कानूनी दोनों ही आधार पर सही थी।
इस सूची में केवल 68 ही विशेष श्रेणियां थी और घोड़े, बिल्ली या आम जैसे अनिर्मित उत्पादों के लिए कोई जगह नहीं थी। लेकिन जब इसे बीटीएन में बदला गया तो केंद्रीय उत्पाद शुल्क सूची और सीमा शुल्क सूची में कुल मिलाकर समानता होनी चाहिए। लेकिन यह नहीं सोचा गया कि दोनों सूचियों में 100 फीसदी समानता लाना मुमकिन नहीं है।
इस बात को बिल्कुल दरकिनार कर दिया गया कि सीमा शुल्क सभी आयातित सामानों पर लगाया जाता है। इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि आयातित सामान निर्मित है या अनिर्मित। लेकिन उत्पाद शुल्क सूची में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उत्पाद निर्मित है या अनिर्मित।
उदाहरण के तौर पर आयातित मानव रक्त पर सीमा शुल्क तो लगता है लेकिन इस पर उत्पाद शुल्क नहीं लगता है। सीमा शुल्क के लिए आयात और निर्यात ही कर का साधन है। लेकिन उत्पाद शुल्क के लिए निर्माण ही शुल्क का जरिया है। इससे इन दोनों में समानता का प्रश्न ही नहीं उठता है।
दोनों ही सूचियों में समानता सिर्फ उन उत्पादों पर ही होनी चाहिए थी जो केंद्रीय उत्पाद शुल्क सूची के अंतर्गत भी आते। अगर कोई उत्पाद कानूनी तौर पर उत्पाद शुल्क की सूची में नहीं आ सकता है तो सिर्फ समानता लाने के लिए उस उत्पाद को सूची में डाल देने का कोई मतलब ही नहीं बनता है। दोनों सूचियों में समानता लाने की की इस कोशिश ने कानूनी विसंगतियां पैदा कर दी हैं।