सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सहकारी समितियों में जमा घोटाले से बचने के लिए एक फॉर्मूला सुझाया। यह फैसला गुजरात की गोधरा नागरिक सहकारी साख समिति लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक मामले के आलोक में आया।
सहकारी समिति ने कुछ राशि बतौर सावधि जमा (फिक्स्ड डिपोजिट) इंडियन बैंक में जमा की थी। इस राशि को बैंक के कमीशन एजेंट के माध्यम से जमा किया गया था। जिसके लिए बैंक ने अच्छी कमीशन राशि भी दी थी जिसे आमतौर पर राष्ट्रीयकृत बैंक नहीं देते हैं। इसके बाद अधिकारियों की सहमति के बाद जमा राशि से ऋण देना शुरू किया गया।
जब राशि परिपक्व हुई तो बैंक ने इसको कैश करने से इनकार कर दिया और कहा कि जमा राशि को तो हम बतौर कर्ज बांट चुके हैं। मामला सीबीआई जांच के दायरे में है और अभी भी फौजदारी अदालत में है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों से सही सहकारी संस्थाओं को ऋण देने को कहा है ताकि मुश्किलात से बचा जा सके।
मेडिक्लेम पॉलिसी
सुप्रीम कोर्ट ने यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें कंपनी ने वरिष्ठ नागरिकों की मेडिक्लेम पॉलिसी के नवीनीकरण से मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी के इस फैसले को मनमाना बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जिन लोगों का बीमा हुआ है उनकी पॉलिसी का अपने आप ही नवीनीकरण नहीं हो सकता था, ऐसे में कंपनी को इस मामले में अच्छे से पेश आने की जरूरत थी। जिन लोगों का बीमा हुआ है वे लगातार अस्पताल में भर्ती होते रहे और इधर कंपनी ने उन लोगों की पॉलिसी का नवीनीकरण करने से मना कर दिया।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि कोई बीमित व्यक्ति के किसी बीमारी से ग्रसित हो जाए जो इसका मतलब यह होना चाहिए की बीमा कंपनी उस बीमारी को ही बीमा कवर की सूची से हटा दे।
कोर्ट का कहना है कि यदि बीमित व्यक्ति ने हर साल कुछ न कुछ राशि स्वास्थ्य बीमा के तौर पर मांगी है तो केवल इस वजह से भी बीम कंपनी उनकी मेडिक्लेम पॉलिसी के नवीनीकरण करने से मना नहीं कर सकती हैं। इन पक्षों को किसी को कोई औपचारिकता निभाने की जरुरत भी नहीं है।
रिलायंस पेट्रोलियम
सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड द्वारा सेकेंड हैंड क्रेन आयात करने के मामले में कंपनी के हक में फैसला सुनाया। यह मामला रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड द्वारा हालैंड की कंपनी यूरोपा बीवी से सेकेंड क्रेन मंगाने से जुड़ा है। दरअसल रिलायंस ने अपनी रिफाइनरी निर्माण के लिए इन क्रेनों का आयात किया है।
कस्टम अथॉरिटी ने इस मामले में कुछ सवाल उठाए हैं। विभाग की 1 मार्च 1997 और 13 जून 1997 की अधिसूचना के अनुसार ऑयल रिफाइनरी स्थापित करने के लिए सेकेंड हैंड मोबाइल क्रेन के आयात में छूट दी गई है।
अब उन्होंने उल्लिखित किया है कि क्रेन को मोटर गाड़ी के तौर पर भी प्रयोग कर सकते हैं और यह निर्माण में सामान उठाने के काम में भी आती है। इसके चलते यह छूट दी जाने वाली शर्तों पर खरी नहीं उतरती है। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने ‘नॉकडाउन कंडीशन'(जिसमें हिस्से अलग-अलग रूप में आते हैं और बाद में उन्हें जोड़ा जाता है)के तहत रिलायंस कंपनी द्वारा किये गये आयात में मिली छूट को वाजिब बताया।
वैसलीन
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते आदेश दिया कि पॉन्ड्स इंडिया (अब हिंदुस्तान यूनीलीवर का हिस्सा) वैसलीन नाम से जो उत्पाद बेचती है वह सौंदर्य प्रसाधन न होकर दवा है।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का यह भी मानना है कि इसका कोई औषधीय मूल्य भी नहीं है। इसके चलते इस उत्पाद को उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम के तहत दवाओं के अंतर्गत कर चुकाना होगा न कि सौंदर्य प्रसाधनों के तहत।
राजस्व विभाग का तर्क था कि कंपनी ने इस उत्पाद को त्वचा की देखभाल के लिए प्रचारित किया इसको देखते हुए इसको कॉस्मेटिक मानना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि वैसलीन एक औषधीय उत्पाद है और यह त्वचा संबंधी विभिन्न बीमारियों की देखभाल में काम आता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वैसलीन सामान्य परिस्थितियों में खूबसूरती बढ़ाने वाला सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद नहीं है। वैसलीन में कोई खुशबूदार तत्व नहीं होता है। फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि सौंदर्य प्रसाधनों में किसी न किसी खुशबूदार तत्व का प्रयोग जरूर होता है।
बैंक ऑफ इंडिया
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते बैंक ऑफ इंडिया को नांगिया कंस्ट्रक्शंस लिमिटेड को बैंक गारंटी ने देने के लिए लताड़ लगाई। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि बैंक कंपनी की प्रतिबद्धता पर शक है तो फिर सारे लेन-देन के कोई मायने नहीं रह जाते।
इस मामले में कोर्ट ने सरकारी बैंक की अपील को खारिज कर दिया। इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी यह फैसला दिया था कि बैंक को इस निर्माण कंपनी को बैंक गारंटी का भुगतान करना चाहिए। कंपनी के एक ग्राहक के अनुबंध विवाद में दोषी पाए जाने के बाद यह मामला सामने आया।
बैंक ने किसी दूसरे पक्ष की ओर से कंपनी को बैंक गारंटी दी थी। इस फैसले में कहा गया है कि एक राष्ट्रीयकृत बैंक को यह बात शोभा नहीं देती कि वह भुगतान करने के मामले में यह रुख दिखाए। लोगों का भरोसा और विश्वास राष्ट्रीयकृत बैंकों के आचरण और साख पर निर्भर करता है।