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… इधर नाइकी ने भी ली चैन की सांस

Last Updated- December 07, 2022 | 9:42 AM IST

एक महत्त्वपूर्ण फैसले में बेंगलूरु टैक्स ट्रिब्यूनल ने कहा है कि नाइकी इनकॉर्पोरेशन की भारत से होने वाली कमाई को कंपनी के इस देश में मौजूद दफ्तरों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।


ट्रिब्यूनल का मानना है कि नाइकी के भारत स्थित कार्यालयों से कोई ऐसा काम नहीं किया जाता है जिससे उन्हें आय प्राप्त हो सके। ट्रिब्यूनल ने इस आधार पर राजस्व विभाग की अपील को खारिज कर दिया कि नाइकी के भारत में प्रतिनिधि कार्यालयों से जिन उत्पादों की खरीद की जाती है वे बस निर्यात के लिए होती हैं।

ऐसे में इन प्रतिनिधि इकाइयों को भारत-अमेरिका कर संधि के अनुछेद 5 के दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता है। हाल के दिनों में भारतीय राजस्व विभाग ने देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्यालयों की गतिविधियों पर निगरानी को सख्त कर दिया है। राजस्व विभाग का मानना है कि इन एमएनसी की प्रतिनिधि इकाइयां ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं जिनसे कमाई होती है। इस वजह से देश में स्थित इन मुख्यालयों से घरेलू कारोबारी ताल्लुक होने के आधार पर कर वसूला जाना चाहिए।

या फिर ऐसा माना जाए कि इन कंपनियों का भारत में पर्मानेंट इस्टैब्लिशमेंट (पीई) यानी स्थायी ठिकाना है और इनसे होने वाले मुनाफे को भारतीय इकाइयों से होने वाला मुनाफा ही समझा जाना चाहिए। नाइकी खेल से संबंधित उत्पादों का कारोबार करती है और इसका मुख्यालय अमेरिका में है। कंपनी के मुख्यालय से विदेश स्थित सहायक इकाइयों को उत्पाद की आपूर्ति की जाती है। नाइकी के उत्पाद सहायक इकाइयों के साथ साथ तीसरी पार्टी के वितरकों के जरिए भी बेचे जाते हैं।

मुख्यालय का काम उत्पाद की डिजाइनिंग, मार्केटिंग और उसके वितरण का होता है। कंपनी खुद से उत्पादन नहीं करती बल्कि इसके लिए उत्पादकों को ठेका दिया जाता है। इसी प्रक्रिया के तहत नाइकी ने भारत में उत्पादन के लिए भारतीय उत्पादकों के साथ भी करार किया है। भारत में अपने ब्रांड नाम के उत्पादों की गुणवत्ता की जांच के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति से नाइकी ने एक प्रतिनिधि कार्यालय (आरओ) का गठन किया था। इस आरओ के जरिए स्थानीय निर्माताओं को उत्पाद की गुणवत्ता, उनकी कीमत संबंधित जानकारियां दी जाती हैं।

इन कामों के लिए आरओ में मर्केंडाइजर, प्रोडक्ट एनालिस्ट, क्वालिटी इंजीनियर, प्रोडक्ट इंटीग्रिटी मैनेजर और फैब्रिक कंट्रोलर जैसे विशेषज्ञ पेशेवरों को नियुक्त किया गया था। आरओ उत्पाद की गुणवत्ता और उनकी कीमतों पर अपनी प्रतिक्रिया देता है। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर ही अमेरिकी कार्यालय उत्पाद की कीमत, उसकी गुणवत्ता, उसके परिमाण पर कोई निर्णय लेता है। नाइकी का कहना था कि भारत स्थित आरओ का काम निर्यात के लिए उत्पादों की खरीद है और भारतीय राजस्व विभाग ने आरओ पर कर लगाने का जो आदेश दिया है वह सही नहीं है।

पर दूसरी ओर राजस्व विभाग का मानना था कि इस प्रतिनिधि इकाई का काम महज उत्पादों की खरीद तक सिमटा हुआ नहीं था। उसके अनुसार इकाई कारोबारी गतिविधियों से भी जुड़ी हुई है। राजस्व विभाग का यह भी मानना था कि आरओ के गठन का उद्देश्य महज कंपनी के कार्यों में सहयोग करना नहीं था बल्कि, यह भारत में एक पर्मानेंट इस्टैब्लिशमेंट (पीई) की तरह है। ऐसे में भारत-अमेरिका कर संधि के प्रावधानों के अनुसार इस पर कर लगाया जाना चाहिए।

फैसला

नाइकी की अपील पर ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि भारत में स्थापित आरओ का काम केवल निर्यात के लिए उत्पादों की खरीद करना है। राजस्व विभाग ने हालांकि यह दलील दी थी कि निर्यात के लिए उत्पादों की खरीद का अधिकार भी वास्तविक खरीदार के ही पास होता है किसी एजेंट के पास नहीं, पर इसे भी ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया।

ट्रिब्यूनल ने माना कि उत्पादों की खरीद प्रवासियों की ओर से निर्यात के उद्देश्य से की जा रही है। ऐसे में एजेंट के जरिए उत्पाद की खरीद का कोई महत्त्व इस विषय में नहीं रह जाता है। ट्रिब्यूनल ने यह भी पाया कि आरओ ने स्थानीय निर्माताओं से केवल उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर ही संपर्क कर रखा है।

साथ ही उनका काम बस अमेरिकी कार्यालय की ओर से तय किए गए मानकों के आधार पर उत्पाद की जांच करना भर है, इससे अधिक कुछ और नहीं। अब चूंकि आरओ की ओर से स्थानीय निर्माताओं को उचित दिशा निर्देश दिए जाने होते हैं इस वजह से जरूरी है कि वे अपने यहां पेशेवरों की भर्तियां भी करेंगे। स्थानीय निर्माताओं को उत्पाद से जुड़ी संपूर्ण जानकारी हो, इसके लिए जरूरी है कि आरओ की ओर से उनके कर्मचारियों को प्रशिक्षण मुहैया कराया जाए।

दूसरे आरओ को भी मिलेगा फायदा

ट्रिब्यूनल के फैसले से यह बात साफ हो गया कि आय पैदा करने वाली गतिविधियों और कारोबार में सहायता करने वाली गतिविधियों में क्या फर्क होता है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि हो सकता है कि कुछ इकाइयों द्वारा जो काम किया जा रहा है वह मूल कारोबार में मुनाफा कमाने में किसी न किसी तरीके से सहयोग कर रहा हो, पर इसका मतलब सीधे तौर पर यह नहीं होता कि ये इकाइयां लाभ कमाने के लिए ही काम कर रही हैं ट्रिब्यूनल के इस फैसले का एमएनसी की ऐसी कई शाखाएं तहेदिल से स्वागत करेंगी जो किसी न किसी तरीके से भारत में कारोबार कर रही हैं।

कई आरओ के पास अब इस मसले को लेकर वैध बिंदु हैं। हां उन्हें बस इस बात की दुआ मांगनी होगी कि राजस्व विभाग इस मुद्दे पर आगे उच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाए। अगर ऐसा होता है, तो चैन की सांस में थोड़ी खलल तो जरूर पड़ेगी।

First Published - July 7, 2008 | 11:56 PM IST

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