अपनी तरह की अनोखी और पहली घटना के तहत ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय उत्पाद एवं शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) के सदस्य प्रशासन को तलब करते हुए यह समझाने को कहा है कि आखिर वह समय पर मुख्य आयुक्तों की समीक्षा समिति नियुक्त क्यों नहीं कर पाई और इस वजह से भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा ।
पहले जब समीक्षा का भार केवल एक मुख्य आयुक्त पर होता था तो कभी भी राजस्व के नुकसान की बात सुनने को नहीं मिली थी। अब जब से यह फैसला लिया गया है कि समीक्षा का जिम्मा केवल एक आयुक्त का नहीं बल्कि तीन या चार आयुक्तों की टीम की ओर से किया जाएगा तब से परिणाम बिगड़ते ही जा रहे हैं।
और देखने को यह मिल रहा है कि समीक्षा में अक्सर देरी हो रही है या फिर किसी न किसी तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। टीम में काम होने की वजह से सदस्यों को विलंब का एहसास नहीं होता और कोई अकेला इस काम को अपनी जिम्मेदारी समक्ष कर पूरा भी नहीं करता और राजस्व के नुकसान की ओर भी किसी का ध्यान नहीं जाता।
14 जुलाई 2008 को सीसीई बनाम भूषण लिमिटेड (1) मामले में ट्रिब्यूनल ने जो फैसला सुनाया है उसे प्रशासन की प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है। प्रशासन के चुस्त दुरुस्त नहीं रहने की वजह से अकेले एक मामले में 8.41 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।
किसी अपील को ट्रिब्यूनल के सामने पेश किया जाएगा या नहीं इस बारे में पहले उत्पाद एवं शुल्क विभाग के आयुक्त के आदेश की समीक्षा का भार संबंधित मुख्य आयुक्त का हुआ करता था।
पर वर्ष 2005 के बजट (एक्साइज ऐक्ट की धारा 35बी और ई और कस्टम ऐक्ट की संबंधित धाराएं) में इस बारे में एक नई व्यवस्था जारी की गई है जिससे समीक्षा का काम आसान होने की बजाय और जटिल व मुश्किल हो गया है।
अब इस तरह की व्यवस्था की गई है कि कमिशनर अपील के आदेशों की समीक्षा का जिम्मा आयुक्तों की समीक्षा समिति का होगा न कि केवल एक मुख्य आयुक्त का। केवल एक मामले में नहीं बल्कि कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि समीक्षा समिति की व्यवस्था में कई खामियां हैं।
इसकी कई वजहें हैं:
1. सीबीईसी की ओर से दर्ज किए गए हलफनामे के अनुसार 2008 में मुख्य आयुक्त के 10 और आयुक्तों के 48 पद रिक्त हैं और इस वजह से समीक्षा समिति का गठन नहीं किया जा सका। एक समय में ऐसा कभी देखने को नहीं मिलता कि आयुक्तों के ये सारे पद भरे हों। ऐसे में स्वाभाविक है कि समीक्षा समिति के गठन के साथ समस्या लगातार समस्या बनी रहेगी।
2. किसी मसले पर निर्णय लेने के लिए एक ही जगह पर तीन वरिष्ठ अधिकारियों का मिलना अपने आप में काफी मुश्किल है क्योंकि लखनऊ, शिलौंग और इलाहाबाद जैसी कई जगहें हैं जहां केवल एक मुख्य आयुक्त है।
3. अगर कस्टम से जुड़ा कोई मामला हो तो जरूरी नहीं है कि केंद्रीय शुल्क से संबंधित मुख्य आयुक्त इस संबंध में बेहतर निर्णय दे सकेगा।
4. अगर किसी मामले पर निर्णय देने के लिए कई लोगों को एक साथ जोड़ा जाता है, वह भी तब जबकि उनका संबंध उस विषय से नहीं होता है तो टीम के किसी सदस्य में जिम्मेदारी का बोध नहीं हो पाता है। अगर सूचना पाने वाले कई लोगों का हित किसी विषय से जुड़ा हुआ हो और ऐसे मामले में फैसला सुनाने के लिए कई लोगों पर भार डाला जाता है तब यह फायदेमंद हो सकता है ताकि फैसले के साथ छेड़छाड़ या फिर गलत निर्णय लेने जैसी संभावना न बचे।
या फिर अगर किसी राजनीतिक मसले पर कैबिनेट का कोई फैसला हो तो भी समीक्षा समिति गठित किया जाना जायज लगता है। राजस्व के बेहतर और सटीक फैसलों की अपेक्षा हो तो यह कदम जितनी जल्दी उठाया जाए उतना ही बेहतर होगा।