बीएस बातचीत
हर घर तक पानी का पाइप पहुंचाने की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘हर घर जल’ कोविड महामारी के दौर में भी बदस्तूर जारी है। जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का कहना है कि इस दौरान 25 लाख घरों तक पानी का कनेक्शन दिए जा चुके हैं। रुचिका चित्रवंशी के साथ बातचीत में शेखावत ने उम्मीद जताई कि महामारी की वजह से लक्ष्य पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। पेश हैं संपादित अंश:
कोविड महामारी फैलने के बाद जल जीवन मिशन के काम की रफ्तार पर कितना असर पड़ा है?
कोविड ने हर चीज पर असर डाला है और हमारा काम भी इससे अछूता नहीं रहा है। लेकिन लॉकडाउन का पहला चरण खत्म होने के बाद पानी की आपूर्ति संबंधी कामों को छूट मिल गई थी। प्रधानमंत्री ने पिछले साल अगस्त में इस मिशन की शुरुआत की थी और 25 दिसंबर को इस बारे में दिशानिर्देश जारी किए गए थे। हमने योजना के क्रियान्वयन से जुड़े मुद्दों पर पिछले साल ही राज्यों से समन्वय बना लिया था। इस साल मार्च में कोविड महामारी का प्रसार शुरू होने के बाद हमने राज्यों के साथ कागजी काम पूरा करने पर ध्यान दिया। इनमें राज्य एवं जिला स्तर की कार्य योजनाओं की स्वीकृति और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने जैसे काम शामिल थे। महामारी के समय का इस्तेमाल हमने इन कामों को पूरा करने में किया और फिर काम ने तेजी पकड़ ली। कोविड के दौरान हमने देश भर में करीब 25 लाख नए पानी कनेक्शन दिए हैं।
क्या हर घर जल योजना के लिए समयसीमा में बदलाव हुआ है?
इसमें न तो कोई बदलाव हुआ है और न ही होने जा रहा है। हम प्रधानमंत्री द्वारा घोषित समयसीमा यानी 2024 तक इस काम को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। राज्य भी इस काम में हमारे साथ हैं। चुनावों के किसी दबाव से नहीं गुजर रहे हरियाणा जैसे राज्यों ने भी 2022 तक इस मिशन का पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा है। वहीं बिहार और तेलंगाना ने भी 2021-22 तक का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। करीब 70 फीसदी बकाया कनेक्शन अकेले उत्तर प्रदेश में हैं।
पेयजल विभाग को सी-श्रेणी में रखे जाने से उसका व्यय पहली तिमाही में बजट अनुमान के 15 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है। इस पाबंदी से काम बाधित हुआ है?
इससे हम पर कोई असर नहीं पडऩे वाला है क्योंकि कुल आवंटन 30,000 करोड़ रुपये का है। राज्यों के पास भी पिछले वित्त वर्ष के बिना खर्च हुए करीब 6,000 करोड़ रुपये मौजूद हैं। इसके अलावा हमारे पास पर्याप्त फंड भी हैं। 15वे वित्त आयोग ने इस वित्त वर्ष में राज्यों को 60,000 करोड़ रुपये आवंटित करने को कहा है जिसमें से 30,000 करोड़ रुपये अकेले पेयजल एवं स्वच्छता के लिए चिह्नित हैं। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के हिस्से में करीब 4,000 करोड़ रुपये आएंगे। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से भी हमारे पास फंड उपलब्ध हैं। इस योजना के खर्च का कुछ हिस्सा राज्यों से आना है। सरकार की तरफ से एफआरबीएम सीमा बढ़ाने से उनकी भी पहुंच अधिक फंड तक हो चुकी है। मिशन मोड में चलाए जाने वाले इसके प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता होने से पैसे का कोई संकट नहीं है।
कोरोनावायरस के प्रसार पर काबू पाने के लिए स्वच्छता एवं हाथ धोने पर काफी जोर है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता ही एक समस्या है। जल उपलब्धता की मौजदा स्थिति कैसी है?
मैं इस सवाल के कुछ हिस्से पर टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि जलापूर्ति योजनाओं का संचालन एवं प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन जल उपलब्धता के संदर्भ में मैं कह सकता हूं कि 5,000 से अधिक जल भंडार हैं। हम देश में उपलब्ध कुल स्थलीय जलराशि के करीब दो-तिहाई हिस्सा रखने वाले 132 जलभंडारों की निगरानी एवं निरीक्षण करते हैं। गत 1 मई को इन जलाशयों में एक साल पहले की तुलना में 56 फीसदी अधिक पानी मौजूद था। अगर हम 2009-19 के दौरान के दस वर्षों का औसत लें तो भी हमारे पास 46 फीसदी अधिक पानी उपलब्ध है। इसके पीछे अहम कारण अच्छी बारिश है। हमारे लिए यह किसी वरदान जैसा है।
अब वायरस का प्रसार ग्रामीण इलाकों में भी होने लगा है। इस संकट से निपटने में आपके मंत्रालय की क्या भूमिका होगी?
प्रधानमंत्री ने गरीब कल्याण रोजगार योजना शुरू की है। इस समय ग्रामीणों एवं राज्य सरकारों के लिए जल जीवन मिशन रोजगार का सबसे बड़ा मौका है। कुआं, तालाब एवं तलहटी की खुदाई के अलावा नई पाइपलाइन बिछाने का काम गांवों में खूब होगा। इससे अधिक प्लंबर एवं निर्माण श्रमिकों को काम मिलेगा। यह योजना केवल हर घर तक पानी का कनेक्शन पहुंचाने की ही नहीं है, इससे देश के हरेक गांव में रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
विश्व बैंक ने हाल ही में गंगा पुनरुद्धार के लिए 40 करोड़ डॉलर का सहयोग दिया है। इस फंड का उपयोग किस तरह होने वाला है?
हमने गंगा पुनरुद्धार के लिए एक हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल अपनाया है। गंगा को स्वच्छ करने का काम करीब 35 वर्षों से जारी है। तमाम छोटे-बड़े ढांचे खड़े किए गए जिनका मकसद प्रदूषण रोकना था। लेकिन इन परियोजनाओं के संचालन एवं रखरखाव का कोई बजट प्रावधान नहीं होने से कई परियोजनाएं बीच में ही ठप पड़ गईं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस मिशन का कामकाज अपने हाथ में लेने के बाद हमने हाल ही में एक ऐसी परियोजना को अभी बिजली कनेक्शन मुहैया कराया है। इस मॉडल में जो भी कोई परियोजना लगाएगा उसे अगले 15 वर्षों तक उसका रखरखाव भी करना होगा। हम 40 फीसदी भुगतान अग्रिम करेंगे और ब्याज एवं परिचालन लागत के साथ बाकी 60 फीसदी भुगतान हरेक छह महीने या साल भर में किया जाता रहेगा। हमने एक शहर में एक ही ऑपरेटर को सभी परियोजनाओं के रखरखाव के लिए जवाबदेह बनाने का फैसला भी किया है। शहर में अगर एक भी जलशोधन संयंत्र काम नहीं करता था तो नदी में गंदा पानी पहुंचता रहता था लेकिन एक ही ऑपरेटर होने से वह सभी संयंत्रों के लिए जिम्मेदार होगा। जवाबदेही तय करने के लिए यह कदम उठाया गया है।
आखिर पिछले दो साल से भूजल की स्थिति के बारे में आंकड़े क्यों नहीं जारी किए गए हैं?
भूजल स्थिति संबंधी आंकड़े हरेक तीन-चार साल पर जारी करने की व्यवस्था है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। हमारी डेटा रिकवरी व्यवस्था काफी अलग रही है। हमने सभी आंकड़ों को ऑनलाइन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। हम एक नया प्लेटफॉर्म नैशनल वॉटर इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनडब्ल्यूआईसी) शुरू कर रहे हैं। आने वाले दिनों में आप सतही जल, भूजल और जलवाही स्तर के साथ-साथ छोटे से छोटे जलाशय के बारे में भी इस प्लेटफॉर्म से जानकारी ले सकेंगे। हमने राज्यों से भी कहा है कि वे अपने आंकड़ों को हमारे साथ साझा करें। हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से भी बात कर रहे हैं कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े हमारे साथ साझा करे। एक साल के भीतर यह प्लेटफॉर्म सक्रिय हो जाएगा।
हम कृषि कार्यों में पानी के विवेकपूर्ण उपयोग को किस तरह सुनिश्चित करने जा रहे हैं?
हमारी कुल जल निर्भरता का 65 फीसदी भूजल का है। यह एक अदृश्य स्रोत है। अगले तीन-चार वर्षों में हम देश के सभी जलवाही स्रोतों का अध्ययन कर पाने की स्थिति में होना चाहते हैं। हमने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों के सभी रेतीले इलाकों का हेलीबोर्न तकनीक के जरिये अध्ययन करने का एक कार्यक्रम भी शुरू किया है। कैमरों की मदद से हम मिट्टी की सतह के 300 मीटर गहराई पर स्थित जलवाही स्रोतों का अध्ययन करेंगे और उसका उपलब्ध भू-स्थानिक आंकड़ों से मिलान करेंगे। इस जानकारी के आधार पर हम हरेक गांव के लिए एक योजना बनाएंगे। अधिकांश किसानों को यह पता ही नहीं होता है कि उनके फसली इलाके में कितना भूमिगत जल उपलब्ध है।