महानगर टेलीफोन लिमिटेड (एमटीएनएल) की 21 जमीनें बेचने की राह में व्यवधान आ गया है। दूरसंचार विभाग (डीओटी) इससे मिले धन को साझा करने को तैयार नहीं है, जैसा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अनिवार्य किया है।
एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यह अनिवार्य बनाया गया है कि बिक्री से मिली 50 प्रतिशत राशि डीडीए को देनी होगी। उसके बाद पूंजीगत लाभ कर, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और लाइसेंस शुल्क होगा। यह सब देने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा।’ इस समय विभाग कुछ राहत के लिए डीडीए से बात कर रहा है। राष्ट्रीय राजधानी और मुंबई में स्थित एमटीएनएल की जमीने अत्यंत प्रमुख इलाकों में हैं, जो संपत्ति मुद्रीकरण की कवायद का हिस्सा है।
अक्टूबर 2019 में सरकार ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और एमटीएनएल के लिए 70,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। कंपनियों की जमीन बेचकर 37,500 करोड़ रुपये जुटाना भी इस पैकेज का हिस्सा था, जिसका इस्तेमाल कर्ज निपटाने, नेटवर्क के उन्नयन और कंपनी के कर्मचारियों की संख्या घटाकर आधा करने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की पेशकश करने के लिए होना था।
राहत पैकेज मेंं 15,000 करोड़ रुपये का सॉवरिन बॉन्ड इश्यू शामिल था। साथ ही बीएसएनएल और एमटीएनएल को प्रशासित मूल्य पर 4जी स्पेक्ट्रम का आवंटन भी किया जाना था। दोनों फर्मों को 4जी स्पेक्ट्रम के लिए 20,140 करोड़ रुपये, 50 प्रतिशत कर्मचारियों के वीआरएस के लिए 29,937 करोड़ रुपये और रेडियोवेव्स के आवंटन पर लगे वस्तु एवं सेवाकर के लिए 3,674 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि संपत्ति की बिक्री जरूरी कवायद है जिससे वीआरएस के लिए भुगतान होना है। जहां तक संपत्ति की बिक्री का संबंध है, यह एकमुश्त कवायद नहीं है और दो वर्षों में होना है। दीपम दोनों कंपनियों व डीओटी के बीच समन्वय स्थापित करने का काम कर रहा है।