न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने की किसानों की मांग के बीच विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने भारत की व्यापार नीति की समीक्षा की है, जिसमें यह कहा गया है कि न्यूनतम कीमत तय करने से फसल पैटर्न बिगड़ रहा है। डब्ल्यूटीओ सचिवालय की तरफ से स्वतंत्र रूप से लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि फसल पैटर्न बिगडऩे से गेहूं, चावल, कपास और गन्ने जैसी उन फसलों की बुआई बढ़ रही है, जिन्हें केंद्र सरकार एमएसपी पर खरीदती है। वहीं किसान दलहन, मोटे अनाज और तिलहन पैदा करने से दूरी बना रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ निश्चित राज्यों से खरीद के नतीजतन उत्पादन में क्षेत्रीय असमानता पैदा हुई है। इसमें कहा गया है, ‘कृषि बाजारों के बिखराव और कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण किसानों को ग्राहकों की तरफ से चुकाई गई कीमत का एक मामूली हिस्सा मिलता है और ज्यादातर हिस्सा बिचौलियों की जेब में जाता है।’ भारत की नीति की पिछली समीक्षा 2015 में हुई थी।
सरकार की तरफ से लागू नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर इस समय दिल्ली के नजदीक विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख चिंताओं में से एक गारंटीशुदा एमएसपी का मुद्दा है। सरकार किसान संगठनों के साथ सातवें दौर की बातचीत कर चुकी है, मगर उनकी दो मांगों को लेकर गतिरोध बरकरार है। ये मांग नए कानूनों को रद्द करना और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कृषि नीति का मकसद घरेलू खाद्य कीमतों और खाद्य सुरक्षा में स्थिरता लाना और यह सुनिश्चित करना है कि खाद्य सब्सिडी का सरकार की कुल सब्सिडी में करीब आधा हिस्सा हो। कुल प्रत्यक्ष सब्सिडी में अतिरिक्त तीसरा हिस्सा उर्वरक सब्सिडी का शामिल है। इस रिपोर्ट में एक स्वतंत्र अनुसंधान का हवाला दिया गया है। इसमें अनुमान जताया गया है कि कृषि के लिए सरकारी सब्सिडी का आकार वर्ष 2015-16 में कृषि उत्पादन का करीब आठ फीसदी था, जबकि इस क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश लगातार घट रहा है। इन चुनौतियों के समाधान के लिए भारत ने नए कृषि कानून लागू कर विपणन सुधार शुरू किए। इन कृषि कानूनों में कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020 शामिल हैं, जो किसानों और कारोबारियों को कृषि उपजों का अंतर या अंतर-राज्यीय व्यापार करने की स्वतंत्रता देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें अनुबंध कृषि को प्रोत्साहन दिया गया है, जिसका लक्ष्य किसानों का संरक्षण एवं सशक्तीकरण है ताकि वे आपसी सहमति से तय कीमतों पर कारोबारी कंपनियों, प्रसंस्करणकर्ताओं, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं से जुड़ सकें।
बदलावों से अनिश्चितता
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब भी घरेलू मांग एवं आपूर्ति के प्रबंधन के लिए शुल्क, निर्यात कर, न्यूनतम आयात कीमत, आयात एवं निर्यात प्रतिबंधों और लाइसेंस जैसे व्यापार नीति के घटकों पर निर्भर है। घरेलू कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था को बचाने और प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए शुल्कों का उपयोग किया जाता है। इस वजह से शुल्क दरों और अन्य व्यापार नीति इंस्ट्रुमेंट में बार-बार बदलाव होते हैं, जिससे व्यापारियों के लिए अनिश्चितता पैदा होती है।
चीन से आयात के खिलाफ ज्यादातर डंपिंग रोधी जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने वर्ष 2015 से दिसंबर 2019 के बीच 233 जांच शुरू कीं। इस तरह इनमें वर्ष 2011 से जून 2014 के दौरान 82 जांचों की तुलना में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। समीक्षाधीन अवधि में ज्यादातर जांच चीन और दक्षिण कोरिया में बने उत्पादों की हुईं।