भारत के मसाला किंग और एमडीएच मसाला के मालिक धर्मपाल गुलाटी का गुरुवार को नई दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। सूत्रों ने बताया कि गुलाटी (97) का माता चानन देवी हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। खबरों के मुताबिक उनका कोविड-19 संक्रमण के बाद का इलाज चल रहा था और गुरुवार सुबह हृदय गति रुकने से उनका निधन हुआ। मसाला किंग के नाम से मशहूर गुलाटी को 2019 में देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
उनके निधन पर सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में शुभचिंतकों ने श्रद्धाजंलि दी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया, ‘पद्म भूषण से सम्मानित, महाशयां दी हट्टी (एमडीएच) के अध्यक्ष श्री धर्मपाल गुलाटी जी के निधन से दु:ख हुआ। वे भारतीय उद्योग जगत के एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व थे। समाज सेवा के लिए किए गए उनके कार्य भी सराहनीय हैं। उनके परिवार व प्रशंसकों के प्रति मेरी शोक संवेदनाएं।’ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने ट्वीट किया, ‘धर्मपाल जी बहुत ही प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपना जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।’
कभी तांगा चलाते थे, मेहनत से बनाया 1,500 करोड़ का कारोबारी साम्राज्य
मसाला ब्रांड एमडीएच के टेलीविजन विज्ञापनों के जरिए घर-घर में अपनी पहचान बनाने वाले ‘एमडीएच के दादाजी’ के नाम से मशहूर धर्मपाल गुलाटी ने तांगा बेचकर दिल्ली के करोलबाग से अपने मसाला कारोबार की शुरुआत की। वह लगातार आगे बढ़ते रहे और 94 वर्ष की उम्र में देश के एफएमसीजी क्षेत्र में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ बने।
मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में 27 मार्च, 1923 को हुआ था और विभाजन के बाद वह भारत आ गए। उनका परिवार विभाजन के दौरान अपना सब कुछ छोड़कर दिल्ली में रहने आ गया। उनके पिता की सियालकोट में मसालों की दुकान थी, जिसका नाम ‘महाशयां दी हट्टी’ (एमडीएच) था, लेकिन दुकान को ‘देगी मिर्च वाले’ के नाम से जाना जाता था। गुलाटी को कक्षा पांच के बाद स्कूल छोडऩा पड़ा। इसके बाद उन्होंने लकड़ी का काम सीखा, साबुन फैक्टरी, कपड़े की फैक्टरी और चावल मिल में काम किया।
एमडीएच की वेबसाइट पर उनकी जीवनी में लिखा है कि विभाजन के बाद वह 1,500 रुपये के साथ सितंबर 1947 में दिल्ली पहुंचे। उन्होंने 650 रुपये में एक तांगा खरीदा और कुछ दिनों के लिए इसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तक और करोलबाग से बारा हिंदू राव तक चलाया। उन्होंने अक्टूबर 1948 में करोल बाग के अजमल खान रोड में एक छोटी सी दुकान खोलकर अपने पुश्तैनी कारोबार को फिर से शुरू करने के लिए अपनी गाड़ी बेच दी और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। व्यवसाय बढऩे के साथ ही वह खुद देगी मिर्च, चाट मसाला और चना मसाला जैसे एमडीएच के सबसे प्रसिद्ध उत्पादों के टेलीविजन विज्ञापनों में दिखाई देने लगे। इस समय एमडीएच के 50 से अधिक उत्पाद हैं। इस दौरान वह एमडीएच के दादाजी या महाशय जैसे नामों से घर-घर में जाना-पहचाना चेहरा बन गए।
उनके पिता चुन्नी लाल गुलाटी ने 1919 में एमडीएच मसाले की स्थापना की थी और धर्मपाल ने इसे 1,500 करोड़ रुपये के साम्राज्य में बदल दिया। कंपनी की आधिकारिक तौर पर स्थापना 1959 में हुई, जब गुलाटी ने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एक विनिर्माण इकाई स्थापित की। एमडीएच ने मसाले की तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जल्द ही स्वचालित मशीनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया। आज आधुनिक मशीनों द्वारा करोड़ों रुपये के मसालों का निर्माण और पैकिंग की जाती है और कंपनी के 1,000 से अधिक स्टॉकिस्ट और चार लाख से अधिक खुदरा डीलरों के नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत और विदेश में बेचा जाता है।
एमडीएच मसाले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किए जाते हैं, जिनमें ब्रिटेन, यूरोप, यूरोपीय संघ और कनाडा शामिल हैं।
