facebookmetapixel
सावधान! AI कैमरे अब ट्रैफिक उल्लंघन पर रख रहे हैं नजर, कहीं आपका ई-चालान तो नहीं कटा? ऐसे देखें स्टेटसचीन ने बना लिया सोने का साम्राज्य, अब भारत को भी चाहिए अपनी गोल्ड पॉलिसी: SBI रिसर्चQ2 नतीजों के बाद Tata Group के इस शेयर पर ब्रोकरेज की नई रेटिंग, जानें कितना रखा टारगेट प्राइससोना हुआ सुस्त! दाम एक महीने के निचले स्तर पर, एक्सपर्ट बोले – अब बढ़त तभी जब बाजार में डर बढ़ेमॉर्गन स्टैनली का बड़ा दावा, सेंसेक्स जून 2026 तक 1 लाख तक पहुंच सकता है!SBI का शेयर जाएगा ₹1,150 तक! बढ़िया नतीजों के बाद ब्रोकरेज ने बनाया टॉप ‘BUY’ स्टॉकEPFO New Scheme: सरकार ने शुरू की नई PF स्कीम, इन कर्मचारियों को होगा फायदा; जानें पूरी प्रक्रियाNavratna Railway कंपनी फिर दे सकती है मोटा रिवॉर्ड! अगले हफ्ते डिविडेंड पर होगा बड़ा फैसलाक्रिस कैपिटल ने 2.2 अरब डॉलर जुटाए, बना अब तक का सबसे बड़ा इंडिया फोक्स्ड प्राइवेट इक्विटी फंडStock Market Holiday: गुरु नानक जयंती के मौके पर NSE-BSE में आज नहीं होगी ट्रेडिंग; देखें अगली छुट्टी कब है

बिहार की सियासत में मखाने की ताकत

कभी पूजा के प्रसाद तक सीमित था मखाना, आज बन गया सुपरफूड; बिहार के मल्लाहों की मेहनत और शंभू प्रसाद जैसे उद्यमियों की कोशिशों से बदल रही है किस्मत।

Last Updated- November 03, 2025 | 9:08 AM IST
Makhana

शंभू प्रसाद 1998 में मिथिलांचल छोड़ गए थे। उन्होंने पहले जापान फिर अमेरिका में काम किया और अब लंदन में रहते हैं। वहां उन्होंने एक दूरसंचार कंपनी बनाई, जो ब्रिटेन की नैशनल हेल्थ सर्विस और दूसरी कंपनियों के साथ काम करती है। मगर शंभू प्रसाद का दिल आज भी मधुबनी और मखाने में ही अटका है। वह साल में कई बार मधुबनी आते हैं और अपनी कंपनी ‘मधुबनी मखाना’ के कामगारों के बीच पहुंच जाते हैं। अपनी कमीज की बाहें चढ़ाकर वह खुद उनके बीच बैठते हैं और देखते हैं कि मखानों की छंटाई यानी ग्रेडिंग ठीक से हो रही है या नहीं। उनका सपना मखाने को उस ऊंचाई तक ले जाने का है, जहां वह कैलिफोर्निया बादाम की तरह रुतबा हासिल कर लेगा। पिछले साल ही मधुबनी मखाना ने वॉलमार्ट को 350 किलोग्राम मखाने बेचे थे। अब कई और खरीदार तैयार हैं, जिनमें हल्दीराम और रिलायंस भी शामिल हैं।

एक जमाना था, जब मखाने की इतनी चर्चा नहीं होती थी और उत्तर भारत के परिवारों की महिलाएं मानती हैं कि पहले इसका इस्तेमाल पूजा के वक्त प्रसाद में किया जाता था ताकि क्योंकि मखानों के कारण प्रसाद भरा भरा लगता था और मेहमान प्रभावित हो जाते थे। लेकिन इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनता को बताया कि मामूली सा मखाना असल में चीज क्या है।

उन्होंने कहा, ‘मखाना आज देश के तमाम शहरों में नाश्ते में जमकर इस्तेमाल हो रहा है। मैं खुद भी साल के 365 दिन में से 300 दिन मखाने खाता हूं। यह सुपरफूड है।’ दुनिया को 90 फीसदी मखाना भारत से ही मिलता है और 80 फीसदी से ज्यादा बिहार के मिथिलांचल इलाके से आता है, जहां दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी जिले हैं।

अधिकतर मखाने मल्लाह समुदाय ही निकालता है और आज बाजार हो या सियासत, मखाना सिर चढ़कर बोल रहा है। साल 2022 में मिथिला मखाना को जीआई टैग मिला। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025 के अपने बजट भाषण में कहा, ‘कमाई बढ़ने के साथ-साथ फलों की खपत भी बढ़ रही है और राज्यों की मदद से किसानों की कमाई भी बढ़ेगी। बिहार में खास मौका है – राज्य में मखाना किसानों को प्रशिक्षण और मदद देने के लिए मखाना बोर्ड बनाया जाएगा।’ यह वादा 15 सितंबर को पूरा हुआ जब प्रधानमंत्री ने 30 सदस्यों वाले मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की। इसका मुख्यालय पूर्णिया में है मगर सदस्यों के नाम अभी तय नहीं किए गए हैं।

दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ विद्यानाथ झा 40 साल तक मखाने के गुणों पर शोध करते रहे हैं। वह कहते हैं कि मखाना बीमारियों से बचाने की ताकत बढ़ाने यानी इम्यूनिटी बूस्टर की जिस पहचान का हकदार था, वह उसे कोरोना महामारी के दौरान मिली। उन्होंने दरभंगा में बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘2024-25 में पशुओं पर किए गए परीक्षण से पता चला है कि मखाना पौरुष शक्ति भी बढ़ाता है। इसमें वसा होती ही नहीं है, इसलिए खराब जीवनशैली के कारण बीमारियों के शिकार हुए लोगों के लिए यह सेहतमंद है।’

मगर झा और प्रसाद दोनों इस बात को स्वीकार करते हैं कि मखाने की कटाई और उसे तैयार करना बहुत मेहनत का काम होता है, जिसमें स्वच्छता का बहुत कम ध्यान रखा जाता है। मखाना निकालने काम मल्लाह जाति के लोग ही ज्यादा करते हैं, जो तालाब में बिल्कुल नीचे तक गोते लगाते हैं। हर गोते के दौरान उन्हें 8 से 10 मिनट तक सांस रोकनी पड़ती है ताकि मखाने के पौधे से बीज तोड़कर निकाले जा सकें। पहनी नजर में तो आपको मखाने का पौधा बिल्कुल कमल के पौधे जैसा दिखेगा मगर उसमें कांटे होते हैं, जिससे मखानों की कटाई दुश्वार हो जाती है। लंबी छड़ियों या डंडियों की मदद से पौधे हटाए जाते हैं और उसके बाद इकट्ठे किए बीज साफ कर धूप में सुखाए जाते हैं। इसके बाद सूखे हुए बीजों को भूनकर मखाना तैयार किया जाता है और गुणवत्ता के हिसाब से अलग-अलग ग्रेड में छांटकर उनकी पैकिंग की जाती है। अब सरकार भी मखाने की खेती के लिए पट्टे पर जमीन दे रही है।

मखाने निकालने का काम बेशक मल्लाह समुदाय ही करता है मगर उन लोगों की आमदनी बहुत कम होती है। उनके पास एक दमदार आवाज जरूर है – विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश साहनी। वह 2015 में निषाद विकास संघ शुरू करने के लिए हिंदी फिल्म उद्योग में सेट डिजाइन करने का काम छोड़कर बिहार चले आए। उस साल विधानसभा चुनावों में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रचार किया था मगर निषाद समुदाय को अनुसूचित जाति से बाहर किए जाने पर उन्होंने विरोध जताते हुए भाजपा से नाता तोड़ लिया। उसके बाद 2018 में उन्होंने वीआईपी की बुनियाद रखी।

उन्होंने बिहार के दो मुख्य गठबंधनों के बीच बड़ी चतुराई से अपनी जगह बनाई है ताकि आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक फायदा उठाया जा सके। फिलहाल वह तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा हैं। बिहार में किए गए 2023 की जाति जनगणना के अनुसार मल्लाह, सहनी और निषाद समुदाय की आबादी करीब 9 फीसदी है। यह समुदाय 15 से 20 निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक रहता है और इस बात को स्वीकार करते हुए महागठबंधन ने वीआईपी को 15 सीटें दी हैं। साथ ही साहनी को उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जाएगा।

शंभू प्रसाद ने तीन पीढ़ी से चले आ रहे खानदानी कारोबार को आधुनिक बनाने की ठान ली है। उन्होंने लंदन से बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘मैं तकनीक, नवाचार, परंपरा के संगम से, विरासत, नवाचार और पर्यावरण के अनुकूल ग्रामीण आजीविका को जोड़ते हुए मिथिला मखाना को सारी दुनिया के सुपरफूड के नक्शे पर लाना चाहता हूं।’ मखाने को बढ़ावा देने में सरकार की भूमिका पर वह खुलकर कुछ नहीं बोलते मगर अपने समुदाय में उनकी बहुत पूछ है।
मखाने से पैसे बरस रहे हैं। दुनिया भर के बाजारों में करीब एक दशक पहले मखाना 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता था और आज उसकी कीमत बढ़कर 8,000 रुपये प्रति किलो हो गई है। देश के भीतर ही 250 रुपये किलो बिकने वाला मखाना आज 1,400 से 1,600 रुपये किलो बिक रहा है। त्योहारों के दौरान दाम और भी बढ़ जाते हैं।

First Published - November 3, 2025 | 9:08 AM IST

संबंधित पोस्ट