भारत में लोकतंत्र, कानून का शासन और संस्थानों के कारण मुख्यतौर पर स्वतंत्रता के 75 साल बाद भारत के समक्ष असीम संभावनाएं मौजूद हैं। लेकिन भारत के सामने कई चुनौतियां जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और शासन की संरचना हैं। हमें अपनी जनांकीय लाभांश का फायदा उठाना है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड प्लेटिनम पर्स्पेक्टिव्स के नामचीन विशेषज्ञों के पैनल के विचार-विमर्श से मंगलवार को यह मुख्य निष्कर्ष निकला। परिचर्चा का विषय ‘इंडिया@75 – पास्ट, प्रेजेंट ऐंड फ्यूचर’ था। इस परिचर्चा में शामिल नामचीन विशेषज्ञों ने विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत और न्यायोचित राय दी। इन विशेषज्ञों में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की मुख्य कार्यकारी यामिनी अय्यर, आईएसपीपी एकेडमिक एडवाइजर काउंसिल के वाइस चेयरमैन शेखर शाह, भारती एंटरप्राइज के वाइस चेयरमैन अखिल गुप्ता और एवेंडस कैपिटल ऑल्टरनेटिव स्ट्रैटजिस के सीईओ एंड्रूय हॉलैंड शामिल थे।
अय्यर ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था, गुप्ता ने कॉरपोरेट भारत के परिप्रेक्ष्य, हॉलैंड ने मार्केट और शाह ने अर्थवस्था पर अपने विचार पेश किए। परिचर्चा को तीन हिस्सों में बांटा गया था – ‘इंडिया का पास्ट’ जिसमें 1947 से 1990 का दौर भी शामिल था, ‘इंडिया का प्रेजेंट’ (वर्तमान भारत) : साल 1991 में आर्थिक उदारीकरण से लेकर अब तक और ‘इंडिया का फ्यूचर’ स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने पर साल 2047 तक रोड मैप।
भारत के इतिहास पर नजर डालने के दौरान पैनल में शामिल सभी विशेषज्ञ इस बात से सहमत थे कि देश के निर्माताओं ने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं के विचारों को जड़ों को गहरा किया। यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। अय्यर और गुप्ता ने एक पार्टी के शासन (कांग्रेस) से 1970 तक बहुदलीय व्यवस्था के रूप में भारतीय लोकतंत्र के मजबूत होने के बारे में जानकारी दी।
गुप्ता ने कहा कि स्वतंत्रता से लेकर आर्थिक उदारीकरण के दौर से पहले तक भारत में निजी क्षेत्र के लिए अनुकूल नहीं था। इस दौरान कॉरपोरेट विकास को नुकसान पहुंचाने वाले फैसले लिए गए थे जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण। आर्थिक उदारीकरण 1991 से लेकर आजतक के बारे में पैनल में शामिल सभी विशेषज्ञों ने स्वीकार किया कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ी है। हॉलैंड ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण के दौर से पहले भारत का मार्केट पर कई बंदिशें थीं। अब भारत के बाजार में बड़े औद्योगिक निवेशक पैसा लगा रहे हैं और यह विश्व में निवेश का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया है। गुप्ता ने कहा, ‘1990 का दशक टर्निंग पाइंट यानी देश में आमूलचूल बदलाव आ गया।’ पैनल ने स्वीकारा कि आर्थिक उदारीकरण के बाद के दौर में असमानता तेजी से बढ़ी है। भारत कृषि से सेवा क्षेत्र में प्रवेश कर गया और इस दौरान विनिर्माण क्षेत्र को नजरंदाज किया गया। भारत को एक ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने में 60 साल लगे। शाह ने कृषि क्षेत्र की मुख्य समस्या के बारे में कहा कि यह सकल घरेलू उत्पाद में 15 फीसदी योगदान देता है लेकिन इस क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या संलग्न है। विशेषज्ञों ने अगले 25 सालों में नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। इसमें सबसे बड़ी समस्या रोजगार के अवसर पैदा करना और संपत्ति का समानता पर आधारित वितरण है।
अय्यर ने कहा कि अगले 25 वर्षों में उत्तरदायी व समर्थ राज्यों में निवेश करना बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा कि ज्यादातर प्रशासनिक फैसले केंद्रीय कैडर की सेवाओं के जरिये लिए जाते हैं। कौशल, प्रशिक्षण और राज्य स्तर पर बेहतरी और जमीनी स्तर पर अफसरशाही के दायित्वों को सुधारने क लिए भारी मात्रा में निवेश की जरूरत है।
गुप्ता ने कहा कि अगले 25 बरसों में ज्यादा पूंजी और निवेश की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, ‘ हमें ऋण बाजार को बेहतर करना होगा। इक्विटी मार्केट बेहतर काम कर रही है लेकिन ऋण बाजार को मजबूत बनाए जाने की जरूरत है।’ शाह ने कहा, ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था के मामले में हर असमंजस के दौर में हैं। युद्ध ने नई चुनौतियां और नए अवसर पैदा किए हैं। यह जरूरी है कि हम राजकोषीय और अर्थवस्था की बुनियाद को मजबूत रखें।’