केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार, 31 जनवरी, 2025 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2024-25 पेश करते हुए कहा कि भारत के मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्रों ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के पहले नौ महीनों के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया है।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान बैंक ऋण स्थिर दर से बढ़ा है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) की लाभप्रदता में निरंतर सुधार हुआ है, जो पूंजी-से-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) में वृद्धि के साथ-साथ सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में (GNPA) में गिरावट से परिलक्षित होता है। एससीबी का जीएनपीए अनुपात लगातार गिरकर सितंबर 2024 के अंत में 2.6 प्रतिशत के 12 वर्ष के निचले स्तर पर आ गया है। वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही के दौरान एससीबी की लाभप्रदता में सुधार हुआ और कर पश्चात लाभ (पीएटी) में 22.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि हुई।
आर्थिक समीक्षा ने बैंक जमा राशियों में दहाई अंकों की वृद्धि जारी रहने के तथ्य को रेखांकित किया है। नवंबर 2024 के अंत तक, एससीबी की समग्र जमा राशि में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 11.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। क्षेत्रवार, वर्तमान वित्तीय वर्ष में 29 नवंबर, 2024 तक कृषि ऋण में वृद्धि 5.1 प्रतिशत की रही। औद्योगिक ऋण में बढ़ोतरी हुई और यह नवंबर 2024 के अंत तक 4.4 प्रतिशत रही, जोकि एक साल पहले दर्ज 3.2 प्रतिशत से अधिक थी। सभी उद्योगों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को दिया जाने वाला बैंक ऋण बड़े उद्यमों को दिये जाने वाले ऋम वितरण की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। नवंबर 2024 के अंत तक एमएसएमई को दिये जाने वाले ऋण में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि बड़े उद्यमों के लिए यह वृद्धि 6.1 प्रतिशत थी।
ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं ने भी अपेक्षाकृत निम्न एनपीए और बेहतर ऋण वितरण दर्ज किया। आरआरबी का समेकित समेकित शुद्ध लाभ वित्तीय वर्ष 2023 में 4,974 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 7,571 करोड़ रुपये गया। समेकित सीआरएआर मार्च 2023 तक 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च, 2024 तक 14.2 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। आरआरबी का ऋण जमा अनुपात मार्च 2023 में 67.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2024 तक 71.2 प्रतिशत हो गया।
समीक्षा में इस बात की जानकारी दी गई है कि वित्तीय समावेशन के मामले में भी सरकार ने उल्लेखनीय प्रगति की है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का वित्तीय समावेशन सूचकांक मार्च 2021 में 53.9 से बढ़कर मार्च 2024 के अंत में 64.2 हो गया है। भारत की वित्तीय समावेशन यात्रा को सुगम बनाने में ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं (आरएफआई) की महत्त्पूर्ण भूमिका रही है। विकास वित्तीय संस्थानों (डीएफआई) ने अवसंरचना विकास परियोजनाओं के वित्त पोषण के माध्यम से देश की आर्थिक प्रगति में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने विकास को बनाए रखने और मुद्रास्फीति को स्वीकार्य सीमा के भीतर रखने के दोहरे लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2025 (अप्रैल 2024–दिसंबर 2024) के पहले नौ महीनों के दौरान अपनी विभिन्न बैठकों में नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। आर्थिक समीक्षा ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि तरलता समायोजन सुविधा के अंतर्गत समग्र स्थिति द्वारा दर्शायी जाने वाली प्रणालीगत तरलता भी अक्टूबर-नवंबर 2024 के दौरान अधिशेष (सरप्लस) रहा।
आर्थिक समीक्षा 2024-25 में बताया गया है कि पूंजीगत बाजारों ने वास्तविक अर्थव्यवस्था के लिए पूंजी निर्माण को उत्प्रेरित कर घरेलू बचत के वित्तीयकरण को बढ़ाते हुए और धन सृजन को समर्थन प्रदान करते हुए मजबूत प्रदर्शन किया है। मजबूत सूक्ष्म आर्थिक तत्वों, बेहतर कॉर्पोरेट आय, सहयोगी संस्थागत निवेश, एसआईपी (SIP) की ओर से मजबूत प्रवाह और बेहतर औपचारिकीकरण, डिजिटलीकरण एवं पहुंच ने बाजार की वृद्धि को तेज किया है। समीक्षा ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि बाजार में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बावजूद वित्तीय वर्ष 2025 में प्राथमिक बाजारों में लिस्टिंग गतिविधियों एवं निवेशकों के उत्साह में वृद्धि देखी गई।
वैश्विक आईपीओ लिस्टिंग में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2023 में 17 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2024 में 30 प्रतिशत हो गई, जिससे यह वैश्विक स्तर पर अग्रणी योगदानकर्ता बन गया। अप्रैल से दिसंबर 2024 तक प्राथमिक बाजारों (इक्विटी और ऋण) कुल 11.1 लाख करोड़ रुपये राशि के संसाधन जुटाए गये, जो पूरे वित्तीय वर्ष 2024 के दौरान जुटाई गई राशि से 5 प्रतिशत अधिक है। दिसंबर 2024 के अंत में बीएसई बाजार का पूंजीकरण जीडीपी अनुपात 136 प्रतिशत था, जो पिछले 10 वर्षों में काफी बढ़ गया है। भारतीय स्टॉक का सकारात्मक प्रदर्शन मजबूत लाभप्रदता वृद्धि, डिजटल वित्तीय अवसंरचना के तेज वृद्धि, निवेशक आधार के विस्तार और उत्पादों एवं प्रक्रियाओं में पर्याप्त सुधारों से प्रेरित था। पूंजीगत बाजारों में निवेशकों की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है और निवेशकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2020 में 4.9 करोड़ से बढ़कर 31 दिसंबर, 2024 को 13.2 करोड़ हो गई। सक्रिय लिस्टिंग गतिविधियों और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) जैसे नियामकों द्वारा अतिरेक को नियंत्रित करने के उद्देश्य से किये गये हालिया उपायों के साथ इस वृद्धि से बाजार के निरंतर विस्तार की उम्मीद है।
समीक्षा के मुताबिक, भारत का बीमा क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और अगले पांच सालों (2024-2028) के दौरान इसके जी-20 के बाकी देशों की तुलना में सबसे तेज गति से वृद्धि करने की उम्मीद है। इसने अपनी प्रगति जारी रखी हुई है और वित्तीय वर्ष 2024 में कुल बीमा प्रीमियम 7.7 प्रतिशत बढ़कर 11.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। 3.7 प्रतिशत की समग्र बीमा पैठ दर 7 प्रतिशत के वैश्विक औसत के कम है, के कारण कवरेज में उल्लेखनीय अंतर है, जोकि बीमा कंपनियों के लिए अपनी पहुंच बढ़ाने का अवसर प्रस्तुत करता है। टियर 2 और 3 शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों को लक्षित करके जहां जागरूकता और पहुंच सीमित है, बीमाकर्ता नये ग्राहक खंडों तक पहुंच सकते हैं और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
समीक्षा इस तथ्य को रेखांकित करता है कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) और अटल पेंशन योजना (एपीवाई) की शुरुआत के बाद से भारत के पेंशन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सितंबर 2024 तक अभिदाताओं की कुल संख्या 783.4 लाख तक पहुंच गई, जो सितंबर 2023 में 675.2 लाख से वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 16 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है। निम्न मध्यम आय वाले देश से उच्च मध्यम आय वाले देश के रूप में अर्थव्यवस्था के बदलाव से पेंशन क्षेत्र में वृद्धि होने की उम्मीद है। बीमा एवं पेंशन क्षेत्र में सार्वभौमिक कवरेज तथा वित्तीय इको-सिस्टम को मजबूत करने क दृष्टिकोण के साथ बेहतर प्रदर्शन करना जारी रखेंगे।