भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के मुकाबले मामूली अंतर के साथ जीत दर्ज की। वहीं राजग सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने 20 साल में अपना सबसे कमजोर प्रदर्शन दर्ज कराया। हालांकि राजद को लोकप्रिय वोट मिले और विधानसभा में सबसे ज्यादा सीटें भी मिलीं लेकिन इसके सहयोगी दल, सत्तासीन गठबंधन को बहुमत तक पहुंचने से नहीं रोक सके। जदयू के नीतीश कुमार साल 2005 में तत्कालीन राजद शासन को ‘जंगलराज’ बताते हुए ‘विकास’ के नाम पर सत्ता में आए थे। तब से लेकर राज्य के चुनाव काफी हद तक उनके ही नेतृत्व में और उनकी ही लोकप्रियता के बूते लड़े गए और वह 15 सालों तक सत्ता में बने रहे। लेकिन इस बार का चुनाव अलग था।
भाजपा के प्रदर्शन या नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता ने अपने गठबंधन सहयोगी यानी राज्य में नीतीश कुमार के करिश्मे को धुंधला कर दिया। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इसे महज एक कारक माना जा सकता है और भाजपा पिछले कुछ सालों में राज्यों में मजबूत पैठ बना रही है और इसके लिए पार्टी एक मजबूत राजनीतिक रणनीति पर काम कर रही है जो केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई), प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएम ग्रामीण आवास), उज्ज्वला योजना (मुफ्त गैस कनेक्शन) और पीएम-किसान जैसी योजनाओं का लाभ सीधे तौर पर मतदाताओं को मिलता है और ये सभी योजनाएं प्रधानमंत्री के नाम पर हैं और इनके ही बलबूते राजग ने बिहार में अपनी जीत का दमखम दिखाया है। ऐसे में सवाल है कि बिहार में केंद्रीय योजनाओं का रिपोर्ट कार्ड कैसा है? गांवों को कस्बों से जोडऩे वाली मोदी सरकार के नेतृत्व वाली योजना चार साल (2016-17 से 2019-20) में 11,160 बस्तियों तक पहुंच गई और 16,755 किलोमीटर (किमी) लंबी सड़कों का निर्माण किया गया। हालांकि पीएमजीएसवाई लक्ष्य अधिक था और इसी अवधि के दौरान 13,835 बस्तियों और 21,440 किमी की उपलब्धि भी अहम है। ग्रामीण आवास योजना (पीएमएवाई-ग्रामीण) के तहत, 25.4 लाख घरों को मंजूरी दी गई है और 2016 में योजना की शुरुआत के बाद ही 13.1 लाख से अधिक घरों का निर्माण किया गया है। इसकी वजह से इन योजनाओं के पूरा होने की दर 51.2 फीसदी है जो 68.5 फीसदी के राष्ट्रीय दर से कम है। लेकिन एक ऐसे राज्य में जहां एक परिवार औसतन दो वोटों (2.1 करोड़ परिवारों) का योगदान करता है और करीब 13.1 लाख से अधिक मतदाताओं को एक नया मुफ्त घर मिल रहा है जो बहुत मायने रखता है।
अगर हम आधिकारिक तारीख के हिसाब से देखें तो स्वच्छता में सुधार भी काफी है। 2014-15 में घर के परिसर के भीतर शौचालय वाले केवल 27 प्रतिशत घर थे और अब इसका कवरेज 99.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है जो पूर्ण स्वच्छता के करीब है। यह सुधार नीतीश के हालिया कार्यकाल में हुआ। केंद्र सरकार की जिस योजना में ज्यादा रफ्तार नहीं दिखी वह थी किसानों की नकद आमदनी में समर्थन देने की योजना। 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 75 लाख से अधिक योग्य किसान थे जिनमें से करीब 3 फीसदी ने किस्त हासिल की। यह 2019 में बढ़कर 86 प्रतिशत हो गया और 2020 में लगभग 99 प्रतिशत किसानों को इसमें शामिल किया गया जिसके तहत उन्हें 2,000 रुपये से कम से कम एक किश्त जरूर मिली है। राज्य की योजनाओं की तुलना में केंद्रीय योजनाओं के प्रति मतदाताओं ने ज्यादा जुड़ाव महसूस किया और इसके बारे में शोधकर्ताओं यामिनी अय्यर और नीलांजन सरकार ने अंदाजा लगाया कि मौजूदा राष्ट्रीय नीति प्रत्यक्ष और प्रभावी है तो यह वोटों में तब्दील करने के लिहाज से क्षेत्रीय स्तर की नीति की तुलना में ज्यादा लाभप्रद स्थिति में है। उन्होंने हाल ही में ‘2019 के राष्ट्रीय चुनाव और उससे परे क्षेत्रीय पार्टी की ताकत में कमी की समझ’ नाम के शीर्षक से जुड़े एक शोध पत्र में लिखा, ‘एक ऐसा प्रशासनिक माहौल बना जिसमें राज्य सरकारों को अब योजनाओं के वितरण के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता था और योजना के लाभ के लिए सीधे तौर पर केंद्र को जिम्मेदार ठहराया जाता था। मोदी सरकार ने संतुलन के साथ इसके मौलिक स्वरूप को बदल दिया।’ यह शोध पत्र एक जर्नल कंटेम्पररी साउथ एशिया में प्रकाशित हुआ।
उन्होंने कहा कि आधार आधारित प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) केंद्र और मतदाताओं के बीच सीधे लिंक के रूप में काम करता था। उन्होंने शोधपत्र में कहा, ‘सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रमुख सुधारों के रूप में, आधार और डीबीटी को फिर से लॉन्च किया गया। राजनीतिक रूप से, इससे प्रधानमंत्री और योजना के लाभार्थियों के बीच सीधा संबंध और मजबूत करने का मौका बना क्योंकि यह लाभ केंद्र सरकार के खजाने से सीधे नागरिकों के बैंक खातों में चला गया।’
दिल्ली स्थित थिंक टैंक, अकाउंटबिलिटी इनीशिएटिव में अवनि कपूर और अन्य लोगों के शोध ने राज्यों के विकास खर्च में केंद्रीय योजना के वित्त के महत्व को भी दर्शाया। केंद्र द्वारा प्रायोजित इन योजनाओं के माध्यम से जो पैसा बिहार भेजा गया वह राज्य की कुल आय का 22 प्रतिशत है। कमजोर राज्य, राजस्व के मामले में केंद्र पर काफी निर्भर हैं। आर्थिक रूप से कमजोर प्रमुख राज्यों में से एक बिहार अपनी राजस्व प्राप्तियों का 75.78 प्रतिशत केंद्र सरकार के हस्तांतरण से लेता है। राजग के सत्ता में आने का एक और कारण यह है कि महिला मतदाताओं का समर्थन मिला। खबरों के अनुसार, राज्य के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 166 में महिला मतदाताओं ने अपने पुरुष समकक्षों को मात दी। इसके अलावा, महिलाओं ने मतदान में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया।
