जी20 देशों के ऊर्जा परिवर्तन कार्य समूह की चौथी एवं आखिरी बैठक में रूस और चीन ने अड़ंगा लगा दिया, जिससे आम सहमति नहीं बन सकी। सूत्रों ने बताया कि रूस ऊर्जा परिवर्तन योजना की विज्ञप्ति के मसौदे में यूक्रेन का उल्लेख करने के लिए काफी दबाव बना रहा है।
रूस ने उसमें यह शामिल कराना चाहता है कि दोनों देशों के बीच जारी युद्ध के दौरान यूक्रेन ने उसकी गैस पाइपलाइन नष्ट कर दी है, जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा और भविष्य खतरे में पड़ गया है। सूत्रों ने बताया कि इस प्रस्ताव का सभी देशों ने विरोध किया है, मगर भारत ने इस पर अपना रुख नहीं बताया है।
एक सूत्र ने कहा ‘जीवाश्म ईंधन से संबंधित मुद्दों पर भारत को रूस का समर्थन चाहिए। यूक्रेन पर रुख वही रहेगा, जो केंद्र सरकार ने कहा है मगर विज्ञप्ति के मसौदे में यूक्रेन युद्ध का उल्लेख करना विवादास्पद होगा।’
पिछले साल सितंबर में नॉर्ड स्ट्रीम1 और नॉर्ड स्ट्रीम2 प्राकृतिक गैस पाइपलाइन पर गुप्त तरीके से बमबारी की गई थी। इन दोनों पाइपलाइनों का निर्माण बाल्टिक सागर के जरिये रूस से जर्मनी तक प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए किया गया था। इसके ज्यादातर हिस्से की मालिक रूस की सरकारी गैस कंपनी गैजप्रोम है।
विकसित देश भारत पर कोयले के इस्तेमाल की आखिरी तारीख बताने के लिए दबाव डाल रहे हैं। भारत ने गैस के उपभोक्ता देशों से प्राकृतिक गैस को स्वच्छ ऊर्जा के बजाय जीवाश्म ईंधन की श्रेणी में डालने का अनुरोध किया है। रूस इस मामले में भारत का साथ देने के लिए तैयार है। अमेरिका रूस को इस चर्चा से बाहर रखना चाहता है।
जी20 की बैठक से पहले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अगर हमें कोयला बंद करना ही है तो यूरोपीय देशों को भी गैस के लिए ऐसा ही लक्ष्य तय करना चाहिए। ऊर्जा सुरक्षा हर अमीर-गरीब देश के लिए महत्त्वपूर्ण है लेकिन इसमें किसी एक को निशाना नहीं बनाया जा सकता। भारत ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम मिश्रण सुनिश्चित करेगा मगर अभी कोयले की बड़ी भूमिका है।’
ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस पर पूरी सर्वसम्मति है। मगर शुरुआत से इसका संकल्प लेने वाले चार देशों के अलावा किसी अन्य देश ने इस गठबंधन में शामिल होने की इच्छा नहीं जताई है। ऊर्जा दक्षता की दर दोगुनी करने पर भी जी20 देशों ने सहमति जताई है।
जिन दो हरित क्षेत्रों के लिए भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाएं हैं उन पर जी20 देशों के विचार अलग-अलग हैं। खबर लिखे जाने तक हाइड्रोजन की परिभाषा पर कोई सहमति नहीं बन पाई थी। भारत ‘लो-कार्बन’ और ‘स्वच्छ हाइड्रोजन’ पर विचार कर रहा है, क्योंकि उसने हरित हाइड्रोजन (हरित ऊर्जा के इस्तेमाल से बनी) के लिए एक योजना शुरू की है। मगर यूरोपीय देश ब्लू हाइड्रोजन (प्राकृतिक गैस से बनी) के हिमायती हैं। ऐसे में हाइड्रोजन का नाम और उसकी परिभाषा वैश्विक प्रोत्साहन एवं मानकों का मार्ग प्रशस्त करेगी।
इसी तरह दुर्लभ खनिजों पर चीन यह कहते हुए अड़ गया है कि पृथ्वी से प्राप्त खनिजों को दुर्लभ नहीं कहा जाना चाहिए। एक सूत्र ने कहा, ‘चीन दुर्लभ खनिज के मुद्दे पर किसी भी वैश्विक नियम के दायरे में आने से बचना चाहता है क्योंकि फिलहाल उसके पास ऐसे खनिजों का सबसे बड़ा भंडार है।’ दुनिया के 60 फीसदी दुर्लभ खनिज चीन से ही आते हैं।