व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो (Peter Navarro) ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति की राह दिल्ली से होकर जाती है। साथ ही दावा किया कि भारत अपनी भूमिका को हिंसा में स्वीकार नहीं करना चाहता। नवारो ने गुरुवार (स्थानीय समय) को पीबीएस न्यूज़ से बातचीत में कहा, “भारत ऐसा नहीं दिखता कि वह अपनी भूमिका को स्वीकार करना चाहता है… वह शी चिनफिंग (चीनी राष्ट्रपति) से नजदीकियां बढ़ा रहा है। उन्हें (भारत को) रूसी तेल की जरूरत नहीं है। यह एक रिफाइनिंग प्रोफिटियरिंग स्कीम है। यह क्रेमलिन के लिए एक लॉन्ड्रोमैट है। मुझे भारत से प्यार है, मोदी एक महान नेता हैं, लेकिन कृपया भारत, ग्लोबल इकॉनमी में अपनी भूमिका को देखें। आप अभी जो कर रहे हैं, वह शांति स्थापित नहीं कर रहा, बल्कि युद्ध को लंबा खींच रहा है।”
व्हाइट हाउस के इस एडवाइजर ने कहा कि शांति की राह दिल्ली से होकर जाती है। विस्तार से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका को सामान निर्यात कर जो कमाई करता है, उसी पैसे से वह रूस से तेल खरीदता है। रूस उस पैसे से और हथियार बनाता है और यूक्रेनियों की हत्या करता है। इसके बाद अमेरिकी टैक्सपेयर्स को यूक्रेन की मदद के लिए और सैन्य हथियार मुहैया कराए जाते हैं।
नवारो ने यह भी आरोप लगाया कि भारत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से नजदीकी बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत रूसी कच्चा तेल सस्ते दामों पर खरीदकर उसे रिफाइन करता है और तैयार उत्पादों को ऊंचे दामों पर वैश्विक बाजार में बेच रहा है। उन्होंने भारत को “क्रेमलिन का लॉन्ड्रोमैट” करार दिया।
भारत पर लगाए गए 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ के दूसरे चरण को लेकर नवारो ने कहा, “भारत पर 25 फीसदी टैरिफ इसलिए लगाए गए क्योंकि वे व्यापार में हमारे साथ धोखाधड़ी करते हैं। फिर 25 फीसदी टैरिफ इसलिए क्योंकि वे रूसी तेल खरीदते हैं… उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं – महाराजा टैरिफ… हम उनके साथ भारी व्यापार घाटा चला रहे हैं। इससे अमेरिकी कामगारों और व्यवसायों को नुकसान होता है।”
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नवारो का यह बयान उस समय आया है जब उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था — “India’s oil lobby is funding Putin’s war machine — that has to stop” (भारत की तेल लॉबी पुतिन की युद्ध मशीन को फंड कर रही है — इसे रोका जाना चाहिए)। इसमें उन्होंने बताया कि भारत और रूस के बीच तेल व्यापार का गणित कैसे काम करता है। उन्होंने भारत पर “दुनिया के सबसे ऊंचे औसत टैरिफ” लगाने और “नॉन-टैरिफ बाधाओं का घना जाल खड़ा करने” का आरोप लगाया, जिससे अमेरिकी कामगारों और कंपनियों को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका का भारत के साथ वार्षिक व्यापार घाटा करीब 50 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। और “सबसे बड़ी बात यह है कि भारत उन्हीं अमेरिकी व्यापार डॉलर से रूस से तेल खरीद रहा है।”
एक वीडियो में, जिसे उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, नवारो ने कहा कि भारत को वास्तव में रूसी तेल की आवश्यकता नहीं है। विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण से पहले भारत, रूस से अपने कुल तेल आयात का एक फीसदी से भी कम खरीदता था, जबकि अब यह आंकड़ा लगभग 35 से 40 फीसदी तक पहुंच गया है।
अपने फाइनेंशियल टाइम्स लेख में उन्होंने लिखा, “स्पष्ट कर दूं, यह बढ़ोतरी घरेलू तेल खपत की जरूरतों के कारण नहीं हुई है। बल्कि इसे चला रहा है भारत की ‘बिग ऑयल’ लॉबी का मुनाफाखोरी मॉडल। रिफाइनिंग कंपनियों ने भारत को डिस्काउंटेड रूसी कच्चे तेल के लिए एक विशाल रिफाइनिंग हब बना दिया है।”
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नवारो के इस बयान से कुछ दिन पहले अमेरिका की पूर्व संयुक्त राष्ट्र राजदूत निक्की हेली ने यह कहा था कि भारत को “एक मूल्यवान, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक साझेदार” की तरह देखा जाना चाहिए, ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन बनाया जा सके। न्यूजवीक में अपने लेख में हेली ने लिखा कि वह मानती हैं कि एशिया में चीन के प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए केवल भारत ही सक्षम देश है, इसलिए अमेरिका के लिए भारत के साथ मजबूत साझेदारी बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
नवारो की आलोचना ऐसे समय में आई है जब भारत और चीन के बीच संबंध सुधारने की कोशिशें हो रही हैं। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद बिगड़े संबंधों को सामान्य करने के लिए दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत जारी है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी दो दिन के भारत दौरे पर रहे, जहां उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की।
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग ने बुधवार को कहा कि भारत और चीन ने नई समझ विकसित की है, जिसके तहत सीमा पर “सामान्यीकृत प्रबंधन और नियंत्रण” की सहमति बनी है। यह सहमति वांग यी की हालिया नई दिल्ली यात्रा के दौरान बनी।