अमेरिका की एक संघीय अदालत ने अमेरिकी अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) शुल्क बढ़ाने के प्रस्ताव के खिलाफ एक प्रारंभिक निषेधाज्ञा जारी की है। यह शुल्क 2 अक्टूबर से प्रभावी होने वाला था। अमेरिकी अदालत के इस आदेश से गैर-आव्रजन वीजाधारकों और उन भारतीय आईटी कंपनियों को फिलहाल राहत मिली है जो इस प्रकार के वीजा पर अधिक निर्भर हैं।
मुंबई की अमेरिकी आव्रजन कानून फर्म लॉक्वेस्ट की संस्थापक एवं मैनेजिंग पार्टनर पूर्वी चोथानी ने कहा, ‘इस प्रस्ताव पर अस्थायी निषेधाज्ञा मानवीय और कारोबारी दोनों मामलों के लिए एक सकारात्मक परिणाम है क्योंकि कई को एच1बी के लिए प्रति आवेदरन 4,000 डॉलर का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि यह एक अस्थायी फैसला है लेकिन इससे हमें उम्मीद है कि चुनाव से ठीक पहले अंतरिम अंतिम निर्णय (आईएफआर) के तहत अदालत पूछताछ कर रही है।’
अंतरिम नियम को यदि मंजूरी मिल जाती है तो वह तत्काल प्रभाव से प्रभावी हो जाएगा। ऐसे में हितधारकों और आम लोगों को उस पर अपनी राय जाहिर करने का अवसर नहीं मिलेगा।
कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले के लिए जिला न्यायालय के न्यायाधीश जेफरी व्हाइट ने अपने फैसले में कहा कि वादी ने शुल्क वृद्धि की वैधता के बारे में काफी गंभीर सवाल उठाए हैं क्योंकि डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटीज (डीएचएस) के पूर्व और वर्तमान दोनों कार्यकारी सचिवों ने गैरकानूनी तरीके से अपने पदों पर नियुक्त किए गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि इस नियम से कम आय वाले प्रवासियों को काफी नुकसान होगा।
अमेरिका की संघीय एजेंसी ने एच-1बी उच्च कौशल वाले वीजा पर 21 फीसदी शुल्क बढ़ाकर 555 डॉलर करने का प्रस्ताव दिया था जबकि एल वीजा के लिए शुल्क को 75 फीसदी बढ़ाकर 850 डॉलर करने का प्रस्ताव था। आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे परिचालन मार्जिन के मोर्चे पर काफी राहत मिलेगी क्योंकि इससे लागत में 100 आधार अंकों की वृद्धि दिख रही थी।
