इंडिविजन इंडिया पाटनर्स ने डिश टीवी की ओर से शेयरों को खरीदने की इच्छा जताने के बाद डीटीएच सेवा प्रदाताओं को गहरा धक्का लगा है। पहले इंडिविजन ने डीटीएच के शेयरों को 100 रुपये प्रति शेयर की दर से खरीदने का संकेत दिया था। अगर इंडिविजन की ओर से 250 करोड़ रुपये का निवेश किया जाता तो इससे उद्योग जगत को काफी राहत मिलने की उम्मीद थी। डिश टीवी को पूंजीगत निवेश के लिए करीब 1,500 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। डीटीएच सेवा क्षेत्र में लगातार नए खिलाड़ियों का प्रवेश होता जा रहा है, ऐसे में प्रतिस्पद्र्धा दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है और कम कीमत पर बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। सन ने चार दक्षिणी राज्यों में डीटीएच सेवा प्रदान करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। वहीं रिलायंस के साथ भारती भी बहुत जल्द डीटीएच सेवा उपलब्ध कराने के कतार में है। इन परिस्थितियों में उपभोक्ताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए अधिक खर्च करने की आवश्यकता हो सकती है। फिलहाल डिश टीवी एक ग्राहक को अपनी झोली में डालने के लिए 1,880 रुपये खर्च करता है और यह राशि बढ़कर 2,500 रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। कीमतों में इस तरह की बढ़ोतरी से बबैलेंश शीट पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2008 में कंपनी को 450 करोड़ रुपये के राजस्व पर 380 करोड़ रुपये का घाटा होने की उम्मीद है। वही वित्त वर्ष 2009 में राजस्व के 900 करोड़ रुपये की उम्मीद है और घाटा बढ़कर 400 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। 2007 की दिसंबर तिमाही में डिश टीवी के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई थी और बाजार में सन के दस्तक देने से तो यह गिरावट और बढ़ गई है। डिश टीवी की आज भी बाजार में हिस्सेदारी 64 फीसदी की है और बाजार में उसके उपभोक्ताओं की कुल संख्या 28 लाख के करीब है। वर्ष 2010 में जहां कुल उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 45 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है, वहीं डिश टीवी के उपभोक्ताओं की संख्या में 30 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।
पीफिजर के लिए वित्त वर्ष 2007 निराशाजनक रहा है। जहां इस दौरान कंपनी के परिचालन राजस्व में कोई बदलाव नहीं देखा गया और यह 694 करोड़ रुपये पर बना रहा, वहीं कंपनी का परिचालन मार्जिन में 160 आधारभूत अंकों की गिरावट दर्ज की गई और यह 22.4 फीसदी नीचे आ गया। चंडीगढ़ संपत्ति को बेचने की वजह से कंपनी का कुल मुनाफा 221 फीसदी बढ़ गया। 274 करोड़ रुपये में इसे बेचने से कंपनी को इस दौरान 339 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। नवंबर की तिमाही के दौरान कंपनी के राजस्व में महज चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी और यह बढ़कर 183 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था। वहीं मैनुफैक्चरिंग और अन्य खर्चों के अधिक होने की वजह से कंपनी के प्रॉफिट मार्जिन में 470 आधारभूत अंकों यानी 13.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। वहीं इसके ठीक विपरीत ग्लैक्सोस्मिथ फार्मा जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के परिचालन मार्जिन में 150 आधारभूत अंकों यानी 27.5 फीसदी का सुधार देखने को मिला था। यह आंकड़ां 2007 के दिसंबर तिमाही का है। विश्लेषकों का मानना है कि पीफिजी अपने फार्मा व्यापार को बढ़ाने में संघर्षशील रही है। इसकी एक बड़ी वजह कोडीन की कमी बताई जा रही है, जिसे खांसी की दवा कोरेक्स में डाला जाता हहै। गौरतलब है कि कोरेकस से पीफिजर को कुल राजस्व का 20 फीसदी हिस्सा प्राप्त होता है। दिसंबर 2007 में कंपनी ने लिस्टेरीन, बेनाड्रिल, कैलाड्रिल और बेनालिन ब्रांडों को बेच दिया था। इस बिक्री से कंपनी को 215 करोड़ रुपये की कमाई होने की उम्मीद है। पिछले छह महीनों में कंपनी के शेयरों ने कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया है और और इसके शेयरों के भाव इस दौरान 20 फीसदी तक गिरे हैं। विश्लेषकों के अनुसार नवंबर 2008 तक कंपनी के राजस्व में 10 से 13 फीसदी की गिरावट होने की आशंका है।