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यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है: पीटर नवारो

नवारो ने कहा कि पहले रूस से भारत का तेल आयात 1% से भी कम था, लेकिन अब यह 30% से ऊपर है यानी रोजाना 15 लाख बैरल।

Last Updated- August 29, 2025 | 9:55 AM IST
Peter Navarro on India role in Russia Ukraine peace

व्हाइट हाउस ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने एक बार फिर भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने पर हमला बोला है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है।” नवारो का आरोप है कि भारत सस्ता रूसी तेल खरीदकर उसे रिफाइन करता है और फिर बेहतरीन मुनाफे के साथ दुनिया भर में बेचता है, जिससे रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए फंडिंग मिल रही है।

नवारो ने कहा कि पहले रूस से भारत का तेल आयात 1% से भी कम था, लेकिन अब यह 30% से ऊपर है यानी रोजाना 15 लाख बैरल। उन्होंने भारत को “रूस का ऑयल मनी लॉन्ड्रोमैट” करार दिया और दावा किया कि भारत रोजाना 10 लाख बैरल से ज्यादा रिफाइंड फ्यूल यूरोप, अफ्रीका और एशिया को बेचता है। इस प्रक्रिया में भारतीय कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं जबकि रूस को युद्ध के लिए जरूरी विदेशी मुद्रा मिल रही है।

व्यापार घाटा और अमेरिकी गुस्सा

नवारो ने यह भी कहा कि अमेरिका का भारत के साथ 50 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। उन्होंने आरोप लगाया, “हम यूक्रेन को हथियार देते हैं और भारत रूस को पैसा पहुंचाता है।” उनका कहना है कि भारत एक तरफ अमेरिका से हथियार और टेक्नोलॉजी चाहता है, लेकिन दूसरी तरफ रूस से तेल खरीदना जारी रखता है।

नवारो ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के भारत पर 50% आयात शुल्क लगाने के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह आधा अनुचित व्यापार के लिए सजा थी और आधा राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लगाया गया था।

रूस का तेल रोको, टैरिफ घटेगा

नवारो ने संकेत दिया कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे तो अमेरिका तुरंत 25% टैरिफ कम कर सकता है। लेकिन उनका कहना है कि भारत अमेरिकी दबाव को खारिज कर अपनी संप्रभुता का हवाला देता है और कहता है कि वह कहीं से भी तेल खरीदने के लिए स्वतंत्र है।

यह पहला मौका नहीं है जब पीटर नवारो ने भारत की कच्चे तेल आयात नीति पर निशाना साधा है। 21 अगस्त को उन्होंने भारत को “टैरिफ का महाराजा” और “क्रेमलिन के लिए लॉन्ड्रोमैट” बताया था। उनका आरोप था कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदकर भारी मुनाफा कमा रही हैं, जबकि अमेरिकी उपभोक्ता इसकी कीमत चुका रहे हैं।

First Published - August 29, 2025 | 9:55 AM IST

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