विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्तपोषण के लक्ष्यों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाते हुए भारत ने जलवायु वित्तपोषण संसाधनों के आवंटन और प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर के उपयोग पर गहरी निराशा व्यक्त की है।
जलवायु वित्तपोषण पर उच्च स्तरीय मंत्री स्तर की पहली बातचीत पर भारत ने बयान जारी कर कहा, ‘हमने सीओपी26 में अब तक की बातचीत पर अपनी गहरी निराशा जताई है। विकसित देशों को ऐतिहासिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए और विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन मुहैया कराने चाहिए।’
भारत विकसित देशों पर जलवायु वित्तपोषण की प्रतिबद्घता पूरी करने के लिए दबाव डाल रहा है। उसने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई के लिए समय पर पर्याप्त वित्तपोषण की आपूर्ति आवश्यक है। भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा, ‘विकसित देशों ने 2009 में विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन कार्रवाई के वास्ते 2020 तक हर साल 100 अरब डॉलर जुटाने की प्रतिबद्घता जताई थी। लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया। जरूरत और धन जुटाने के बीच बड़ा अंतर देखते हुए वित्तपोषण बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है।’
2009 के सीओपी15 में अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों ने जलवायु वित्तपोषण के लिए 100 अरब डॉलर जुटाने का संकल्प लिया था। इस पैसे को विकासिशील देशों को दिया जाना था ताकि वे भविष्य में कार्बन उत्सर्जन कम करने पर ध्यान केंद्रित कर सकें और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की अपनी क्षमता तथा योजनाओं पर पैसा निवेश कर सकें। भारत ने कहा कि विकसित देशों को साथ मिलकर वित्तीय मदद की अपनी प्रतिबद्घता को पूरा करना चाहिए।
सीओपी21 में निर्णय लिया गया था कि विकसित देशों को विकासशील देशों की जरूरतों और प्राथमिकताओं पर विचार करते हुए हर साल 100 अरब डॉलर जुटाने की बुनियादी राशि से एक सामूहिक लक्ष्य तय करना चाहिए। भारत ने कहा, ‘सीओपी26 से हमारी अपेक्षा एक नए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का संगठित खाका पेश करने की है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई का क्रियान्वयन हमारे कंधों पर है। 2021 आ गया है और 2023 तक इसके लिए हमें आम सहमति से एक खाका तैयार करना होगा।’
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और मुख्य वार्ताकार ऋचा शर्मा ने कहा कि ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक) जैसे देशों ने घरेलू स्तर पर कम कार्बन उत्सर्जन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। उन्होंने कहा कि बेसिक आगाह करता है कि जलवायु वित्तपोषण की दिशा में गंभीरता नहीं दिखाने से जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने तथा नेट जीरो का विकसित देशों का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा।
