नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव संतोष कुमार सारंगी ने आज कहा कि सरकार को भारत से नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के निर्यात पर उच्च अमेरिका के शुल्क का कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं दिखता है।
सारंगी ने यहां उद्योग के कार्यक्रम में मीडिया से कहा, ‘ हमारा अमेरिका को पवन टर्बाइन का निर्यात बहुत अधिक नहीं है। हमारा सौर सेल और पैनल का भी अमेरिकी बाजार को निर्यात बहुत अधिक नहीं है। इसलिए कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा घरेलू बाजार में भारी मांग है। इसलिए घरेलू उद्योग पर उच्च अमेरिकी शुल्क का कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा।’
सरकार जनवरी 2026 में तमिलनाडु के तट पर देश की पहली अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजना के लिए बोली शुरू करेगी। उन्होंने भारत के पवन ऊर्जा उद्योग पर ‘ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल’ की नई रिपोर्ट का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा, ‘एलआईडीएआर के प्रारंभिक सर्वेक्षण में तमिलनाडु तट से दूर बहुत अच्छी पवन ऊर्जा क्षमता का सुझाव दिया गया है और हम लगभग 50 प्रतिशत की क्षमता उपयोगिता फैक्टर (सीयूएफ) की उम्मीद करते हैं, जो बहुत अधिक है।’
मंत्रालय शुरुआती कुछ परियोजनाओं के साथ अपतटीय पवन परियोजनाओं की तकनीकी और वाणिज्यिक व्यवहार्यता स्थापित करने का प्रयास कर रहा है और सरकार इस परियोजना के लिए लगभग 7,000 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर निधि प्रदान करेगी।
इस कार्यक्रम में नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 2014 के 21 गीगावॉट से बढ़कर अभी 52.2 गीगावॉट हो गई है और 30 गीगावॉट क्षमता की परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। चालू वित्त वर्ष में भारत में 6 गीगावॉट और 7 गीगावॉट के बीच पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित होने की संभावना है।
रिपोर्ट ‘विंड एट द कोर: ड्राइविंग इंडियाज ग्रीन एम्बिशन एंड इंटरनैशनल इन्फ्लुएंस’ के अनुसार राज्य-स्तरीय संसाधन पर्याप्तता योजनाओं के अनुरूप भारत की स्थापित पवन क्षमता 2030 तक दोगुनी से अधिक होकर 107 गीगावॉट हो सकती है।