वित्त वर्ष 2025-26 के लिए आम बजट पेश होने के एक दिन बाद रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए इसे ‘भारत के इतिहास में मध्यवर्ग के लिए सबसे अनुकूल बजट’ कहा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधान सभा में आखिरी बार 1993 में बहुमत हासिल किया था। बजट में मध्यवर्ग को राहत देते हुए आयकर छूट की सीमा को बढ़ाकर सालाना 12 लाख रुपये किए जाने की घोषणा की गई है। बजट के इसी संदेश पर भरोसा करते हुए भाजपा की दिल्ली इकाई बुधवार को शहर के मध्यवर्ग को मतदान केंद्रों तक लाने की कोशिश करेगी जो आम तौर पर मतदान से दूर रहते हैं।
दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने भी मध्यवर्ग को लुभाने के लिए 23 जनवरी को विशेष घोषणापत्र जारी किया। अब आयकर छूट की सीमा में वृद्धि की वकालत करते हुए केंद्र सरकार से स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए बजट आवंटन बढ़ाने की अपील की। उधर, मोदी ने चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह सरकार दिल्ली के 1.55 करोड़ मतदाताओं के लिए शहर को विश्वस्तरीय बनाने में विफल रही है।
पिछले एक दशक के दौरान दिल्ली का चुनावी मिजाज भाजपा और आप के बीच उतार-चढ़ाव वाला रहा है जो इस बात पर निर्भर करता है कि चुनाव किस प्रकार का है। भाजपा ने 2014, 2019 और 2024 के लोक सभा चुनावों में 50 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ अपना वर्चस्व कायम किया जबकि आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के विधान सभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई। इन दोनों विधान सभा चुनावों का लोक सभा चुनावों से फासला 9 महीने से भी कम रहा है।
लोकनीति- सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा किए गए चुनाव बाद सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि 2015 और 2020 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में भाजपा ने निम्न एवं मध्यम आय वाले मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाई है। इससे वोट शेयर में आम आदमी की बढ़त कम हो गई है। मुख्य तौर पर गरीबों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी के रूप में अपनी पहचान के खोने की आशंका से चिंतित अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी ने हाल में मध्यवर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अपने नजरिये में बदलाव किया है।
हालांकि मध्यवर्ग की कोई एक परिभाषा नहीं है। पीपल रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकॉनमी (प्राइस) के 2022 के एक अध्ययन में मध्यवर्ग के तौर पर उन परिवारों को वर्गीकृत किया गया है जिनकी सालाना आमदनी 5 से 30 लाख रुपये के बीच है। इसी प्रकार मध्यवर्ग के व्यक्तियों की पहचान उन लोगों के रूप में की गई है जो सालाना 1,00,900 से 6,46,000 रुपये कमाते हैं। नैशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च ने उन परिवारों को मध्यवर्ग की श्रेणी में रखा है जिनकी सालाना आय 2 से 10 लाख रुपये है।
प्राइस के आकलन के अनुसार, 2022 में दिल्ली की कुल आबादी में मध्यवर्ग की हिस्सेदारी 67.16 फीसदी थी यानी उसमें 28.2 लाख परिवार रहे होंगे। इसके विपरीत महाराष्ट्र की कुल आबादी में मध्यवर्ग की हिस्सेदारी 34.24 फीसदी है जबकि उसका आकार दिल्ली के मुकाबले करीब चार गुना है। राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो भारत की कुल आबादी में मध्यवर्ग की हिस्सेदारी 2020-21 में करीब 31 फीसदी थी।
मध्यवर्ग के बढ़ते आर्थिक महत्त्व के बावजूद चुनाव के दिन उन्हें मतदान केंद्रों तक लाना कठिन रहा है। हालिया लोक सभा और महाराष्ट्र विधान सभा के चुनावों में इस चुनौती को भलीभांति महसूस किया गया।