देश की उच्च शिक्षा प्रणाली में जैसे-जैसे निजी विश्वविद्यालयों का विस्तार हो रहा है, इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि वे वर्षों से हाशिए पर खड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए क्या योगदान दे रहे हैं। इन संस्थानों को अक्सर भूमि अनुदान, कर छूट और नियामकीय लचीलेपन जैसे सरकारी लाभ मिलते हैं। इसके बावजूद वे सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए जरूरी नियमों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
इसका सबसे बुरा असर पहले से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच से दूर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों पर पड़ता है। भारतीय संविधान के वास्तुकार और सामाजिक न्याय के पैरोकार की स्मृति में 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसलिए यह निजी उच्च शिक्षा प्रणाली में हाशिए पर खड़े समुदायों के प्रतिनिधित्व को जांचने-जानने का उपयुक्त क्षण है।
विश्लेषण से पता चलता है कि निजी विश्वविद्यालयों में कुल छात्र आबादी में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों की हिस्सेदारी में बड़ी असमानता है। दक्षिण भारत के निजी विश्वविद्यालयों के सभी छात्रों में ओबीसी छात्रों की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत है जबकि राज्य सभा में 26 मार्च को पेश शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत के निजी विश्वविद्यालयों में ओबीसी छात्रों की हिस्सेदारी केवल 6.3 प्रतिशत ही है।
दूसरी ओर एससी और एसटी छात्रों के प्रतिनिधित्व के मामले में उत्तर भारत के निजी विश्वविद्यालयों की स्थिति दक्षिण से थोड़ी बेहतर है। दक्षिण के निजी विश्वविद्यालयों में जहां इन वर्गों के छात्रों का पंजीकरण क्रमश: 3.7 प्रतिशत और 0.6 प्रतिशत हैं, वहीं उत्तर में 6 प्रतिशत और 1.6 प्रतिशत है। हालांकि दोनों ही क्षेत्रों में कुल छात्रों की संख्या के हिसाब से यह हिस्सेदारी बहुत मामूली है। समिति की रिपोर्ट बताती है कि देश के प्रमुख निजी विश्वविद्यालयों में शामिल बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी ऐंड साइंस, पिलानी में 2022-23 सत्र में एससी, एसटी या ओबीसी श्रेणियों का कोई छात्र नहीं था।
रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 से 2021-22 के बीच देश भर के निजी विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों की संख्या थोड़ी बढ़ी है। एससी छात्रों का नामांकन 2013-14 में 3.83 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 6.8 प्रतिशत हो गया, जबकि एसटी छात्रों का प्रतिनिधित्व 2 प्रतिशत से बढ़कर 3.6 प्रतिशत पहुंच गया। इसमें ओबीसी छात्रों की संख्या कुछ तेजी से बढ़ी है। 2013-14 में जहां नामांकित छात्रों में ओबीसी की हिस्सेदारी 18.12 प्रतिशत थी, वहीं 2019-20 में यह 25.17 प्रतिशत पर पहुंच गई लेकिन 2021-22 में इसमें थोड़ी गिरावट आई और 24.9 प्रतिशत पर दर्ज की गई।
वर्ष 2015 और 2024 के बीच निजी विश्वविद्यालयों (डीम्ड सहित) की संख्या 276 से बढ़कर 523 हो गई। वर्ष 2021-22 तक देश में कुल उच्च शिक्षा नामांकन में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी विश्वविद्यालयों की रही।