उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से आवास विकास परिषद और विकास प्राधिकरणों के फ्लैटों की कीमत घटाए जाने की तैयारी की जा रही है। अरसे से बिक्री की बाट जोह रही संपत्तियों के खरीददार न मिलने के चलते यह फैसला लिया जाएगा। इस फैसले के बाद प्रदेश भर में विकास प्राधिकरणों व आवास विकास के 29003 खाली फ्लैटों की कीमत कम हो जाएगी।
बीते काफी समय से और कहीं तो दस साल से भी ज्यादा समय से आवास विकास व प्राधिकरणों को तैयार खड़े मकानों को खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इन आवासों के लिए कई बार पंजीकरण खोला गया और पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बिक्री की कवायद की जा चुकी है। बीते साल ही विकास प्राधिकरणों व आवास विकास ने जीएसटी देयता हटाते हुए फ्लैटों की कीमत घटाई भी थी पर इसके बाद भी बड़ी तादाद में बिक्री नहीं हो सकी थी। आवास विकास परिषद ने तो राजधानी लखनऊ में फ्लैटों की कीमत में 20 फीसदी तक कमी की थी।
आवास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि तैयार खड़े फ्लैटों व दुकानों की बिक्री न होने के चलते प्राधिकरणों व आवास विकास का 10000 करोड़ रुपये की रकम फंस गयी है। इसके चलते नयी आवासीय योजनाओं की शुरुआत नहीं हो पा रही है। विभाग ने एक बार फिर से फ्लैटों की कीमत घटाने और उनकी बिक्री अभियान चला कर करने के लिए कहा है। प्रमुख सचिव आवास ने हाल ही में मुरादाबाद व प्रयागराज को छोड़ कर सभी विकास प्राधिकरणों से खाली संपत्तियों का ब्यौरा मांगा था। आवास विकास परिषद की खाली संपत्तियों का ब्यौरा पहले ही आ चुका है।
अधिकारियों का कहना है कि निजी बिल्डरों के फ्लैटों की कीमत उसी इलाके में कम होने के चलते सरकारी आवासीय संस्थाओं को अपनी संपत्तियां बेचने में दिक्कत आ रही है।
कई बार पंजीकरण खोलने व आन दि स्पाट सेल शुरू करने के बाद बिकने में नाकाम रही संपत्तियों को अलोकप्रिय घोषित कर उन्हें कम कीमत पर बेचा जाएगा। हालांकि विकास प्राधिकरणों व आवास विकास के फ्लैट प्राइम लोकेशन पर स्थित हैं पर निजी क्षेत्र के मुकाबले अधिक कीमत होने के चलते ही इनकी बिक्री नहीं हो पा रही है।
अभी तक मिले ब्यौरे के मुताबिक प्राधिकरण व आवास विकास के पास सबसे ज्यादा खाली मकान राजधानी लखनऊ में हैं। यहां दोनो संस्थाओं के करीब 3000 फ्लैट बिना बिके खड़े हैं। इन फ्लैटों की बिक्री हो जाने के बाद नयी आवासीय योजना शुरु करने के लिए पैसों का इंतजाम हो सकेगा।