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क्या ट्रंप के नोबेल जुनून से बिगड़े भारत-अमेरिका के रिश्ते? NYT का दावा- मोदी ने नॉमिनेट करने से किया इनकार

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने का जुनून इस तनाव की जड़ में है। ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए।

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ऋषभ शर्मा   
Last Updated- August 31, 2025 | 4:33 PM IST

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में पिछले कुछ महीनों से तनाव बढ़ता दिख रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 17 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई फोन कॉल ने इस तनाव की शुरुआत की। इस कॉल में ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान विवाद को “हल” कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने पर विचार कर रहा है। ट्रंप ने इशारों-इशारों में उम्मीद जताई कि मोदी भी उनका समर्थन करें। लेकिन मोदी ने इस सुझाव को साफ ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर दोतरफा बातचीत से हुआ, इसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं थी। भारतीय अधिकारियों ने बाद में बयान जारी कर कहा कि भारत अपने और पाकिस्तान के बीच विवादों में कभी भी मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा।

ट्रंप का नोबेल पुरस्कार का जुनून

रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने का जुनून इस तनाव की जड़ में है। ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए। फरवरी में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने शिकायत की, “वे मुझे कभी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं देंगे, जबकि मैं इसके हकदार हूं।”

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने दावा किया कि ट्रंप ने अपने कार्यकाल में हर महीने औसतन एक शांति समझौता या सीजफायर करवाया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान, कंबोडिया-थाईलैंड, रवांडा-डीआरसी, इजरायल-ईरान, सर्बिया-कोसोवो और मिस्र-इथियोपिया जैसे विवादों को सुलझाने का श्रेय ट्रंप को दिया। नॉर्वे की एक न्यूज वेबसाइट डैगेन्स नीरिंग्सलिव के मुताबिक, ट्रंप ने नॉर्वे के वित्त मंत्री जेन्स स्टोलटेनबर्ग को फोन कर नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन की बात भी की।

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ट्रंप के सलाहकारों की टिप्पणियों से विवाद

ट्रंप के करीबी सलाहकारों ने भी भारत के खिलाफ बयानबाजी की है। ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने यूक्रेन संकट को “मोदी का युद्ध” करार दिया और भारत पर व्यापार वार्ताओं में घमंड दिखाने का आरोप लगाया। इस बयान की अमेरिका में भी आलोचना हुई। अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (एजेसी) ने नवारो के बयान को “बेहद परेशान करने वाला” बताया और भारत के साथ रिश्तों को बेहतर करने की वकालत की।

हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के डेमोक्रेट्स ने भी ट्रंप के नए टैरिफ नियमों को “पक्षपातपूर्ण” करार दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि ये कदम भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ट्रंप ने जून कॉल के कुछ हफ्तों बाद भारतीय आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया। इसके बाद रूस से तेल खरीदने पर भी 25 फीसदी टैरिफ थोपा गया। इससे भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ का बोझ पड़ा, जिससे वह अमेरिका के सबसे ज्यादा प्रभावित व्यापारिक साझेदारों में शामिल हो गया।

वैकल्पिक साझेदारियों की तलाश में भारत

इन तनावों के बीच भारत ने अपनी नीतियों में बदलाव शुरू कर दिया है। पीएम मोदी ने आत्मनिर्भरता और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को और मजबूत करने की बात कही है। हाल ही में उन्होंने चीन के तियानजिन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस दौरे पर वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिलेंगे। यह भारत की उस कोशिश को दिखाता है, जिसमें वह अमेरिका के साथ अनिश्चितता के इस दौर में अपने साझेदारों को विविधता देना चाहता है।

इसके अलावा, अमेरिका में एच-1बी वीजा और स्टूडेंट वीजा पर सख्ती ने भी भारत को परेशान किया है। भारतीय नागरिक इन वीजा श्रेणियों में सबसे ज्यादा हिस्सा रखते हैं। इस साल की शुरुआत में भारतीय नागरिकों को कम सूचना पर निर्वासित किया गया, जिसकी भारत में आलोचना हुई। यह घटना पीएम मोदी के वॉशिंगटन दौरे के साथ हुई, जिससे दोनों देशों के बीच असहज स्थिति बनी।

First Published : August 31, 2025 | 4:33 PM IST