तीन आपराधिक कानून सोमवार से देश भर में लागू हो जाएंगे। केंद्र सरकार ने एक बार फिर आश्वासन दिया है कि इन संशोधनों के प्रभावों से निपटने के लिए आपराधिक न्याय संहिता पूरी तरह तैयार है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) क्रमशः अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनीं भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगी।
कुछ राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं ने ‘आनन-फानन’ में इन कानूनों को लागू करने पर आपत्ति जताई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर संसद में इन कानूनों की समीक्षा करने का सुझाव दिया है। कांग्रेस सहित विपक्षी राजनीतिक खेमा ‘इंडिया’ ने भी यही सुझाव दिया है।
कुछ दिनों पहले यानी 26 जून को भारतीय विधिक परिषद (बार काउंसिल ऑफ इंडिया या बीआईसी) ने कहा कि उसे देश भर से विधिक संघों और राज्य विधिक परिषदों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें उन्होंने बिना चर्चा के इन कानूनों के क्रियान्वयन पर नाराजगी जताई है। बीसीआई ने इन संगठनों को फिलहाल किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन से दूर रहने के लिए कहा है।
केंद्र सरकार का कहना है कि एक बेहतर विधि व्यवस्था के लिए नए कानून लागू किए जा रहे हैं। संसद की संयुक्त बैठक संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ‘जनता को दंडित करने की सोच थी’ और ‘दुर्भाग्य से’ वही दंड संहिता देश की स्वतंत्रता के बाद भी जारी है।
मुर्मू ने कहा कि पुरानी दंड संहिता में बदलाव के लिए पिछले कई दशकों से चर्चा चल ही थी, मगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक सरकार (लागू) ने इसमें संशोधन करने की हिम्मत दिखाई। राष्ट्रपति ने कहा, ‘अब दंड की जगह न्याय को वरीयता मिलेगी और यह हमारे संविधान की मूल भावना के भी अनुरूप है।’
ये नए कानून लागू करने से पहले केंद्र ने केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और पुलिस प्रमुखों के साथ बैठक की थी। राष्ट्रीय अपराध लेखा ब्यूरो (एनआरसीबी), पुलिस शोध ब्यूरो और राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए थे और अपराध स्थलों की वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी एवं न्यायालयों के समन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से देने के लिए ई-सुरक्षा, न्यायश्रुति और ई-समन मोबाइल ऐप्लिकेशन भी शुरू किए गए थे।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि एकदम निचले स्तर के 40 लाख कर्मी प्रशिक्षित किए गए हैं। सूत्रों के अनुसार इनके अलावा 5 लाख पुलिस, जेल, फोरेंसिक, न्यायिक एवं अभियोजन अधिकारियों को भी प्रशिक्षण दिए गए हैं। एनसीआरबी की 36 टीमें (राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में प्रत्येक के लिए एक) नई संहिता की तरफ बढ़ने में तकनीकी मदद कर रही हैं।
नए कानूनों में कुछ प्रमुख प्रावधान जोड़े गए हैं। कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन गए बिना ही इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से किसी घटना की सूचना दे सकता है। नए कानूनों में न्याय क्षेत्र से इतर ‘शून्य’ प्राथमिकी- यानी किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर (फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) दर्ज करने की अनुमति- और पीड़ित को एफआईआर की निःशुल्क प्रति (सभी प्रावधान बीएएसएस की धारा 173 के अंतर्गत) देने की भी व्यवस्था दी गई है। अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है तो वह अपनी पसंद से किसी व्यक्ति को इसकी सूचना दे सकता है (धारा 36 बीएनएसएस)।
नए कानूनों में गंभीर अपराधों के घटनास्थल पर फोरेंसिक विशेषज्ञों का पहुंचना एवं साक्ष्य जुटाना अनिवार्य कर दिया गया है। साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया की अनिवार्य वीडियो रिकॉर्डिंग होगी ताकि इनके साथ कोई छेड़छाड़ न हो पाए (धारा 176 बीएनएसएस)। नए कानूनों में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को वरीयता दी गई है और अपराध की सूचना मिलने के दो महीने के भीतर अन्वेषण कार्य पूरा करने (धारा 19 बीएनएसएस) की शर्त लगाई गई है।
नए प्रावधानों के अनुसार अब न्यायालयों से समन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भेजे जा सकते हैं (धारा 64, 70, 71 बीएनएसएस)। मामलों की सुनवाई में अनावश्यक देरी न हो, इसके लिए न्यायालय अधिक से अधिक दो बार मामले की सुनवाई स्थगित कर सकते हैं (धारा 346 बीएनएसएस)। नए कानूनों में सभी राज्यों के लिए गवाह सुरक्षा योजना (धारा 398 बीएनएसएस) लागू करना अनिवार्य कर दिया गया है (धारा 398 बीएनएसएस)। महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराधों पर कार्रवाई के लिए बीएनएस में एक नया अध्याय (अध्याय 5 बीएनएस) जोड़ा गया है और मामूली अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान भी शुरू किया गया है (धारा 4, 202, 209, 226, 303, 355, 356 बीएनएस)।
हालांकि, विपक्षी सदस्यों कांग्रेस के पी चिदंबरम, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और अन्य ने गृह पर संसद की समितियों को अपनी असहमति से अवगत कराया है। इन नेताओं ने कहा है कि नए कानूनों में कुछ विसंगतियां हैं और मौजूदा प्रावधानों में लगभग 75 प्रतिशत नए कानूनों में भी अक्षरशः मौजूद हैं। वकीलों और विपक्षी दलों ने कहा है कि नए कानूनों में पुलिस के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं। नए कानूनों में पुलिस हिरासत की अधिकतम अवधि 15 दिनों से बढ़ाकर 60 या 90 दिन (धारा 187 बीएनएसएस) तक कर दी गई है।