वित्त मंत्रालय ने अर्थव्यवस्था की समीक्षा रिपोर्ट में आज कहा कि लाल सागर क्षेत्र में सुरक्षा के जोखिम से बचने के लिए लंबा मार्ग तय करने के कारण जहाज से ढुलाई की लागत बढ़ी है। इससे खासकर ऊर्जा की लागत के हिसाब से महंगाई बढ़ने की आशंका है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रही है, जिसमें महंगाई, सुस्त वृद्धि और बढ़ता राजकोषीय दबाव शामिल है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि चल रहे भू-राजनीतिक तनावों के कारण भारत को भी संभावित दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
वैश्विक कंटेनरों की 30 प्रतिशत आवाजाही लाल सागर के जरिये होती है और कुल वैश्विक कारोबार का 12 प्रतिशत इस मार्ग से होता है। यूरोप और भारत के बीच होने वाला 80 प्रतिशत वाणिज्यिक व्यापार इस मार्ग से होता है।
ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के हमले के कारण लाल सागर के रास्ते कारोबार से बचना पड़ रहा है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसकी वजह से मालवाहक जहाजों को लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है। इससे माल ढुलाई की लागत और बीमा प्रीमियम में बढ़ोतरी हुई है। केप ऑफ गुड होप के मार्ग से ढुलाई के कारण ढुलाई का वक्त बहुत ज्यादा बढ़ा है।
नोमुरा की रिपोर्ट के मुताबिक शिपिंग में देरी के कारण ऑटोमोटिव और खुदरा क्षेत्र पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। वाहन क्षेत्र में उत्पादन में कटौती हुई है। सबसे ज्यादा यूरोप प्रभावित हुआ है, जो आपूर्ति के लिए एशिया पर निर्भर है। नोमुरा ने कहा है, ‘आर्थिक असर (एशिया पर) इन व्यवधानों की अवधि (जो अनिश्चित है) पर निर्भर है।
इससे तेल की कीमतों पर असर (जो अब तक नहीं दिख रहा है) पड़ सकता है। निकट की अवधि के हिसाब से इससे गिरावट का जोखिम है, क्योंकि इससे आयात की लागत बढ़ेगी और निर्यात में देरी होगी। इसकी वजह से उत्पादन में भी देरी की संभावना है, जबकि फर्में ज्यादा भंडारण रखना चाहती हैं।’
निर्यात, चालू खाते का संतुलन
वित्त मंत्रालय ने आगे कहा है कि भारत के निर्यात का प्रदर्शन उल्लेखनीय है और विदेश भेजी जाने वाली खेप पिछले 2 वित्त वर्षों की तुलना में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है। वहीं भू-राजनीतिक दबावों जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वृद्धि की दर घटी है।
मुख्य रूप से वैश्विक मांग कमजोर होने के कारण रफ्तार में सुस्ती नवंबर 2023 तक जारी रही। सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी भी वित्त वर्ष 2023 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में कम रहने की संभावना है, क्योंकि वैश्विक मांग सुस्त रहने के कारण भारत से निर्यात की मांग घटी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वैश्विक झटकों के बावजूद भारत का वाणिज्यिक व्यापार संतुलन उल्लेखनीय रूप से सुधरकर अप्रैल-नवंबर 2022 के 189.2 अरब डॉलर के घाटे की तुलना में अप्रैल-नवंबर 2023 में 166.4 अरब डॉलर रह गया है।’
वित्त वर्ष 2004 से वित्त वर्ष 12 के दौरान जीडीपी में शुद्ध निर्यात की हिस्सेदारी -4.1 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2024 के बीच सुधरकर -2.6 प्रतिशत रह गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नीतियों और व्यापार की सुविधा के लिए लगातार उठाए गए कदमों के कारण ऐसा हुआ है। इससे उत्पादन क्षमता बढ़ी है और निर्यात संवर्धन के कारण वैश्विक बाजारों में भारत की मौजूदगी बढ़ी है।
निवेश
वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा है कि सुस्त वैश्विक धारणा के कारण भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह कम हुआ है। हालांकि निवेशकों के बीच भारत इस दौरान निवेश के लिए तरजीही देश बना रहा है, जिसकी वजह भारत का युवा श्रमबल और मध्य वर्ग की बड़ी आबादी है।
एफडीआई नीति में लगातार सुधारों और बुनियादी ढांचा व लॉजिस्टिक्स में सुधार, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना जैसी निवेश को समर्थन देने के लिए लाई गई योजनाओं का असर पड़ा है। वित्त मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि आने वाले महीनों में प्रवाह बना रहेगा।
इसमें कहा गया है, ‘पहले के दो वित्त वर्षों के विपरीत वित्त वर्ष 2024 (9 जनवरी 2024 तक) में एफपीआई शुद्ध खरीदार बने रहे। इसकी वजह भारत की अर्थव्यवस्था और बाजारों में भरोसा बढ़ना है। इसे विदेशी मुद्रा भंडार की स्तिरता और अन्य देशों की तुलना में विदेशी कर्ज की बेहतर स्थिति से समर्थन मिला है।’