लक्षद्वीप की राजधानी कवारत्ती में तेज हवा वाली एक रात मॉनसूनी बारिश के भारत के दक्षिणी तट पर टकराने से ठीक पहले नाविकों की एक टीम दो नावों में सवार होकर निर्जन टापू सुहेली पार की ओर रवाना हुई। यह टापू के अनुभवी लाइटहाउस (प्रकाश स्तंभ) अधिकारियों के लिए आम कामकाज का हिस्सा था, जिन्हें मॉनसून के दस्तक देने से पहले निर्जन सुहेली पार द्वीप पर तैनात इकलौते लाइटहाउस कर्मचारी को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
दुर्भायवश, यात्रा के दौरान बीच समुद्र में नाव पर मौजूद कर्मचारी अजीब स्थिति में फंस गए थे क्योंकि उनकी नाव का इंजन खराब हो गया था। करीब 28 घंटे तक समुद्र में फंसे इन कर्मचारियों ने किसी तरह इंजन तो चालू कर लिया लेकिन अब उन्हें यही नहीं पता था कि वे कहा हैं।
जब उम्मीदें दम तोड़ने लगी थीं तभी उन्हें पास के प्रकाश स्तंभ से रोशनी की किरण दिखाई दी और उसी रोशनी के सहारे उन्होंने सुरक्षित किनारे पर पहुंचने के लिए अपनी नाव बढ़ा दी। इस घटना के जानकार अच्छी तरह जानते हैं कि किस तरह एक अकेले प्रकाश स्तंभ ने नाव पर सवार लोगों और वहां तैनात अटेंडेंट की जान बचाई।
सदियों से प्रकाश स्तंभ ऐसे अनके समुद्री यात्रियों के लिए आशा की किरण रहे हैं। कभी तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों की लोककथायों का हिस्सा रहे सैकड़ों साल पहले बने इन प्रकाश स्तंभों का महत्त्व आज के उन्नत नेविगेशन तकनीक वाले जहाजों के लिए गौण हो गया है। लेकिन स्थानीय मछुआरा समुदायों के लिए वह आज भी आशा, विरासत और घर की भावना जगाते हैं।
केंद्र सरकार अब इस विरासत का लाभ उठाने के लिए और इन प्रकाश स्तंभों तथा इनके आसपास के इलाकों को विरासत पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय ने 75 प्रकाश स्तंभों की पहचान की है और इसके विकास के लिए निजी क्षेत्र को साथ लाने की संभावना तलाश रहा है।
मंत्रालय इन परियोजनाओं में संभावित निवेश को प्रेरित करने के लिए 23 से 25 सितंबर को गोवा में अगुडा लाइटहाउस और चेन्नई में मद्रास लाइटहाउस के समीप लाइटहाउस फेस्टिवल आयोजित करने जा रहा है।
केंद्र ने 2021 में भी इसी तरह का अभियान शुरू किया था जिसे उतनी सफलता नहीं मिल पाई थी। मामले के जानकार अधिकारियों के अनुसार अभी तक महाबलीपुरम में ही एक परियोजना में निजी क्षेत्र ने दिलचस्पी दिखाई है।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘इन प्रकाश स्तंभों का मुख्य परिचालन और सुरक्षा की जिम्मेदारी लाइटहाउस एवं लाइटशिप्स महानिदेशालय (डीजीएलएल) के पास हो होगा लेकिन मंत्रालय आसपास की भूमि पर पर्यटन सुविधाओं के विकास के लिए निवेश जुटाने की उम्मीद कर रहा है। कई प्रकाश स्तंभ मनोरम दृश्यों के लिए पर्यटकों के लिए वास्ते खुले हैं और उनका संचालन डीजीएलएल कर्मचारियों द्वारा किया जाता रहेगा।’
उन्होंने कहा, ‘पर्यटन से होने वाली आय के लिए राजस्व साझेदारी का मॉडल अपनाया जाएगा क्योंकि सरकार द्वारा संचालित प्रकाश स्तंभ वहां का मुख्य आकर्षण है।’
लाइटहाउस के निदेशक अनिल एंटनी के अनुसार प्रकाश स्तंभों का महत्त्व हमेशा बरकरार रहेगा क्योंकि समय के साथ-साथ उन्हें आधुनिक बनाया जा रहा है। इसके अलावा उससे तटों का इतिहास भी जुड़ा होता है। ऐसे में संग्रहालय आदि के विकास से पर्यटकों को इन तटों के इतिहास के करीब लाने में मदद मिलेगी। केरल एवं लक्षद्वीप के ऐसे 37 ढांचे एंटनी की निगरानी में हैं।
प्राचीन समय में नाविक रात के समय रास्ता जानने के लिए पहाड़ियों के ऊपर आग जलाते थे। एंटनी का कहना है कि दिन में जली हुई लकड़ियों का धुआं किनारे की तलाश कर रहे नाविकों के लिए उम्मीद की किरण था। बाद में नाविकों ने इसके लिए लालटेन का उपयोग करना शुरू कर दिया और बिजली आने के बाद चमकदार लैंप का चलन हो गया। इसके साथ ही लाइटहाउस में आधुनिक विज्ञान का मेल शुरू हो गया।
प्रकाश स्तंभ के लैंप की रोशनी को बीम में बदलने के लिए लेंसों का आयात शुरू हो गया। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन द्वारा बनाए गए तमाम प्रकाश स्तंभ में 1980 के दशक के आखिर तक इस तकनीक का प्रयोग किया जाता था। आज इन ढांचों को नए जमाने की नेविगेशन प्रणाली, नेविगेशन डेटा और लंबी रेंज वाली रौशनी से लैस किया गया है। इसमें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मंत्रालय के नियंत्रण में 194 प्रकाश स्तंभ हैं जिनके लिए प्रमुख बंदरगाहों पर विदेशी जहाजों से प्राप्तियों एवं बजट अनुदान के जरिये रकम की व्यवस्था की जाती है।