ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रह्मोस मिसाइलों की सफल तैनाती के बाद भारत ने अब रूस के साथ मिलकर इस मिसाइल सिस्टम के एडवांस वर्जन के ज्वाइंट मैन्युफैक्चरिंग के लिए बातचीत शुरू कर दी है। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना के लिए रूस ने पूर्ण तकनीकी सहयोग देने की पेशकश की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि शुरुआती बातचीत हो चुकी है और लक्ष्य लखनऊ में हाल ही में शुरू किए गए नए प्लांट में अपडेटेड ब्रह्मोस का उत्पादन शुरू करना है।
करीब ₹300 करोड़ की लागत से बने इस प्लांट का फोकस मिसाइल मैन्युफैक्चरिंग पर रहेगा। मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल वर्जन की रेंज 290 से 400 किलोमीटर के बीच है और यह मैक 2.8 की टॉप स्पीड तक पहुंच सकती है।
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस की ज्वाइंट वेंचर कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) द्वारा विकसित की गई है। इसे जमीन, समुद्र या हवा से दागा जा सकता है और यह ‘फायर एंड फॉरगेट’ तकनीक पर आधारित है।
यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और उसके कब्ज वाले कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें अधिककर पर्यटक थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस ऑपरेशन में भारत ने रूसी तकनीक से बने ब्रह्मोस मिसाइल और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया, जो भारतीय सैन्य ताकत में इन सिस्टम्स की रणनीतिक अहमियत को दर्शाता है।
भारत के डिफेंस सिस्टम में कई प्रमुख हथियार (weapons systems) रूसी तकनीक पर आधारित हैं। थल सेना में T-90S भीष्म और T-72M1 अजेय टैंक इसकी बख्तरबंद यूनिट्स की रीढ़ हैं, जबकि रॉकेट आर्टिलरी में BM-21 ग्रैड और 9A52 स्मर्च जैसे सिस्टम शामिल हैं।
एयर डिफेंस सिस्टम में भारत के पास एस-400 ट्रायंफ जैसे लॉन्ग-रेंज सिस्टम के साथ OSA-AK और Strela-10 जैसे शॉर्ट-रेंज सिस्टम भी हैं। इसके अलावा, भारत अमेठी स्थित एक ज्वाइंट वेंचर के तहत लगभग 6.7 लाख AK-203 असॉल्ट राइफलों का निर्माण भी करने की योजना में है।
भारतीय वायुसेना में सुखोई Su-30MKI फाइटर जेट, इसके फाइटर बेड़े की रीढ़ है, जिसे मिग-29 और मिग-21 बाइसन जैसे एयरक्राफ्ट का सहयोग प्राप्त है। हेलिकॉप्टर यूनिट्स में मिल Mi-17 और हेवी-लिफ्ट Mi-26 जैसे हेलिकॉप्टर शामिल हैं।
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भारत ने रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता धीरे-धीरे कम की है। सरकार ने मार्च में बताया कि वर्तमान में 65% रक्षा उपकरणों का निर्माण देश में ही हो रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि 2029 तक रक्षा उत्पादन ₹3 लाख करोड़ के स्तर तक पहुंच जाए।