facebookmetapixel
Year Ender 2025: इक्विटी म्युचुअल फंड्स का कैसा रहा हाल? इन 3 कैटेगरी ने निवेशकों को किया मालामालYear Ender 2025: NFOs आए… लेकिन निवेशकों ने क्यों पीछे खींचे हाथ?Tata Steel पर नीदरलैंड्स में $1.4 अरब का मुकदमा दायर, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरोपRevised vs Updated ITR: दोनों में क्या है अंतर और किस टैक्सपेयर्स को क्या भरना जरूरी, आसान भाषा में समझेंNational Pension Scheme में हुए कई बदलाव, निवेशकों को जानना जरूरी!कोरोना के बाद वायु प्रदूषण सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट! डॉक्टरों का दावा: फेफड़ा-दिल को हो रहा बड़ा नुकसान2026 में कैसी रहेगी बाजार की चाल, निवेशक किन सेक्टर्स पर रखें नजर? मोतीलाल ओसवाल ने दिया न्यू ईयर आउटलुकYear Ender: ग्लोबल बैंक के लिए बैंकिंग सेक्टर में फिर बड़ा मर्जर? क्या और घटेगी सरकारी बैंकों की संख्याGold, Silver Price Today: सोना नए ​शिखर पर, चांदी ने भी बनाया रिकॉर्ड; चेक करें आज का भावशिप रिसाइक्लिंग पर सरकार की बड़ी तैयारी: हॉन्ग कॉन्ग कंवेंशन के अनुरूप कड़े नियम जल्द

दूसरे विश्व युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था

दुनिया में चल रहे तमाम संकटों के बीच रूस और चीन ने फिर जताया है कि उनकी साझेदारी की कोई सीमा ही नहीं है। विस्तार से बता रहे हैं श्याम सरन

Last Updated- May 23, 2025 | 11:06 PM IST
Army

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 7 से 10 मई तक मॉस्को की महत्त्वपूर्ण यात्रा पर थे। 2012 में पद संभालने के बाद से यह उनकी 11वीं रूस यात्रा थी। वह विक्ट्री डे यानी विजय दिवस की 80वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ और चीन समेत मित्र राष्ट्रों की सेनाओं के हाथों नाजी जर्मनी तथा शाही जापान की हार को याद करने के लिए विजय दिवस मनाया जाता है। शी 10 वर्ष पहले भी मॉस्को में ऐसे ही आयोजन में शामिल हुए थे मगर इस वर्ष उनकी शिरकत खास थी क्योंकि वह तो मुख्य अतिथि थे ही, चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की एक टुकड़ी ने भी लाल चौक पर विक्ट्री परेड में हिस्सा लिया।

यह यात्रा और इसके इर्दगिर्द बने माहौल को दोनों देशों के बीच करीबी रिश्तों की पुष्टि के प्रतीक को दोहराए जाने के रूप में देखा जा सकता है। इस यात्रा का एक प्रभावशाली पहलू और भी था। यात्रा के दौरान 20 से अधिक द्विपक्षीय सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और एक विस्तृत संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया। इस यात्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा नहीं मिली क्योंकि अमेरिका और चीन के टैरिफ समझौते की खबर ने इसे ढक लिया। दोनों देश एक दूसरे पर लागू भारी टैरिफ कम करे पर राजी हो गए। टैरिफ में कमी आरंभ में तीन महीने के लिए लागू रहेगी और इस बीच अधिक  मजबूत द्विपक्षीय समझौते के लिए बातचीत जारी रहेगी। इस घटनाक्रम को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की हार और चीन की जीत के रूप में देखा गया।

यह यात्रा तब हुई, जब भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई छिड़ी हुई थी। दोनों देश एक दूसरे पर मिसाइल और ड्रोन से हमले कर रहे थे। कुछ खबरों में दावा किया गया कि इस लड़ाई में पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध चीन द्वारा दिए गए विमानों और गोला-बारूद का इस्तेमाल किया और उन्हें भारत के राफेल लड़ाकू विमानों के बेड़े के सामने कथित रूप से कामयाबी भी मिली। इस बात ने उच्च गुणवत्ता वाले आधुनिक हथियार निर्माता के रूप में चीन की साख और बढ़ा दी। भारत के रूस निर्मित एस-400 विमानभेदी रक्षा तंत्र और ब्रह्मोस मिसाइल की कामयाबी की भी खबरें आईं। अभी भी इन दावों और प्रतिदावों की पुष्टि की कोई विश्वसनीय सूचना नहीं है। मगर चीन का कद बढ़ा है और पश्चिमी मीडिया के कुछ हिस्सों ने भी उसे उच्च तकनीक वाली शक्ति बताया है। शी की मॉस्को यात्रा को भूराजनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

शी ने रूस यात्रा के पहले एक रूसी समाचार पत्र में प्रकाशित आलेख में जो विचार प्रकट किए और उन्होंने तथा रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने यात्रा के अंत में एक संवाददाता सम्मेलन में जो विचार प्रकट किए, उनका बारीकी से विश्लेषण करने की आवश्यकता है। ये विचार दोनों नेताओं की आश्वस्ति और विश्वास को दर्शाते हैं। दोनों नेताओं का मानना है कि ट्रंप की अनिश्चित घरेलू और बाहरी नीतियों के बीच उनके पास एक ऐतिहासिक अवसर है कि वे एक गैर पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम कर सकें जो उनके हितों के अधिक अनुकूल हो। वे यह भी मानते हैं कि इस अवसर का लाभ वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों को अपनी ओर आकर्षित करने में भी किया जा सकता है और ब्रिक्स तथा शांघाई सहयोग संगठन को अधिक मजबूत तथा विस्तारित किया जा सकता है। इसका बदलते भूराजनीतिक परिदृश्य में भारत की स्थिति पर गहरा असर होगा।

रूस और चीन किस तरह विश्व व्यवस्था को नया आकार दे रहे हैं? पहला, वे दावा करते हैं कि वे दूसरे विश्वयुद्ध के अहम विजेता हैं और उन्होंने फासीवाद और जापानी साम्राज्यवाद को हराने में पश्चिम और अमेरिका की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका दावा है कि युद्ध के बाद बनी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उनकी छाप है और वे संयुक्त राष्ट्र के सह-संस्थापक और यूएन चार्टर के वास्तुकार हैं। उनका आरोप है कि अमेरिका का यह दावा झूठा है कि विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था उसकी देन है और अब वह उसे नष्ट करने की धमकी दे रहा है। चीन और रूस अब युद्ध और उसके बाद की स्थिति को लेकर ‘सही नजरिया’ पेश कर रहे हैं और उनके मुताबिक यह उनकी अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही है कि वे उस व्यवस्था का बचाव करें जिसके निर्माण में उनकी अहम भूमिका है। शी ने कहा कि दोनों देशों को युद्ध के बाद की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बरकरार रखना चाहिए।

दूसरा, महाशक्ति के रूप में चीन और रूस की खास जिम्मेदारी है। शी ने कहा, ‘एकतरफा प्रतिकूल माहौल, धौंस पट्टी और सत्ता की राजनीति के समक्ष चीन, संयुक्त राष्ट् सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में प्रमुख देशों की विशिष्ट जिम्मेदारियों को निभाने के लिए रूस के साथ मिलकर काम कर रहा है। दोनों पक्षों को एक साथ मिलकर चीन और रूस की मैत्री और साझा विश्वास को क्षति पहुंचाने या सीमित करने के किसी भी प्रयास का प्रतिरोध करना चाहिए।’ यह पुतिन को स्पष्ट संदेश है कि वे ट्रंप के झांसे में न आएं।

तीसरा, रूस-चीन साझेदारी दोनों नेताओं के व्यक्तिगत रिश्तों से संचालित है और यही इसकी कमजोरी भी साबित हो सकता है। इस पर पुतिन ने कहा कि वह और चीनी राष्ट्रपति ‘व्यक्तिगत रूप से चीन और रूस की साझेदारी के सभी पहलुओं पर नियंत्रण रखते हैं और हम इस सहयोग को द्विपक्षीय मुद़दों के आधार पर और अंतरराष्ट्रीय एजेंडे पर आगे बढ़ाने के लिए जो संभव होगा करेंगे।’ शी ने इसे नहीं दोहराया। ऐसा करना किसी चीनी नेता के लिए ठीक भी नहीं होगा लेकिन दोनों नेताओं के बीच दुर्लभ रिश्ता है।

चौथा, इसमें संदेह नहीं कि अमेरिका द्वारा रूस को चीन से दूर करने की कोशिश हकीकत से दूर है। रूस, चीन पर बहुत हद तक निर्भर है। चीन ने पश्चिम के प्रतिबंधों के बीच उसकी मदद की थी। दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। चीन जहां उत्तर में अपनी सीमाओं पर मित्र राष्ट्र की मौजूदगी से राहत लेते हुए दक्षिण में विस्तार पर ध्यान दे सकता है। हालांकि विश्लेषक इस बात को पूरी तरह नहीं समझ सके हैं।

भारत के लिए इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं? उम्मीद है कि रूस, चीन के साथ और अधिक जुड़ेगा और चाहेगा कि रूस भारत का ज्यादा ख्याल नहीं रख। अमेरिका और पश्चिम के देशों के साथ भारत की सैन्य साझेदारी का प्रभाव कमजोर पड़ सकता है क्योंकि चीन उनके बराबर सैन्य क्षमताओं के साथ टक्कर की सैन्य शक्ति बन रहा है।

भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र शक्ति का अंतर जहां बढ़ता जाएगा, वहीं चीन पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को बेहतर बनाने को लेकर प्रतिबद्ध नजर आ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान इस क्षेत्र में भारत के बराबर बना रहेगा। नियंत्रण रेखा के आरपार हालिया सैन्य संघर्ष इस बात को जाहिर करता है। हमें अपने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी लक्ष्यों की समीक्षा करते हुए उनका नए सिरे से निर्धारण करना होगा।

(लेखक विदेश सचिव रह चुके हैं)

First Published - May 23, 2025 | 10:19 PM IST

संबंधित पोस्ट