केंद्र सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि ग्रेट निकोबार के विकास से जुड़ी प्रस्तावित परियोजना पर इस तरह अमल किया जाएगा कि इसमें पर्यावरणीय प्रभाव न्यूनतम होगा। यह परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है और सरकार ने पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी चिंताओं के बीच इस विवादास्पद परियोजना को टालने की चर्चा के बीच ऐसी घोषणा की है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कांग्रेस के महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश द्वारा 72,000 करोड़ रुपये की ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित ‘मेगा इन्फ्रा परियोजना’ को लेकर जताई जा रही चिंता पर जवाब दिया। 21 अगस्त के पत्रांक में यादव ने यह आश्वासन दिया कि परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर उपाय किए जा रहे हैं जो सामरिक दृष्टि, राष्ट्रीय और रक्षा हितों के अनुरूप है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 8 अगस्त को किए गए पोस्ट में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को लेकर तीन प्रमुख चिंताएं जताईं जिसमें 13,075 हेक्टेयर वनभूमि में बदलाव से अनूठे वर्षावन के पारिस्थितिकी तंत्र में आने वाली तबाही, कानूनी सुरक्षा उपायों के उल्लंघन के चलते शोंपेन जनजाति के लिए खतरा और भूकंप की आशंका वाले क्षेत्र में परियोजना के होने से निवेश, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण को गंभीर जोखिम की बात शामिल है।
उन्होंने परियोजना को टालने और प्रासंगिक संसदीय समिति द्वारा इसकी गंभीरता से समीक्षा कराने की मांग की। अप्रैल 2023 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के कोलकाता पीठ ने परियोजना पर दो महीने के लिए रोक लगा दी थी और एक उच्च स्तरीय समिति को पर्यावरणीय चिंताओं और संभावित नियामकीय उल्लंघनों से जुड़ी कथित खामियों की जांच करने के लिए कहा था।
यादव ने इस बात पर जोर दिया कि परियोजना के लिए वनभूमि में बदलाव के बावजूद 82 फीसदी ग्रेट निकोबार क्षेत्र संरक्षित वन, पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों और बायोस्फीयर रिजर्व के तौर पर संरक्षित रहेंगे और ये वन क्षेत्र के अंतर्गत दो-तिहाई क्षेत्र को बनाए रखने की मानक आवश्यकता से अधिक है।