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तपती गर्मी में AC-फ्रिज की मांग बढ़ी, लेकिन बढ़ रही है पर्यावरण की चिंता

भले ही आज एसी, फ्रिज रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरत बन गए हैं मगर विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक शीतलन उपकरण लगाने से गर्मी भी बढ़ती है

Last Updated- June 17, 2024 | 11:43 PM IST
तपती गर्मी में AC-फ्रिज की मांग बढ़ी, लेकिन बढ़ रही है पर्यावरण की चिंता, Demand for AC-fridge increases in scorching heat, but environmental concerns are increasing

पूरे देश में पड़ रही भीषण गर्मी ने इस बार शीतलन उपकरणों की बिक्री बढ़ा दी है। एयर कंडीशनर (एसी) और रेफ्रिजरेटर की बिक्री में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मौजूदा शहरी उपभोक्ताओं से बढ़ती मांग के अलावा छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी खरीदारी बढ़ रही है।

वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2023 के मुताबिक, देश में एसी रखने वाले साल 2010 से तीन गुना बढ़कर प्रति 100 परिवारों में 24 तक पहुंच गए हैं। स्पेस कूलिंग के साथ-साथ ये क्षेत्र भी अब देश में बिजली की मांग बढ़ा रहे हैं। घर-घर में शीतलन उपकरण में वृद्धि के कारण शाम के वक्त बिजली की उच्च मांग देखने को मिली है, जो पहले कार्यालय अवधि के दौरान देखी जाती थी।

आज के वक्त में एसी, फ्रिज और स्पेस कूलिंग रोजमर्रा की जरूरत बन गए हैं मगर अब पर्यावरण के प्रति चिंता सताने लगी है। पर्यावरणविदों ने बार-बार दोहराया है कि अधिक शीतलन उपकरणों से गर्मी भी बढ़ जाती है। शीतलन उपकरणों में मुख्य रासायनिक गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) होती है और यही ओजोन परत के हल्के होते जाने का कारण है।

भारत में कम बिजली खपत वाले उपकरणों के लिए स्टार रेटिंग मानक है। साथ ही भारत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन का सदस्य भी है। लेकिन, शीतलन उपकरणों के उपयोग में वृद्धि से निश्चित तौर पर गर्मी बढ़ेगी।

बढ़ते शीतलन उपकरण

अब देश की बिजली मांग का करीब 10 फीसदी स्पेस कूलिंग से आता है, जो साल 2019 में इसकी हिस्सेदारी से 21 फीसदी ज्यादा है। दिल्ली की आई फॉरेस्ट के मुताबिक, साल 2050 तक भारत में घरेलू एसी रखने वालों की संख्या नौ गुना बढ़ने का अनुमान है, जिससे शीतलन के लिए ऊर्जा मांग में भी नौ गुना वृद्धि होगी। आई फॉरेस्ट पर्यावरण के लिए हानिकारक शीतलन रसायनों के खिलाफ एक कार्य योजना तैयार कर रही है।

ब्लू स्टार के प्रबंध निदेशक बी त्यागराजन ने कहा, ‘भारत के करीब 8 फीसदी घरों में एसी की पहुंच है। इस साल हमारा बाजार आकार करीब 1.1 करोड़ होगा। चीन का बाजार आकार 9 करोड़ है। अब भारत तेजी से बढ़ने वाला बाजार है और साल 2045 से 2050 तक चीन को पीछे छोड़ देगा।’ उन्होंने एसी की खरीद लगातार बढ़ने का भी संकेत दिया।

उन्होंने कहा, ‘भारत में (एसी खपत) वृद्धि मध्यम वर्गीय परिवारों के कारण है। 90 फीसदी से अधिक एसी पहली बार खरीदारी करने वालों को बेची जा रही है। 65 फीसदी एसी की खरीदारी मझोले, छोटे शहरों और कस्बाई इलाकों में हो रही है। 50 फीसदी से अधिक खरीदारी ऋण के जरिये की जाती है। ऐसे लोग 5 स्टार एसी खरीद नहीं सकते हैं इसलिए वे 3 स्टार अथवा 2 स्टार एसी की खरीदारी करते हैं।’ जितनी कम स्टार रेटिंग रहेगी एसी उतना ही कम कुशल और पर्यावरण के लिए खतरनाक होगा।

साल 2021 में कारोबारों के आई फॉरेस्ट के सर्वेक्षण में एचएफसी के प्रमुख उपयोग की ओर इशारा किया गया था। कई कारोबारों ने प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट की इच्छा जाहिर की लेकिन कोई भी एचसी अथवा कार्बन डाइऑक्साइड रेफ्रिजरेंट का उपयोग नहीं कर रहा था और कई तो रेफ्रिजरेंट के रूप में पानी या एनएच 3 का उपयोग कर रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया, ‘बाजार में प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट आधारित शीतलन उपकरण और अन्य प्रौद्योगिकी की पहुंच अभी सीमित है।’

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में रेफ्रिजरेंट में बदलाव तीसरे चरण में है। प्रमोटिंग ग्रीन कूलिंग इन इंडिया ऐंड द ग्लोबल साउथ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है, ‘क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) का चरण पूरा हो गया है। भारत में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को साल 2030 तक चरणबद्ध तरीके से खत्म किए जाने की उम्मीद है। इसी तरह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन के तहत साल 2028 तक भारत में ओजोन क्षय की कोई संभावना नहीं हैं, लेकिन बड़े ग्लोबल वार्मिंग जोखिम की वजह से भारत इसे चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिए तैयार है।’

आपके एसी पर स्टार

साल 2008 से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो एक स्टार रेटिंग पहल चला रहा है। इसके जरिये विद्युत उपकरणों को उनकी दक्षता के अनुसार रेटिंग दी जाती है। इससे उपभोक्ताओं को बिजली बचाने में मदद मिलती है। विज्ञापनों के जरिये दिखाया जाता है कि कैसे अधिक ऊर्जा कुशल उपकरण बिजली का बिल कम करने में मदद करते हैं। उच्च श्रेणी के उपकरण पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित माने जाते हैं। स्टार रेटिंग मानक लगातार सख्त होते जा रहे हैं, जिससे उद्योग को लगता है कि यह भारत के शीतलन उपकरण बाजार का एक बड़ा संकेतक है।

गोदरेज अप्लायंसेज के कारोबार प्रमुख और कार्यकारी उपाध्यक्ष कमल नंदी ने कहा, ‘साल 2008 के बाद से हर दो या तीन वर्षों में वे स्तर को और सख्त कर रहे हैं। इसलिए, आज जो आप एक या दो स्टार रेटिंग देख रहे हैं वह पहले चार या पांच स्टार रेटिंग थे। अधिक ऊर्जा कुशल उपकरण लाने के लिए ये उद्योग और सरकार के बीच पूरी तरह से सहयोगात्मक प्रक्रिया है और यह कवायद आगे भी जारी रहेगी।’

उन्होंने कहा कि गोदरेज लगातार अधिक हरित ऊर्जा और कुशल ऊर्जा प्रौद्योगिकियां ला रहा है। उन्होंने कहा, ‘उद्योग और सरकार की ओर से साझा प्रयास हरित प्रौद्योगिकियों को लाने और ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा कुशल उत्पादों को लाने के लिए है और यह जारी रहेगा।’

उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए ऑनलाइन और दुकानों में भी उच्च ऊर्जा दक्ष उत्पादों के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। जब आप 5 स्टार वाले उपकरण खरीदते हैं तो आपको यह भी जोड़कर दिखाया जाता है कि किस तरह आप जो अतिरिक्त राशि खर्च करते हैं, उसे दो अथवा तीन वर्ष में वसूल किया जा सकता है।

मगर नंदी कहते हैं कि उद्योग का मानना है कि उपभोक्ताओं को इस तरह के उपकरण अपनाने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए। उच्च स्टार वाले उपकरण महंगे होते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम 4 अथवा 5 स्टार वाले उत्पाद अपनाने के लिए उपभोक्ताओं को कुछ प्रोत्साहन देने का सरकार को प्रस्ताव दे रहे हैं।’

त्यागराजन ने कहा कि एक देश के तौर पर भारत शीतलन उपकरण उद्योग में हरित मानक बरकरार रखने में अच्छा काम कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘मेरा विचार है कि हम हरित मोर्चे पर दुनिया का नेतृत्व करेंगे। मुझे नहीं लगता है कि हमें ग्राहकों पर यह बोझ डालना चाहिए कि आप सिर्फ 5 स्टार रेटेड उपकरण खरीदें क्योंकि विकसित देश इसका उपयोग कर रहे हैं। विकसित देश ऐसे एसी का भी उपयोग करते हैं जो पुराने पड़ चुके हैं। भारत इसमें अपनी प्रतिबद्धता दर्शा रहा है।’

किगाली समझौते पर चल रही बहस के बारे में त्यागराजन ने कहा कि भारतीय उद्योग अपनी प्रतिबद्धताओं में बहुत आगे रहेगा और ऐसा केवल बाजार प्रतिस्पर्धा के कारण होगा। मगर उनका मानना है कि विकसित देशों की तुलना में भारत के बाजार को थोड़ी छूट भी मिलनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि यह उद्योग समय से पहले ऐसा कर लेगा क्योंकि प्रतिस्पर्धा आपको ऐसा करने पर मजबूर करेगी। कोई इंतजार करने वाला नहीं है। वे आगे बढ़ेंगे और इसे पेश करेगें। मैं अपनी टीम से कह रहा हूं कि साल 2030 तक हमें इसे (एचएफसी की लक्षित कमी) हासिल करना चाहिए।’

First Published - June 17, 2024 | 11:24 PM IST

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